संतान की सुख-समृद्धि को रखे जाने वाले जिउतिया को लेकर व्रतियों में दिखा उत्साह
जमुई में महिलाओं ने संतान की सुख-समृद्धि के लिए जिउतिया व्रत का पालन किया। यह व्रत आश्विन महीने में मनाया जाता है, जिसमें महिलाएं निर्जला उपवास रखती हैं। जिउतिया व्रत का उद्देश्य संतान की आयु बढ़ाना...

जमुई। नगर प्रतिनिधि संतान की सुख-समृद्धि के लिए रखे जाने वाले जिउतिया व्रत को लेकर महिला श्रद्धालुओं में उत्साह देखा गया। ऐसी मान्यता है कि जीतिया व्रत करने से संतान की आयु में वृद्धि होती है और उनके रोग दोष दूर हो जाते हैं। यह पर्व आश्विन महीने में कृष्ण पक्ष के सातवें से नौवें चंद्र दिवस तक तीन दिन के लिए मनाया जाता है। इस व्रत के पहले दिन महिलाएं सुबह सूर्योदय से पहले जागकर स्नान करके पूजा करती हैं, फिर एक बार भोजन ग्रहण करती हैं। उसके बाद पूरे दिन निर्जला रहती हैं। दूसरे दिन सुबह स्नान के बाद महिलाएं पूजा-पाठ कर फिर निर्जला व्रत रखती हैं व तीसरे दिन इसका पारण करती हैं।
सूर्य को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं अन्न-जल ग्रहण कर सकती हैं। रात में महिलाओं ने पूजा अर्चना किया। जिउतिया पर्व को लेकर महिलाओं में काफी उत्साह दिखता है। काफी दिनों से इसकी महिलाओं की ओर से तैयारी की जाती है। संतान की रक्षा के लिए माताएं इस व्रत को करती हैं। यह व्रत बहुत कठिन माना जाता है। महिलाओं द्वारा संतान की रक्षा के लिए जीवित पुत्रिका व्रत पूरे नियम निष्ठा व निर्जला उपवास के साथ दिया गया है। सनातन धर्म मे इस व्रत का खास महत्व है। सनातन संस्कृति में संतान की मंगलकामना से जुड़ा यह पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। हर साल महिलाएं ये व्रत रखती हैं। और संतान के सुरक्षा व दीर्घायू की ईश्वर से प्रार्थना करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जिउतिया व्रत करने से संतान की लंबी उम्र होती है और संतान को ईश्वर हर आपदा से बचाते हैं। इस पर्व में पूरे विधि विधान से महिलाएं स्नान ध्यान कर कुश का जीमूतवाहन बनाकर जीवित्पुत्रिका व्रत की पूजा करते हैं। अष्टमी को पूरा दिन व्रत रखकर संध्याकाल में अच्छी तरह से स्नान कर महिलाएं पूजा की सामग्री के साथ जीमूतवाहन की पूजा की। इस व्रत के प्रभाव से भगवान व्रती महिलाओं की संतानों की रक्षा करते हैं। बताते चलें कि सनातन धर्मावलंबियों में इस व्रत का खास महत्व है। पवित्र नदियों में स्नान करने के बाद महिलाएं स्नान ध्यान के साथ पितरों की पूजा करती हैं। इस पूजा में गोबर मिट्टी से प्रतिमा बनाकर कुश के जीमूतवाहन व मिट्टी गोबर से सियारिन व चूल्होरिन की प्रतिमा बनाकर व्रती महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा की। वहीं पूजा में फल फूल नैवेद्य भी चढ़ाए गए। जिउतिया व्रत में सरगही या ओठगन की परंपरा भी है। इस व्रत में सतपुतिया की सब्जी का विशेष महत्व है। रात को बने अच्छे पकवान में से पितरों, चील, सियार, गाय और कुत्ता का अंश निकाला जाता है। सरगी में मिष्ठान आदि का सेवन व्रती महिलाओं द्वारा किया जाता है। वहीं अगले दिन महिलाएं पूजा कर व्रत समाप्त करती है। वहीं कई धार्मिक स्थलों पर महिलाएं जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा भी सुनती है।
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