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विश्वविद्यालय की स्थापना का पूरा नहीं हो सका उद्देश्य

दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की स्थापना के स्वर्ण जयंती वर्ष विश्वविद्यालय की स्थापना...

विश्वविद्यालय की स्थापना का पूरा नहीं हो सका उद्देश्य
हिन्दुस्तान टीम,दरभंगाWed, 04 Aug 2021 07:01 PM
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दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय की स्थापना के स्वर्ण जयंती वर्ष विश्वविद्यालय की स्थापना में अहम भूमिका निभाने वाले स्व. ललित नारायण मिश्र के जन्मशती वर्ष के शुभारंभ पर पांच अगस्त को परिसर में भव्य समारोह का आयोजन हो रहा है। विश्वविद्यालय की स्थापना की मांग सर्वप्रथम 1949 में शहर में आयोजित ओरिएंटल कॉन्फ्रेंस में उठी थी। मांग करने वालों में तीन महापुरुष डॉ. गंगानाथ झा, डॉ. अमरनाथ झा एवं बंगाल के डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी प्रमुख थे। उन्होंने कहा था कि मिथिला की अस्मिता, संस्कृति व विचारधारा के संरक्षण के लिए मिथिला में एक अपने किस्म के विश्वविद्यालय की स्थापना की आवश्यकता है। मिथिला ज्ञान विज्ञान का केंद्र है, इसलिए यह विश्वविद्यालय अन्य विश्वविद्यालयों से भिन्न होना चाहिए। इसके बाद विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए लंबे समय तक आंदोदलन हुआ जिसमें कई महत्वपूर्ण व्यक्तियों सहित राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों एवं छात्रसंगठनों की महती भूमिका रही। अंतत: तत्कालीन रेल मंत्री स्व. ललित नारायण मिश्रा की सक्रिय भूमिका के बाद पांच अगस्त 1972 को अध्यादेश जारी कर विवि की स्थापना हुई। लोग विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद एक प्रश्न उठाते रहते हैं। विश्वविद्यालय की स्थापना से कुछ लोगों को नौकरी मिली तो कुछ छात्रों को डिग्री मिली, लेकिन मिथिला को क्या मिला? विवि की शिक्षण पद्धति या शोध पद्धति में मिथिला की कहीं झलक नहीं मिलती है। देश के विभिन्न जनपदों से मिथिला का वैशिष्ट्य अलग रहा है, लेकिन इसकी भी झलक नहीं है। क्षेत्र में उपलब्ध पर्याप्त जल संसाधन, संस्कृति से जुड़े पान, मखान, तालाब आदि के संबंध में कभी शोध पर ध्यान नहीं दिया गया। पर्याप्त संख्या में उपलब्ध मानव संसाधन के विकास की भी अनदेखी हुई। विवि मिथिला के लिए तो बना लेकिन इसका यहां के भूगोल से कोई संबंध नहीं रहा। समय-समय पर कुछ प्रतिष्ठित शिक्षकों ने इस पर थोड़ा ध्यान दिया लेकिन उसमें भी निरंतरता नहीं रही। उदाहरण के रूप में हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे डॉ. रमाकांत पाठक ने अपने कार्यकाल में कुछ मिथिला केंद्रित शोध करवाया। इसमें मिथिला में हिन्दी कहानियों का विकास, मिथिला अपभ्रंश का विकास आदि विषयों पर शोध हुए। साथ ही मिथिला के प्रख्यात संत लक्ष्मीनाथ गोसाईं के भक्तिपरक पदों का संकलन डॉ. ललितेश्ववर झा के संपादकत्व में करवाया। लंबे अंतराल के बाद फिर एक बार हिन्दी विभाग की ओर से मगनी राम, बौआ साहेब जो निर्गुण संत थे, के पदों पर सेमिनार किया गया जिसमें कई महत्वपूर्ण आलेख प्रस्तुत किये गए। सभी संत मिथिला के थे। इसके बाद समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रो. उग्रनाथ झा के कार्यकाल में मिथिला की पंजी प्रथा, मुसहर जाति के लोगों के जीवन सहित कुछ मामले पर शोध हुए। हाल के वर्षों में संगीत एवं नाट्य विभाग की ओर से मधुबनी चित्रकला, मिथिला के लोकगीत, सिक्की कला आदि संबंधित सर्टिफिकेट कोर्स शुरू किये गये हैं। ललित बाबू ने मिथिला के लिए विराट सपना देखा और क्षेत्र के लिए कई ऐतिहासिक कार्य भी किया लेकिन मिथिला विश्वविद्यालय ने क्या किया?

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