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मात्र 9405 वोट लाकर ही बन गए थे झाझा के सिकंदर

आजादी के बाद सन 1952 से ही झाझा विधान सभा का सियासी सफर कई रोचक तथ्यों से भरा पड़ा है। बीते 28 अक्टूबर को मुकम्मल हुए मतदान में भले ही झाझा विस के 59 फीसद यानि करीब 1़ 85 लाख वोटरों ने अपने मताधिकार...

मात्र 9405 वोट लाकर ही बन गए थे झाझा के सिकंदर
Newswrapहिन्दुस्तान टीम,जमुईSun, 01 Nov 2020 10:52 PM
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आजादी के बाद सन 1952 से ही झाझा विधान सभा का सियासी सफर कई रोचक तथ्यों से भरा पड़ा है। बीते 28 अक्टूबर को मुकम्मल हुए मतदान में भले ही झाझा विस के 59 फीसद यानि करीब 1़ 85 लाख वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया हो पर, विगत के एक चुनाव की रोचक बानगी देखिए कि उक्त चुनाव में मात्र 18628 मतदाताओं ने ही मतदान किया था और महज 9405 वोट लाने वाले ही माननीय बन गए थे। उपलब्ध जानकारीनुसार,आजादी के बाद सन 1952 में हुए पहले आम चुनाव के वक्त झाझा विधान सभा की कुल मतदाता संख्या मात्र 43585 थी। मतदान में कुल जमा 18628 मतदाताओं ने ही अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। औऱ.़.ऐसे में महज 9405 वोट ही लाने वाले तत्कालीन कांग्रेस प्रत्याशी बाबू चंद्रशेखर सिंह झाझा विस के माननीय के ताज से नवाज दिए गए थे। हालांकि,उनको आए वोटों का प्रतिशत कतई कम नहीं होकर 50़19 फीसदी था। पांच रणबांकुरों में मात्र 3777 वोट लाने वाले सोशलिस्ट पार्टी के वीरेंद्र दूसरे नंबर पर रहे थे।

1645 वोटों से हार

साल 2000 से लेकर 2015 तक के पांच चुनावों में अपनी पहली जीत की जददोजहद तथा विजय की बोहनी की बाट जोहती आयी राजद अलग दल के बतौर वजूद में आने के बाद साल 2000 के अपने पहले चुनाव में महज 1645 वोटों के अंतर की वजह से झाझा का सिकंदर बनने से पिछड़ गई थी। उस वक्त लालटेन थामें झाझा के चुनावी रण में कूदे डॉ़ रविंद्र यादव उक्त मामूली अंतर से ही दामोदर रावत के हाथों सीट गंवा बैठे थे। हालांकि,बाद के चुनावों में राजद की शिकस्त का अंतर बढ़ता चला गया था।

कम वोटों के अंतर से जीत-हार हुई थी

ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि आगामी 10 नवंबर को राजद अपनी जीत का खाता खोलने में कामयाब हो पाती या एक बार फिर निकटतम प्रतिद्वंदी के मुकाम तक पर ही रह जाती है। वैसे सबसे कम वोटों के अंतर से जीत-हार का मामला 1967 में बना था जब कांग्रेस के मो़ कुदुस महज 716 वोटों के अंतर की वजह से सिकंदर बनने से चूक गए थे।

लहर भी नहीं आयी काम

संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के शिवनंदन झा को 17868 वोट तथा कांग्रेस प्रत्याशी को 17152 वोट हासिल हुए थे। 1957 के मुकाबले 1962 में वोटरों की संख्या में इजाफे के उलट हैरतअंगेज ढंग से गिरावट आयी। 1957 में जहां वोटरों की संख्या 77237 थी वहीं पांच साल बाद 1962 में यह नीचे लुढ़ककर 59971 के आंकड़े तक आ सिमटी थी।

1957 में 77 फीसदी हुआ था मतदान

हैरानी यह भी कि 1977 में जनता पार्टी तथा 1980 में कांग्रेस की कमबैक वाली लहरें जबकि देश भर के अन्य तकरीबन तमाम क्षेत्रों में बंपर वोटिंग हुई थी उन लहरों वाले दौरों में भी झाझा विस क्षेत्र में क्रमश: 47 फीसद एवं 52 फीसद की सामान्य वोटिंग की सूचना सामने आती मिली है। उपलब्ध सूचनानुसार झाझा विस क्षेत्र में अब तक की सबसे अधिक वोटिंग साल 1957 में हुई थी। उस साल के चुनावों में 77 फीसद मतदान का तथ्य सामने आता मिल रहा है। सन1962 एवं 67 में जहां झाझा की चुनावी हल्दीघाटी में मात्र 4-4 योद्घा ही थे। वहीं,1995 में योद्घाओं का आंकड़ा 27 था। इसबार का चुनावी घमासान रोमांचक होने की उम्मीद जतायी जा रही है।

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