सीयूएसबी की डॉ. रचना को मिला 1.20 करोड़ का अनुदान
दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ. रचना विश्वकर्मा को आईसीएसएसआर से 1.20 करोड़ रुपये का अनुदान मिला है। उनका शोध 'ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय श्रम प्रवास का सांस्कृतिक...

दक्षिण बिहार केन्द्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के वाणिज्य एवं व्यवसाय अध्ययन विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. रचना विश्वकर्मा को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर), नई दिल्ली द्वारा चार वर्षीय प्रोजेक्ट पर अनुसंधान करने के लिए 1.20 करोड़ रुपये का अनुदान प्राप्त हुआ है। डॉ. विश्वकर्मा के साथ सम्मिलित छः सदस्यीय प्रोजेक्ट टीम के शोध का विषय ''ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान भारतीय श्रम प्रवास का सांस्कृतिक इतिहास'' विषय है। यह एक कोलैबोरेटिव रिसर्च प्रोजेक्ट है। डॉ. रचना विश्वकर्मा ने बताया कि संबंधित शोध प्रस्ताव की संकल्पना प्रोजेक्ट टीम द्वारा प्रधानमंत्री की उन देशों की ऐतिहासिक यात्रा के आलोक में की गई थी, जहां-जहां ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान भारतीय ''गिरमिटिया'' श्रमिकों का प्रवासन हुआ था और अब उनके बाद की पीढ़ियां उन देशों का सांस्कृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक नेतृत्व कर रही हैं।
उस काल के ''गिरमिटिया'' श्रमिकों की एक बड़ी आबादी बिहार से ही प्रवासित हुई थी, इसलिए बिहार के लिए यह शोध विशेष महत्व का है। 2024-25 में मॉरीशस, फिजी और कैरिबियाई देशों की अपनी यात्राओं के दौरान, प्रधानमंत्री ने अपने दूरदर्शी वक्तव्य में कई बार ''गिरमिटिया'' विरासत को बढ़ावा देने तथा उसे संरक्षित करने के लिए वैश्विक स्तर पर शोध अध्ययन करने के महत्व को दोहराया था। यह परियोजना इसी दिशा में एक प्रयास है। इस रिसर्च प्रोजेक्ट में आंकड़ों का संग्रह वैश्विक स्तर पर फिजी, मॉरीशस, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे प्रमुख देशों और ब्रिटेन, आयरलैंड, नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न अभिलेखागार से एकत्र किया जाएगा। उन्होंने बताया कि ब्रिटिश काल में बिहार क्षेत्र से बड़ी संख्या में श्रमिक लोगों का गिरमिटिया बनकर अन्य देशों में जाना केवल एक सामान्य प्रवासन की घटना नहीं थी बल्कि वह एक सुनियोजित औपनिवेशिक आर्थिक नीति का हिस्सा था जिसका उद्देश्य ब्रिटिश उपनिवेशों में सस्ते श्रम की पूर्ति कर उनके वाणिज्यिक हितों को साधना था। इस परियोजना के माध्यम से उन सभी औपनिवेशिक आर्थिक नीतियों की भी गहन पड़ताल की जाएगी। यह प्रोजेक्ट ऐसे देशों के साथ भारत की सांस्कृतिक-आर्थिकसंबंधों को मजबूत करने और वैश्विक प्रवासी समुदाय के साथ भारत की सांस्कृतिक जड़ों को गहरा करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेपों को साक्ष्य-आधारित अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा।
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