देश की आजादी में रंगमंच की अहम भूमिका : ऋषि
दरभंगा में ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पीजी मैथिली विभाग में मैथिली नाटक एवं रंगमंचक विकास यात्रा विषय पर व्याख्यान हुआ। साहित्यकार ऋषि वशिष्ठ ने नाटक को पंचम वेद बताते हुए कहा कि यह समाज के...

दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के पीजी मैथिली विभाग में मैथिली नाटक एवं रंगमंचक विकास यात्रा विषय पर शनिवार को व्याख्यान का आयोजन किया गया। मुख्य वक्ता बाल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित साहित्यकार ऋषि वशिष्ठ ने कहा कि नाटक को पंचम वेद कहा गया है। रंगमंच ने देश की आज़ादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि समकालीन परिवेश में नाटक समाज के सबसे निचले तबके से लेकर सरकारी स्तर तक, हर तरह के लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने अभिनय के आंगिक, वाचिक, सात्विक और आहार्य तत्वों को महत्वपूर्ण माना। नाटककार का अस्तित्व नाटक की मंचीयता में निहित है।
इसीलिए गांव से लेकर शहर तक नाटकों की प्रस्तुति और मंचन होना बेहद जरूरी है। बताया कि महेंद्र मलंगिया, अरविंद अक्कू, कुणाल, आनंद कुमार झा, कमल मोहन चुन्नू जैसे प्रमुख नाटककार अभी भी गतिशील हैं। अब कहानी और उपन्यास के रंगमंच ने जोर पकड़ लिया है। मैथिली में नाटक की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जो भविष्य में भी जारी रहेगी। यह परंपरा बहुत सशक्त है। अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. दमन कुमार झा ने कहा कि ऋषि वशिष्ठ मैथिली साहित्यकार के साथ ही नाटक एवं रंगमंच के भी अच्छे जानकार हैं। ऋषि ने नाटकों के साथ कई सिनेमा के ्क्रिरप्ट भी लिखे हैं। कार्यक्रम में डॉ. सुनीता कुमारी, डॉ. अभिलाषा कुमारी, राजनाथ पंडित, प्रियंका कुमारी, शिवम कुमार झा, डॉ. सुरेश पासवान, शोधार्थी शीला कुमारी, नेहा कुमारी, मिथलेश कुमार चौधरी, मनोज कुमार, पवन कुमार महतो, प्रवीण कुमार एवं छात्र- छात्राएं थे।
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