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नामवर ने हिन्दी आलोचना में साहित्यिक सौष्ठव का किया समावेश

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग में बुधवारा को हिंदी-आलोचना के शिखर पुरुष डॉ. नामवर सिंह के निधन पर एक शोक सभा का आयोजन किया...

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग में बुधवारा को हिंदी-आलोचना के शिखर पुरुष डॉ. नामवर सिंह के निधन पर एक शोक सभा का आयोजन किया...
1/ 2ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग में बुधवारा को हिंदी-आलोचना के शिखर पुरुष डॉ. नामवर सिंह के निधन पर एक शोक सभा का आयोजन किया...
ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग में बुधवारा को हिंदी-आलोचना के शिखर पुरुष डॉ. नामवर सिंह के निधन पर एक शोक सभा का आयोजन किया...
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हिन्दुस्तान टीम,दरभंगाThu, 21 Feb 2019 03:44 PM
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ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के हिंदी-विभाग में बुधवारा को हिंदी-आलोचना के शिखर पुरुष डॉ. नामवर सिंह के निधन पर एक शोक सभा का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर बोलते हुए हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने कहा कि डॉ. नामवर सिंह हिंदी-आलोचना की परंपरा में पंडित रामचंद्र शुक्ल, पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ. रामविलास शर्मा की पंक्ति में खड़े दिखते हैं।उन्होंने आलोचना में साहित्यिक-सौष्ठव का समावेश किया है। मेरा सौभाग्य है कि मैं उस महान गुरु का शिष्य हूँ, जो जितने बड़े साहित्य मीमांसक थे, उतने ही बड़े अध्यापक भी थे। आलोचना में रचना का आस्वाद उत्पन्न करने वाले डॉ. नामवर सिंह ने बड़ी समर्थ और सक्षम पीढ़ी का निर्माण किया है। साहित्यिक गतिविधियों के केंद्र में रहने वाले इस आचार्य का लेखन पारसमणि के समान था। जिसको उन्होंने छू दिया, वही चमकता सितारा बन गया। ऐसे में उनका सरोकार वाद और संवाद ही नहीं, विवादों से भी गहराई तक जुड़ा रहा और इन सब के द्वारा उन्होंने हिंदी की नवीन शक्तियों का उत्खनन किया। कार्यक्रम में अतिथि के रूप में आये बीआरए बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष प्रमोद कुमार सिंह ने नामवर सिंह की साहित्यिक निष्ठा की सराहना की और कहा कि मार्क्सवादी आलोचना के सशक्त हस्ताक्षर होने के अलावा वे एक जिंदादिल कवि भी थे। उनकी कविता की संवेदना गहरी थी, जिसके बल पर उन्होंने नवीन साहित्यिक प्रवृत्तियों की मर्मी समालोचना की। हिंदी में कथालोचना का मार्ग प्रशस्त करने का श्रेय भी उन्हें ही है। उन्होंने हिंदी साहित्य के इतिहास-लेखन के लिए जितने गहरे सूत्र दिए हैं, उनसे एक समर्थ साहित्येतिहास रचा जा सकता है। डॉ. नामवर सिंह में अपेक्षित और अनपेक्षित को परखने की अद्भुत कला थी, जिसके बल पर उन्होंने हिंदी उपन्यास के विशिष्ट मॉडल को प्रकट करना चाहा था।वे किवदन्ति पुरुष भी थे और लीजेंड भी।इस अवसर पर पूर्व मानविकी संकायाध्यक्ष तथा हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. रामचंद्र ठाकुर, डॉ. विजय कुमार, डॉ. सुरेंद्र प्रसाद सुमन तथा डॉ. आनंद प्रकाश गुप्ता ने भी नामवर जी के प्रति अपने-अपने भावोच्छवास तथा उद्गार व्यक्त किए।

शोक सभा में विभाग के वरीय शोधप्रज्ञ उमेश कुमार शर्मा, शंकर कुमार, पार्वती कुमारी, खुशबु कुमारी, प्रिया कुमारी, ज्वालाचंद्र चौधरी समेत बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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