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मिथिला से विलुप्त होती जा रही तैराकी की प्राचीन विधा

मिथिला से विलुप्त होती जा रही है तैराकी की प्राचीन विधा। गंडक, बागमती, कोसी, कमला, करेह, जीवछ, गेहूंमा, कमला-बलान, तिलजुगा आदि नदियों की अविरल धाराओं ने तैराकी, गोताखोरी, नौकायन आदि में यहां के लोगों...

मिथिला से विलुप्त होती जा रही तैराकी की प्राचीन विधा
हिन्दुस्तान टीम,दरभंगाMon, 23 Sep 2019 04:47 PM
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मिथिला से विलुप्त होती जा रही है तैराकी की प्राचीन विधा। गंडक, बागमती, कोसी, कमला, करेह, जीवछ, गेहूंमा, कमला-बलान, तिलजुगा आदि नदियों की अविरल धाराओं ने तैराकी, गोताखोरी, नौकायन आदि में यहां के लोगों को महारत हासिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पीढ़ी दर पीढ़ी यह कला यहां के लोगों को विरासत में मिलती रही। मिथिला का बाढ़ से चोली-दामन का साथ रहा है। पग-पग पोखर की विशाल धरोहर इन विधाओं को पुष्पित तथा पल्लवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। युवा पीढ़ी गांव के बच्चे बड़े-बुजुर्गों की देखरेख में यहीं से तैराकी, गोताखोरी तथा नाव चलाने की कला का प्रशिक्षण प्राप्त कर इस विधा में महारत हासिल करती थी। इस कला में लड़कियां तथा महिलाएं भी किसी से पीछे नहीं रहती थीं। लेकिन, समय गुजरने के साथ आधुनिकता की तेज आंधी में यह विधा काफी पीछे छूट गयी। नदियों पर तटबंध बनने के बाद युवा पीढ़ी इस कला से दूर होती चली गयी। नतीजतन तैराकी, गोताखोरी व नौकायन की विधा का क्षरण होने लगा। अब यह विधा नदी के तटों पर बसे गांवों तथा उन इलाकों के लोगों तक ही सिमटकर रह गयी जिन क्षेत्रों में प्रतिवर्ष बाढ़ आती है। इसका परिणाम यह हुआ कि तटबंध टूटने से जब बाढ़ आती है तो डूबकर मरने वालों की संख्या में उतरोत्तर वृद्धि होती जा रही है। जानकार बताते हैं कि 70 के दशक के बाद की पीढ़ी इस कला से वंचित है। बुजुर्गों, शिक्षाविदों तथा विश्लेषकों का कहना है कि सरकार को शारीरिक प्रशिक्षण महाविद्यालय के पाठ्यक्रम में इस विधा को शामिल करना चाहिए। जयदेवपट्टी पंचायत के ग्राम आपदा प्रबंधन दल के सदानंद सिंह व शिवशंकर सिंह ने बताया कि इस वर्ष सिर्फ दरभंगा जिले में डूबने से 39 लोगों की जान जा चुकी है। इनमें से 14 बाढ़ में डूबने से मरे और 25 सेल्फी, खेलने, मनोरंजन, स्टंट आदि के चक्कर में जान गंवा बैठे। उन्होंने कहा कि सरकार स्कूलों में तैराकी को पाठ्यक्रम में शामिल कर शारीरिक प्रशिक्षित शिक्षक या ग्राम आपदा बल की सहायता से बच्चों के लिए तैराकी की प्रशिक्षण की व्यवस्था करे। इससे बच्चे आगे चलकर बाढ़ में दूसरों की भी मदद कर सकेंगे।

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