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सीएम तक ने की है झाझा की नुमाइंदगी

झाझा की सियासी कोख मंत्रियों की जननी रही है। इस धरा ने प्रदेश से लेकर देश तक को न केवल कई मंत्री दिए हैं, अपितु बिहार विधान सभा में झाझा की तीन बार नुमाइंद्गी करने वाले दिवंगत बाबू चंद्रशेखर सिंह ने...

सीएम तक ने की है झाझा की नुमाइंदगी
हिन्दुस्तान टीम,जमुईThu, 15 Oct 2020 11:34 PM
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झाझा की सियासी कोख मंत्रियों की जननी रही है। इस धरा ने प्रदेश से लेकर देश तक को न केवल कई मंत्री दिए हैं, अपितु बिहार विधान सभा में झाझा की तीन बार नुमाइंद्गी करने वाले दिवंगत बाबू चंद्रशेखर सिंह ने तो आगे चलकर अगस्त 1983 से ले मार्च 1985 तक मुख्यमंत्री बन सूबे का प्रतिनिधित्व किया था।

इसके अलावा झाझा के सरपरस्त बांका लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए केंद्र में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व़ इंदिरा गांधी एवं स्व़ राजीव गांधी दोनों की ही कैबिनेट में जगह पाई थी। बता दें कि स्व ़ सिंह ने देश की आजादी के बाद के पहले चुनाव यानि सन 1952 से ही झाझा की नुमाइंद्गी की कमान संभालते हुए इसके बाद 1957 एवं 1969 में भी झाझा से ही बिहार विस के पटल तक पहुंचे थे।

झाझा नहीं बन पाया अनुमंडल: सूबे की सत्ता व सियासी गलियारों में हमेशा से ही झाझा की एक अलग महत्ता व अहमियत रही है। 80 के दशक में बिहार के सीएम की कुर्सी तक पहुंचने वाले बाबू चंद्रशेखर सिंह जहां बिहार विधान सभा में झाझा की विधायक वाली कुर्सी पर तीन बार काबिज हुए थे। वहीं सदन में झाझा विस की नुमाइंद्गी का चौका लगाने वाले स्व़ शिवनंदन झा के अलावा दामोदर रावत बिहार मंत्रिमंडल में कैबिनेट स्तर के मंत्री पद को सुशोभित कर चुके हैं।

इनके अलावा डॉ़ रविंद्र यादव भी पूर्व में जीत की हैट्रिक लगा चुके हैं। पर, दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना यह कि इस सीट की नुमाइंद्गी की किसी के द्वारा हैट्रिक तो किसी के द्वारा चौका लगा लिए होने तथा साथ ही उनके मंत्रिमंडल में होने समेत स्व़ बाबू चंद्रशेखर सिंंह के सीएम की कुर्सी तक पर काबिज होने के बावजूद झाझा में न कोई उद्योग लग पाया न ही अनुमंडल की हैसियत ही हासिल हो पाई है।

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