ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News बिहार छपराइनसे सीखें : महिलाओं ने अपनी मेहनत से बदली तकदीर महिलाओं ने गोपुर को बनाया ‘सब्जीग्राम

इनसे सीखें : महिलाओं ने अपनी मेहनत से बदली तकदीर महिलाओं ने गोपुर को बनाया ‘सब्जीग्राम

राजीव सारण जिले के गड़खा प्रखंड के गोकुर गांव की महिलाओं ने मेहनत से अपनी तकदीर और गांव की तस्वीर बदल डाली है। किराए (बटाई पर ) के खेत में पसीना बहा कर हरित क्रांति का महिलायें ऐसी वाहक बनीं हैं कि...

इनसे सीखें : महिलाओं ने अपनी मेहनत से बदली तकदीर 
महिलाओं ने गोपुर को बनाया ‘सब्जीग्राम
हिन्दुस्तान टीम,छपराSun, 11 Feb 2018 01:35 AM
ऐप पर पढ़ें

राजीव सारण जिले के गड़खा प्रखंड के गोकुर गांव की महिलाओं ने मेहनत से अपनी तकदीर और गांव की तस्वीर बदल डाली है। किराए (बटाई पर ) के खेत में पसीना बहा कर हरित क्रांति का महिलायें ऐसी वाहक बनीं हैं कि उनका गांव गोपुर अब बन गया है ‘सब्जीग्राम।

नारी श्रम की बदौलत इस गांव को ग्रीन वेजिटेबल विलेज के रूप में पहचान मिल गयी है। खुद की जमीन काफी कम, फिर भी खेती करने का उनमें है जज्बा जबर्दस्त। महम्मदपुर पंचायत के गोपुर गांव की दर्जनों महिलाएं सुबह-सुबह हाथ में कुदाल व खुरपी लेकर जब चलती हैं तो एक साथ खेत पर निकलने का कारवां बन जाता है। धान- गेहूं से नहीं सब्जी से पूरे करेंगी सपने करीब तीन सौ आबादी वाले इस गांव में अधिकतर पिछड़ी व अति पिछड़ी जाति के लोग ही रहते हैं। आधा दर्जन लोग सरकारी नौकरी में हैं। बाकी किसानी या मजदूरी।

दो सौ से अधिक किसानों वाले इस गांव में खुद की जमीन काफी कम है। ऐसे लोगों ने किराए पर जमीन ले ली। पुरुषों की खेती देख महिलाएं आगे आईं और फिर इस कदर रमीं कि धान व गेहूं की फसल उगाने की बजाय सब्जी की खेती से सफल गृहस्थी के सपने बुनने लगी हैं। बच्चों के स्कूल की फी और अन्य काम भी अब इसी आमदनी से पूर्ण होता है। डेढ़ दशक पहले हुई शुरुआतकरीब डेढ़ दशक पहले खेती की शुरुआत धनवा देवी, तारा देवी व मुनदेव देवी ने की। इसके बाद एक ऐसा कारवां बना कि सैकड़ों महिलायें इस कार्य में जुट गईं। शुरुआती दौर में काम कर रही महिलाओं पर गांव के कुछ लोगों ने तंज भी कसा पर आज लालवती, गीता, बिंदी , चिंता, राजकुमारी सरीखी कई महिलाएं प्रेरणा का श्रोत बनी हैं। गांव को एक नई पहचान मिल गयी है। पुरुष सदस्य दूसरे प्रदेशों में करते हैं रोजगारमहिलाओं में खेती के प्रति इस जज्बे को देख उन घरों के पुरुष सदस्य निश्चिन्त होकर खुद भी स्वरोजगार के लिए अन्य प्रदेशों में चले गए। इनमें से अधिकतर कोलकाता, सियालदह व अन्य शहरों में सब्जी बेचने का काम कर रहे हैं।सब्जियों की खपत कोलकाता के बाजारों मेंपूरा गोपुर गांव सब्जी की खेती करता है। खेतों में उपजी इन सब्जियों को व्यापारी उनके खेतों में गाड़ी से पहुंच कर खरीद लेते हैं। जो सब्जियां बच जाती हैं उसे एक जगह इकठ्ठा कर ली जाती है और उसे यहां से 17 किमी दूर छपरा जंक्शन ले जाया जाता है। फिर यहां से इन सब्जियों को ट्रेन से सियालदह और कोलकाता भी भेजा जाता है। मुख्य रूप से चना, टमाटर, मटर और बैंगन की खपत अधिक होती है। पहले होती थी झिझककई महिला किसानों ने बताया कि खेत में काम करने जाने या फिर मजदूरों से कराने में थोड़ा अजीब लगता था। झिझक होती थी, काफी अड़चनें भी आईं, लेकिन धीरे-धीरे स्थिति सामान्य हो गई।

चालीस फीसदी सब्जी इसी गांव कीतीन दर्जन महिलाओं समेत गांव के 80 से 90 किसान बैंगन, फूलगोभी, बंदगोभी, पालक, चना, टमाटर और अन्य सब्जियों की जमकर खेती करते हैं। गड़खा बाजार पर बिकने वाली 40 फीसदी सब्जी इसी गांव से आती है। हकमा मोड़ पर भी अधिकतर इसी गांव के किसान सब्जी बेचने आते हैं। सरकारी प्रोत्साहन की है जरूरतमहिलाओं में किसानी के प्रति लगन और खेती के लिए उनके मनोयोग को देख सरकारी प्रोत्साहन की जरूरत है। स्थानीय मुखिया दिनेश राय, प्रमुख प्रतिनिधि अजय महतो ने कहा कि सरकारी स्तर पर उन लोगों को कोई भी सुविधा या प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है। प्रखंड का प्रमुख सब्जी उत्पादक गांव होने के बावजूद यहां एक भी राजकीय नलकूप नहीं है। सिंचाई पूरी तरह निजी पंपसेटों पर निर्भर है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें