गंगा, कोसी, गंडक, सोन...; बिहार में जो नदियां पिछले साल सूखी थीं, इस साल क्यों बरपा रही कहर
पिछले साल सोन नदी पूरी तरह सूखी थी, लेकिन इस साल उसमें पांच लाख क्यूसेक से अधिक पानी है। गत वर्ष सोन नदी में 18 सितंबर को सुबह में 265 क्यूसेक पानी था। इस साल 18 सितंबर को सोन नदी में 5.22 लाख क्यूसेक पानी है, जो इस साल का रिकॉर्ड जलस्राव है।
बिहार में जो नदियां पिछले साल सूखी पड़ी थीं, उनमें इस साल रिकॉर्ड पानी है। वे सूबे में कहर भी बरपा रही हैं। इस साल आधा दर्जन से अधिक नदियां गंगा, घाघरा, कोसी, गंडक, बूढ़ी गंडक, पुनपुन और सोन खतरे के निशान से ऊपर हैं, जबकि पिछले साल केवल गंडक ही खतरे के निशान से केवल 10 सेमी ऊपर थी। इस साल नदियां खतरे के निशान से तीन मीटर तक ऊपर पहुंच गयी हैं। उधर, मानसून अवधि में जल संचय की योजना अब तक धरातल पर नहीं उतर सकी हैं।
पिछले साल सोन नदी पूरी तरह सूखी थी, लेकिन इस साल उसमें पांच लाख क्यूसेक से अधिक पानी है। गत वर्ष सोन नदी में 18 सितंबर को सुबह में 265 क्यूसेक पानी था। इस साल 18 सितंबर को सोन नदी में 5.22 लाख क्यूसेक पानी है, जो इस साल का रिकॉर्ड जलस्राव है। यही नहीं इन्द्रपुरी बराज पर नदी गत वर्ष खतरे के निशान से 7 मीटर तक नीचे थी। जबकि, कोईलवर में 6 मीटर और पटना में खतरे के निशान से 3 मीटर नीचे थी। यही हाल नार्थ कोयल नदी का है। अमूमन हर साल सूखी रहने वाली इस नदी में इस साल पौने तीन लाख क्यूसेक पानी है। गत वर्ष इसी समय यहां 1600 क्यूसेक पानी था। बीते साल नार्थ कोयल का रिकॉर्ड जलस्राव 82 हजार क्यूसेक का था। इस साल उससे साढ़े तीन गुना अधिक पानी है।
मानसून अवधि में जल संचय की कार्ययोजना ही बन रही
बिहार में मानसून अवधि में तो नदियों में भरपूर पानी होता है, लेकिन मानसून बीतते परेशानी बढ़ जाती है। भूजलस्तर नीचे चला जाता है और नदियां सूखने लगती हैं। इस समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार जल प्रबंधन की वैकल्पक योजना पर काम कर रही है।
इसके तहत पांच सूत्रों पर काम किया जा रहा है
● नदी जोड़ योजना से जल प्रबंधन की तैयारी की जा रही है। बागमती को बूढ़ी गंडक से जोड़ने की दो योजना व गंडक को गंगा से जोड़ने की एक योजना पर काम हो रहा है। बागमती-शांतिधार-बूढ़ी गंडक, बागमती-बेलवाधार-बूढ़ी गंडक के अलावा गंडक-अकाली नाला (छाड़ी), गंडकी-माही-गंगा नदी जोड़ योजना का काम विभिन्न चरणों में संचालित है।
● सभी बड़े व छोटे जलाशयों में नदियों का पानी संग्रहित किया जाएगा। इन नदियों के पानी को जलाशय तक पहुंचाया जाएगा।
● नदियों पर बने वीयरों को छोटे-छोटे बराजों पर बदलने की तैयारी है। कुछ स्थानों पर नये बराज भी बनेंगे।
● नदियों के किनारे छोटे जलाशय बनेंगे। मानसून अवधि के बाद इनका उपयोग किया जाएगा।
● पहाड़ी इलाकों में गारलैंड ट्रैंच का निर्माण होगा। इसमें बारिश के पानी का संग्रह किया जाएगा।
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