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अनौपचारिक रूप से प्रसिद्ध विवि थी प्राचीन मिथिला

दरभंगा। महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय, दरभंगा, मैथिली साहित्य संस्थान एवं फेसेस, पटना के संयुक्त...

अनौपचारिक रूप से प्रसिद्ध विवि थी प्राचीन मिथिला
हिन्दुस्तान टीम,दरभंगाSun, 25 Jul 2021 09:00 PM
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दरभंगा। महाराजाधिराज लक्ष्मीश्वर सिंह संग्रहालय, दरभंगा, मैथिली साहित्य संस्थान एवं फेसेस, पटना के संयुक्त तत्वावधान में रविवार को पुस्तक विमोचन एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसमें प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. रत्नेश्वर मिश्र ने कहा कि प्राचीन मिथिला अनौपचारिक रूप से स्थापित विश्वविद्यालय थी। मिथिला की गुरु-शिष्य परंपरा अद्भुत थी जिसमें प्रत्येक विद्वान गुरु होते थे तथा एकल गुरु एवं शिष्य की परंपरा यहां स्थापित थी। संग्रहालयाध्यक्ष डॉ. शिव कुमार मिश्र लिखित ‘एजुकेशन इन एन्सिएंट मिथिला नामक पुस्तक का ऑनलाइन विमोचन करते हुए प्रो. मिश्र ने कहा कि प्राचीन शिक्षा की जो परंपरा मिथिला में स्थापित थी वह 20वीं सदी तक चलती रही। यहां की शिक्षा व्यवस्था में धर्म, कर्म एवं चरित्र निर्माण की प्रमुखता थी। यहां के गुरु विद्वान के साथ-साथ दरिद्र भी होते थे। यहां के लोग शास्त्रार्थ के माध्यम से विजय प्राप्त करते थे तथा तर्क एवं ज्ञान के बल पर सत्य तक पहुंचते थे। प्रो. मिश्र के अनुसार मैथिल विद्वान आग्र्युमेंटेटिव होते थे। यद्यपि मिथिला वैदिक शिक्षा की केन्द्र थी लेकिन अनेक दर्शन के साथ-साथ धर्मशास्त्र, स्मृति आदि पर भी यहां अनेक गंभीर काम हुए। उन्होंने कहा कि डॉ. शिव कुमार मिश्र की पुस्तक में पालिम्सेस्ट शब्द का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि भारतीय संस्कृति की तरह मिथिला की शिक्षा परंपरा परत-दर-परत चलती रही। लेकिन अंग्रेजी शासन द्वारा यहां की सिस्टम ऑफ नॉलेज को ही नष्ट करने का काम किया गया। संग्रहालय, बिहार के पूर्व निदेशक डॉ. उमेश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि मिथिला में आदमी को आदमी बनाने की शिक्षा दी जाती थी तथा गुरु के पास जो भी होता था उसे शिष्य को प्रदान किया जाता था। डॉ. द्विवेदी ने कहा कि डॉ. शिव कुमार मिश्र की पुस्तक में जितने पुरास्थलों का उल्लेख किया गया है वह अपने आप में अद्भुत है। इसके द्वारा उन विद्वानों को अपने पूर्वाग्रहों को त्यागने पर मजबूर होना पड़ेगा जो अभी तक ये समझकर चलते थे कि मिथिला के सारे पुरास्थल कोसी एवं कमला की तेज धारा में बह गए। कार्यक्रम के आरंभ में मैथिली साहित्य संस्थान के सचिव भैरव लाल दास ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि मिथिला की शिक्षा का सीधा संबंध चरित्र निर्माण से था। श्री दास ने कहा कि नालंदा एवं विक्रमशिला विश्वविद्यालय संगठित विवि था। इसलिए इन्हें नष्ट करने में आसान हुआ लेकिन मिथिला में इतनी संख्या में शिक्षण संस्थान थी जिन्हें नष्ट करना नामुमकिन था। इसीलिए ये संस्थान हजारों साल तक परंपरागत रूप से चलते रहे। कार्यक्रम का संचालन करते हुए फेसेस, पटना की सचिव सुनीता भारती ने अतिथियों, पुस्तक एवं लेखक के विषय में जानकारी प्रदान की। कार्यक्रम में डॉ. अवनीन्द्र कुमार झा, डॉ. पंकज कुमार झा, डॉ. जलज कुमार तिवारी, राम शरण अग्रवाल, डॉ. अशोक कुमार सिन्हा, डॉ. सुशांत कुमार, चंद्र प्रकाश, राजीव राय, अरविंद कुमार सिंह, डॉ. अनंताशुतोष द्विवेदी, प्रो. दीपामणि हालै मोहन्ती, फवाद गजाली, डॉ. रियाजुल मिड्डे, प्रभात कुमार चौधरी, मुरारी कुमार झा सहित देश के कई विद्वानों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में संग्रहालयाध्यक्ष डॉ. मिश्र ने अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया।

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