पटना के किसानों को सिखाई अमरूद के उत्पादन की तकनीक
प्रखंड क्षेत्र के अंधराबड़ पहाड़पुर तोई स्थित सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर फ्रुट्स केन्द्र में पटना जिले के विभिन्न प्रखंड के 60 किसानों को राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत पौध उत्पादन को लेकर एक दिवसीय...

सहदेई बुजुर्ग। सं.सू.
प्रखंड क्षेत्र के अंधराबड़ पहाड़पुर तोई स्थित सेंटर ऑफ एक्सिलेंस फॉर फ्रुट्स केन्द्र में पटना जिले के विभिन्न प्रखंड के 60 किसानों को राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत पौध उत्पादन को लेकर एक दिवसीय प्रशिक्षण दिया गया। जिसमें उद्यान पदाधिकारी विनोद कुमार, तकनीकी सलाहकार अंकित कुमार उपाध्याय और प्रेम कुमार ने प्रशिक्षण दिया। प्रशिक्षण के प्राप्त करने आए हुए किसानों को कृषि वैज्ञानिकों ने जैविक विधि से उन्नत किस्म के विभिन्न फलदार पौधों को उत्पादन करने के बारे में विस्तार पूर्वक बताया।
इस दौरान किसानों को बताया गया कि जैविक विधि से उत्पादन किया हुआ फल खाने में स्वादिस्ट ही नहीं बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद है। अमरूद के फलों का उत्पादन करने को लेकर किसानों को बताया कि अमरूद की रोपाई आमतौर पर 5 × 5 या 6 × 6, सघन विधि में प्रति हैक्टेयर 500 से 5000 पौधे तक लगाया जा सकता है। समय-समय पर कटाई-छंटाई करके एवं वृद्धि नियंत्रकों का प्रयोग करके पौधों का आकार छोटा रखा जाता है। इस तरह की बागवानी से 30 टन से 50 टन तक उत्पाद होता है। अमरुद अधिक सहिष्ण होने के कारण इसकी सफल खेती अनेक प्रकार की मिट्टी तथा जलवायु में की जा सकती है। जाड़े की मौसम में यह इतना अधिक तथा सस्ता प्राप्त होता है कि लोग एक प्रकार के प्रमुख फल कहते हैं। यह स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक फल है, इसमें विटामिन सी अधिक मात्रा में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त विटामिन ए तथा बी भी पाए जाते हैं। इसमें लोहा, चूना तथा फास्फोरस अच्छी मात्रा में होते हैं। अमरुद की जेली तथा बर्फी बनाई जाती है। अमरुद का फल वृक्षों की बागवानी मे एक महत्वपूर्ण स्थान है। अमरुद की सफल खेती उष्ण कटीबंधीय और उपोष्ण-कटीबंधीय जलवायु में सफलतापूर्वक की जा सकती है। उष्ण क्षेत्रों में तापमान व नमी के पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहने पर फल वर्ष भर लगते हैं। अधिक वर्षा वाले क्षेत्र में इसकी बागवानी उपयुक्त नहीं है। छोटे पौधे पर पाले का असर होता है। जबकि पूर्ण विकसित पौधे 44 डिग्री सेल्सियस तक का तापमान आसानी से सहन कर सकते हैं। यह हर प्रकार की मिट्टी में उपजाया जा सकता है, बलुई दोमट इसके लिए आदर्श मिट्टी है।
बीज से पौधा तैयार करने का तरीका सिखाया
अमरूद के पौधों को बीज के द्वारा उत्पादन किया जाता है। बीज मार्च या जुलाई में बो देना चाहिए। वानस्पातिक प्रसारण के लिए सबसे उतम समय जुलाई अगस्त है। पौधे 20 फुट की दूरी पर लगाए जाते है। अच्छी उपज के लिए दो सिंचाई जाड़े में तथा तीन सिंचाई गर्मी के दिनों में करनी चाहिए। गोबर की सड़ी हुई खाद या कंपोस्ट, 15 गाड़ी प्रति एकड़ देने से अत्यंत लाभ होता है। स्वस्थ तथा सुंदर आकर का पेड़ प्राप्त करने के लिए आरंभ से ही डालियों की उचित छंटाई करनी चाहिए। पुरानी डालियों में जो नई डालियां निकलती है, उन्हीं पर फूल और फल आते है। वर्षा ऋतु में अमरुद के पेड़ फूलते है और जाड़े में फल प्राप्त होते है। एक पेड़ लगभग 30 वर्ष तक भली भांति फल देता है और प्रति पेड़ 500 - 600 फल प्राप्त होते है।
अमरुद की किस्म
प्रमुख किस्में जो बागवानी के लिए उपयुक्त पायी गई वे इस प्रकार है। इलाहाबादी सफेदा, सरदार 49 लखनऊ, सेबनुमा अमरूद, इलाहाबादी सुरखा, बेहट कोकोनट। इसके अतिरिक्त चित्तीदार, रेड फ्लेस्ड, ढोलका, नासिक धारदार आदि किस्मे हैं। किसानों को बताया गया कि अमरुद की खेती कर किसान ज्यादा से ज्यादा लाभान्वित हो सकते है।
