दो साल बीत गए नहीं खुला ट्रॉमा सेंटर
दो साल की अवधि कम नहीं होती। इतने समय में भी जिले में ट्रॉमा सेंटर खोलने को लेकर फाइल आगे नहीं बढ़ पाई है। इधर सड़क हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे। आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होती है। लोग गंभीर रुप से घायल...
दो साल की अवधि कम नहीं होती। इतने समय में भी जिले में ट्रॉमा सेंटर खोलने को लेकर फाइल आगे नहीं बढ़ पाई है। इधर सड़क हादसे रुकने का नाम नहीं ले रहे। आए दिन सड़क दुर्घटनाएं होती है। लोग गंभीर रुप से घायल हो जाते हैं। तत्काल बेहतर इलाज की सुविधा न मिल पाने के कारण कुछ अभागों को मौत का शिकार बन जाना पड़ता है।
अरवल जिले से दो एनएच, एनएच 98 व एनएच 110 गुजरती है। एनएच पर वाहनों का काफी दबाव है। सड़क चिकनी हो जाने के कारण वाहनों की गति भी बढ़ गई है। चालकों की लापरवाही और तेज गति लोगों की सांसों की डोर को तोड़ दे रहा है। वर्ष 2016 में सिर्फ एनएच 98 पर 51 सड़क दुर्घटनाएं हुई। वहीं वर्ष 2017 में यह आंकड़ा बढ़कर 81 तक पहुंच गया। इन दुर्घटनाओं में 34 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। जबकि जिले के अन्य सड़कों पर हुई दुर्घटनाओं में वर्ष 2017 और 2018 में 81 लोग मौत का शिकार बने। सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं एनएच 98 पर बैदराबाद से लेकर कलेर के बीच दर्ज की गई है। परिवहन विभाग ने बैदराबाद से महेंदिया तक एनएच 98 को डेंजर जोन घोषित किया है। सड़क हादसे रोकने के लिए जिला प्रशासन और परिवहन विभाग ने 62 ब्लॉक स्पॉट बनाए हैं। एनएच 98 के प्रत्येक मोड़ और घनी आबादी वाले क्षेत्र को नो ओवरटेकिंग जोन घोषित किया जा चुका है। इन जगहों पर गति सीमा के बोर्ड भी लगाए गए हैं। इसके बाद भी हादसे नहीं रूक रहे। हादसे में घायल हुए लोग सबसे अधिक सदर अस्पताल में ही दाखिल होते हैं। गंभीर रूप से घायल लोगों को खून चढ़ाने की जरूरत रहती है। सिर में लगे चोट का तत्काल इलाज शुरू किया जाना जरूरी माना जाता है। लेकिन, सदर अस्पताल में न तो खून चढ़ाने की व्यवस्था है और न ही गंभीर रूप से घायल लोगों को बेहतर इलाज मिल पा रहा है। अस्पताल के चिकित्सक मरहम पट्टी और कुछ जरूरी दवाएं देकर दुर्घटनाग्रस्त लोगों को तत्काल पटना ले जाने की सलाह देते हैं। अरवल से पटना पहुंचने में दो घंटे का समय लग जाता है। यही समय गंंभीर रूप से घायल मरीजों की जान बचाने में महत्वपूर्ण माना जाता है। चिकित्सक बताते हैं कि समय पर इलाज शुरू हो जाने से गंभीर रुप से घायल मरीजों के बचने की संभावना 80 फीसदी तक बढ़ जाती है। मालूम हो कि तत्कालीन डीएम आलोक रंजन घोष ने दो साल पहले जिले में ट्रॉमा सेंटर खोलने की पहल की थी। इसके लिए पत्राचार भी किया गया था। लेकिन, कोई कार्रवाई नहीं हो पाई। इस बारे में पूछे जाने पर डीएम सतीश कुमार सिंह ने कहा कि जिले में ट्रॉमा सेंटर की जरूरत है। सदर अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर खोलने का प्रस्ताव राज्य स्वास्थ्य समिति से किया गया है।