मैथिली के लिए सर्वमान्य व प्रमाणिक वर्तनी जरूरी
दरभंगा में साहित्य अकादेमी में मैथिली भाषा शोध परिषद की विमर्श-गोष्ठी हुई। भाषाविद डॉ. रामावतार यादव ने मैथिली के लिए सर्वमान्य वर्तनी के निर्धारण की आवश्यकता बताई। अन्य विशेषज्ञों ने भी वर्तनी...

दरभंगा। मैथिली के लिए सर्वमान्य, प्रमाणिक और सार्वजनीन वर्तनी का निर्धारण निहायत जरूरी है। इसी से मैथिली भाषा-साहित्य का वास्तविक उत्कर्ष संभव है। भाषाविद डॉ. रामावतार यादव ने साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के सभागार में मैथिली भाषा शोध परिषद की विमर्श-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए ये बातें कही। डॉ. यादव ने कहा कि लिखित और उच्चरित भाषा में काफी भिन्नता होती है। मिथिला में कोई भी व्यक्ति भाषा नहीं उपभाषा ही बोलते हैं। इसे व्यक्ति-भाषा भी कहते हैं। कथ्य-ध्वनि को दृष्टिगत करने वाला सर्वमान्य एवं स्थिर लेख्य-समूह वर्तनी है। डॉ. यादव ने मैथिली में स्वरों के आधार पर लेखन में अंतर की चर्चा करते हुए इसके समाधान भी बताये।
कई शब्दों के स्वरूप निर्धारण के उपायों से अवगत कराया। उन्होंने कहा कि मैथिली की विशेषताओं में आदरार्थी शब्दों का प्रयोग प्रमुख है। साहित्य अकादमी में मैथिली के प्रतिनिधि डॉ. उदय नारायण सिंह नचिकेता ने कहा कि वर्तनी का निर्धारण कठिन कार्य तो है ही, इसके लिए समय भी देना होगा। ऐसा नहीं कि इसका त्वरित प्रतिफल प्राप्त हो जाय। डॉ. रामानंद झा रमण ने मराठी और तेलुगु का उदाहरण देते हुए कहा कि उन भाषाओं में जिस तरह से वर्तनी के निर्धारण के लिए प्रयास हुए वह स्थिति मैथिली के साथ तो नहीं है, लेकिन ऐसी भाषाओं से मार्गदर्शन तो प्राप्त किया ही जा सकता है। मणिकांत झा के संचालन में महाकवि विद्यापति रचित जय-जय भैरवी के गायन से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। मैथिली साहित्यकार डॉ. भीमनाथ झा ने कहा कि वर्तनी-निर्धारण एक प्रक्रिया है। परिवर्तन भाषा का अनिवार्य व अपरिहार्य गुण है। यह जीवंत भाषा का लक्षण भी है। उन्होंने कहा कि आज के दौर में साहित्येतर लेखन के लिए सर्वस्वीकार्य मान्य लेखन-विधान पर मंथन की आवश्यकता है। उन्होंने जाति, धर्म, क्षेत्र आदि को भुलाकर सहज लेखन शैली निर्धारित करने की आवश्यकता जताई। पूर्व कुलपति डॉ. शशिनाथ झा ने भी अपने विचार रखे। परिषद के निदेशक हीरेंद्र कुमार झा ने संस्था की गतिविधियों से परिचित कराया और वर्तनी, शब्दकोश एवं नियमित पत्रिका के प्रकाशन के संस्था के लक्ष्य को भी सामने रखा। मौके पर डॉ. गंगेश गुंजन, डॉ. अमलेन्दु शेखर पाठक, वंदना झा, आभा झा समेत बड़ी तादाद में शिक्षाविद, साहित्यकार व बुद्धिजीवियों की सक्रिय सहभागिता रही।
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