ड्रोन से होगी बिहार की नदियों के बहाव की निगरानी, बाढ़ से पहले और बाद के फ्लो की होगी स्टडी
बिहार में अब ड्रोन से नदियों की धारा की निगरानी होगी। जिससे नदियों के बहाव की स्टडी होगी। और ये पता चल सकेगा कि अचानक नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है। जबति मानसून में भी कई नदियां में पानी काफी कम रहता है। नदियों के व्यवहार को जानने में मदद मिलेगी।
राज्य में ड्रोन से नदियों की धारा की निगरानी होगी। इसके तहत मानसून अवधि के पहले और मानसून अवधि के बाद नदियों के बहाव का अध्ययन होगा। जल संसाधन विभाग इसके लिए कार्ययोजना बना रहा है। इसके तहत हर साल तबाही मचाने वाली नदियों के साथ अप्रत्याशित पानी लाने वाली नदियों की प्रकृति का सहजता से अध्ययन हो सकेगा। दरअसल, प्रदेश की नदियों में अप्रत्याशित रूप से पानी आ रहा है। कभी इसकी मात्रा काफी कम हो जाती है तो कभी काफी बढ़ जाती है। कई क्षेत्र में मानसून अवधि में नदियों में पानी नहीं होता तो कई बार नदियां अचानक खतरे के निशान से ऊपर पहुंच जाती है। एक ही जिले में नदियों का व्यवहार अलग-अलग दिख रहा है। इससे जल विशेषज्ञ भी हैरान हैं।
सबसे हैरानी की बात तो यह है कि अमूमन सूखी रहने वाली नदियां भी तटबंधों को क्षतिग्रस्त कर रही हैं। इससे नए-नए इलाकों में बाढ़ का पानी फैल रहा है। इस समय राज्य की नदियों की धारा और तटबंधों पर उसके बढ़ते दबाव के कारण कई तरह की समस्या पैदा हो रही है। यही नहीं, बाद में तटबंधों की मरम्मत में भी कई तरह की परेशानी होती है। नदियां बाढ़ अवधि में कई बार तटबंधों पर भारी दबाव बनाती है। उसकी धारा में भी विचलन होता है। इससे नए-नए संवेदनशील स्थल विकसित हो रहे हैं। साथ ही पुराने संवेदनशील स्थलों को क्षति पहुंचाते हैं।
विभाग का मानना है कि बाढ़ के पहले और बाद में नदियों की धारा की निगरानी से नदियों की प्रकृति के अध्ययन में सुविधा होगी। नदियां बाढ़ अवधि में अपनी धारा कितना बदली, कहां-कहां तटबंधों पर दबाव पैदा हुआ, कहां तटबंधों पर अत्यधिक दबाव उत्पन्न हुआ, इन सबकी जानकारी सहज मिल जाएगी। ड्रोन अध्ययन से यह सहजता से पता चलेगा कि कौन-कौन से ऐसे स्थल हैं जहां हर साल दबाव उत्पन्न हो रहा है। या फिर कहां नदियों की धारा हर साल दबाव पैदा करती हैं। इसके अलावा यह भी सहजता से देखा जा सकेगा कि कहां-कहां नदियां अपनी धारा बदल रही है।
बिहार में हर साल औसतन 800 करोड़ रुपये बाढ़ की तैयारियों में खर्च होते हैं। इसमें कमी आ सकती है। पिछले दस वर्षों में बाढ़ पूर्व की तैयारी के क्रम में तटबंधों की मरम्मत और संवेदनशील स्थानों को दुरुस्त करने पर 8366 करोड़ रुपये खर्च किए गए। इस पैसे से 10 साल में 3246 योजनाओं पर काम किया गया। इन सबके बाद भी 55 स्थानों पर तटबंध टूट गए। इससे कई स्तरों पर किए गए कार्य निरर्थक हो गए।
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