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जमुई: प्रवासी मजदूरों को मिल रहा है मुर्गी व्यवसाय का प्रशिक्षणक होता है I उन्होंने कहा जमुई के किसान आसानी से इसे अपना सकते हैं I इस प्रकार उन्नत नस्ल के साथ मुर्गी पालन व्यवसाय प्रवासी शुरु करें I

जमुई: कृषि विज्ञान केन्द्र खादीग्राम जमुई में चल रहे गरीब कल्याण रोजगार अभियान अंतर्गत जिले के प्रवासी कामगारों एवं मजदूरो के लिए ग्रामीण स्तरीय मुर्गी पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए ...

जमुई: प्रवासी मजदूरों को मिल रहा है मुर्गी व्यवसाय का प्रशिक्षणक होता है I उन्होंने कहा जमुई के किसान  आसानी से इसे अपना सकते हैं I इस प्रकार उन्नत नस्ल के साथ मुर्गी पालन व्यवसाय प्रवासी शुरु करें I
हिन्दुस्तान टीम,जमुईTue, 14 Jul 2020 07:04 PM
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जमुई: कृषि विज्ञान केन्द्र खादीग्राम जमुई में चल रहे गरीब कल्याण रोजगार अभियान अंतर्गत जिले के प्रवासी कामगारों एवं मजदूरो के लिए ग्रामीण स्तरीय मुर्गी पालन को व्यवसाय के रूप में अपनाने के लिए प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना के मुर्गी पालन विशेषज्ञ डॉ पंकज कुमार ने प्रवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि ग्रामीण स्तरीय मुर्गी पालन जो बैकयार्ड पोल्ट्री के नाम से जाना जाता है, ये एक ऐसी तकनीक है, जिसमे किसान अपनी खेतीबारी करते हुए कम से कम लागत में एक रोजगार प्रारंभ कर सकते हैं I जमुई जैसे असिंचित क्षेत्र में ग्रामीणों के द्वारा मुर्गी पालन बेहद सामान्य कार्य है। यहाँ अनुसूचित जाति एवं जनजाति श्रेणी के किसानो के यहाँ देसी मुर्गी पालने की परंपरा रही है I ये मुर्गिया ६०-65 अंडे प्रतिवर्ष देती है, जिसकी बिक्री औसतन रु 10 प्रति अंडे होती है I डॉ कुमार ने लोगो को बताया की आप मुर्गियों की नवीनतम एवं उन्नतशील प्रजाति वनराजा का पालन करें, इस नस्ल को 150 तक अंडे प्रति वर्ष देने की क्षमता होती है I वनराजा को शुरू के 8 सप्ताह के बाद किसी विशेष प्रकार के दाना की आवश्यकता नहीं होती, और किसी भी प्रकार के वनस्पति, घर के जूठन आदि खाकर ये पलती है I केला के थम के छोटे छोटे टुकड़े को ये नस्ल बेहद पसंद से खाती है और पूर्णत: स्वस्थ रहती है I किसान पालक ये ध्यान रखे कि वो अपने 50 मुर्गियों पर मात्र 4 मुर्गे रखें। शेष मुर्गो को बेच कर वे अपनी आमदनी निकाल लें I इसी प्रकार आजकल कडकनाथ नस्ल के मुर्गे की बहुत मांग है I मध्य प्रदेश के झबुआ में आदिवासी समुदायों के द्वारा पाला जाने वाला कड़कनाथ आज बिहार में भी धूम मचा रहा है I इस नस्ल का मांस बहुत स्वादिष्ट होने के कारण आज बिहार के बाजार में एक हजार रूपया प्रति किलो के दर से बिक रहा है I कड़कनाथ नस्ल औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके अंडे एवं मांस के सेवन से फेफड़े की बीमारी में मददगार साबित होती है I इस नस्ल की मुर्गिया औसतन 90 अंडा प्रति वर्ष देती है, साथ ही इनके शरीर का वजन औसतन डेढ़ किलो तक होता है I उन्होंने कहा जमुई के किसान आसानी से इसे अपना सकते हैं I इस प्रकार उन्नत नस्ल के साथ मुर्गी पालन व्यवसाय प्रवासी शुरु करें I

केन्द्र प्रामुख डॉ सुधीर सिंह ने कहा कि गरीब कल्याण रोजगार अभियान अंतर्गत जितने भी प्रवासी कामगार किसान कृषि विज्ञान केन्द्र से प्रशिक्षण प्राप्त कर मुर्गी पालन व्यावासिक रूप से शुरू करेंगे उन्हें नए नस्ल के मुर्गियों के चूजे उपलब्ध कराने में केन्द्र सहयोग करेगा I उक्त कार्यक्रम में पेंघी, जवातरी, दाबिल के 45 प्रवासियों ने भाग लिया I

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