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गांधी जयंती: सारण की धरती पर राष्ट्रपिता के बार-बार पड़े चरण, महिलाओं ने बापू को दान में दिये आभूषण

राष्ट्रपिता गांधी जब-जब बिहार दौरे पर आये उनके पांव बरबर सारण की ओर बढ़ गये। सारण से उनका यह आत्मीय लगाव यहां के लोगों की स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका को लेकर था। गांधी को महात्मा बनाने में...

Malay Ojha छपरा। शिवानुग्रह नाराण सिंह, Fri, 2 Oct 2020 08:15 AM
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राष्ट्रपिता गांधी जब-जब बिहार दौरे पर आये उनके पांव बरबर सारण की ओर बढ़ गये। सारण से उनका यह आत्मीय लगाव यहां के लोगों की स्वतंत्रता संग्राम में अग्रणी भूमिका को लेकर था। गांधी को महात्मा बनाने में यहां के लोगों की भूमिका अहम रही। सारण के ब्रजकिशोर प्रसाद ने ही चम्पारण के किसान राज कुमार शुक्ल को बापू से मिलवाने लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में मिलवाने ले गये थे। 2016 के दिसंबर में आयोजित इस अधिवेशन में दोनों ने चम्पारण के निलहा अत्याचार की कहानी सुनायी और उन्होंने चम्पारण यात्रा की हामी भरी। इस वाकया की पुष्टि गांधी की आत्मकथा व इतिहासकार केके दत्ता की पुस्तक करती है। 15 अप्रैल 1917 को बापू चम्पारण पहुंचे तो सारण के तीन स्वतंत्रता सेनानी डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, मौलाना मजहरुल हक व ब्रजकिशोर प्रसाद उनके सारथी बने। सारण की सबसे लंबी यात्रा बापू ने 1934 के प्रलंयकारी भूकंप के बाद की थी। उन्होंने सोनपुर से गोपालगंज तक की गंडक तटबंध के रास्ते पैदल मार्च किया था।

राष्ट्रपिता गांधी की दूसरी चम्पारण यात्रा सारण से

मौलाना मजहरुल हक के साथ बापू पहली बार 27 जनवरी 1918 को छपरा आये थे। शहर के करीमचक मोहल्ले में मौलवी अली साहब के मकान में वे ठहरे। उन्ही के मकान के प्रांगण में उनकी सभा भी हुयी। इस सभा में उन्होंने कांगे्रस को संगठित करने का आह्वान किया था। यहीं से मोटर गाड़ी से हक के साहब के साथ वे दूसरी बार चम्पारण यात्रा पर गये थे। पत्नी को लिखे हक साहब के पत्र में इस यात्रा का विस्तृत व्रितांत है। हक साहब की अंग्रेजी में लिखा यह पत्र कई उस वक्त के कई पत्रिकाओं व किताबों में प्रकाशित हैं।

बाबू की यात्रा में फिरंगिया गीत को मिली प्रसिद्धि

असहयोग आंदोलन के दौरान महत्मा गांधी 6 दिसंबर 1920 को देशव्यापी दौरे के क्रम में छपरा पहुंचे। उनके साथ मौलाना शौकत अली भी थे। शहर के विशेश्वरी सेमनरी स्कूल के मौदान में उनकी सभा हुयी। तब इस स्कूल का नाम छपरा कौलेजिएट था। सारण गजेटियर के अनुसार इस सभा में बेहिसाब भीड़ उमड़ी थी। सभा स्थल पर कई नौकरी पेशा लोगों ने नौकरी छोड़ने की घोषणा कर दी। दर्जनों वकील, मोख्तार, छात्र-नौजवान व वुद्धिजीवियों ने बापू के आंदोलन में अपने को समर्पित करने की शपथ ली। इस सभा में राजेन्द्र कॉलेज के तत्कालीन प्राचार्य मनोरंजन प्रसाद सिन्हा ने अपनी ‘फिरंगिया’ गीत सुनायी। कहते हैं कि इस गीत को इतनी प्रसिद्धि मिली कि बिहार व यूपी के भोजपुरिया क्षेत्र में जहां भी आंदोलनकारियों की सभा होती उसका प्रारंभ इसी गीत से होता। बापू की सभाओं में यह गीत खूब गाये गये।

जलखाचक के गांधी कुटीर में बापू ने दिया दान

जिले के दिघवारा प्रखंड स्थित मलखाचक गांधी कुटीर को देखने बापू 1923 में पहुंचे। यहां रचनात्मक स्वदेश कार्यक्रम के तहत सूत कटाई, करघा संचालन व सूती वस्त्रों का निर्माण होता था। इस कुटीर की स्थापना यहां के स्वतंत्रता सेनानी रामविनोद सिंह ने किया था। इस कुटीर के स्वदेशी कार्यक्रम को देख बापू इतने प्रभावित हुए कि उस जमाने में 20 हजार रुपये का अनुदान दिया था। बापू के साथ कई बड़े क्रांतिकारी नेता थे और सबों ने कुछ न कुछ रकम इस कुटीर के संचालन के लिए दान किया। स्वतंत्रता आंदोलन के  इतिहासों में इस दान का जिक्र किया गया है।

सोनपुर में महिलाओं ने दान किये बेशुमार आभूषण

सोनपुर में बापू गांधी कस्तूरबा गांधी के साथ 1927 में आये थे। यहां के धर्मशाला मैदान में बड़ी सभा आयोजित हुयी थी। सभा में महिलाओं की उपस्थिति नहीं थी, जो कस्तूरबा गांधी को नगवार लगा। कार्यकर्ताओं ने बताया कि बड़ी संख्या मे महिलाएं चिरैया मठ में एकत्रित हैं और वे अपने लिए वहां सभा चाह रही हैँ। सभा समाप्त कर कस्तूरबा गांधी के साथ बापू चिरैया मठ गये। वहां महिलाओं ने बेसुमार आभूषण उन्हें दान दिये। कहते हैं कि दान में इतना आभूषण महात्मा गांधी को देश में कहीं नही मिला। इस सभा के बाद दोनों सोनपुर स्वराज आश्रम गये जहां कांग्रेस कार्यकार्ताओं ने एकत्र किए हुए चंदा के रुपये के थैले बापू को दिये।

प्रलयकारी भूकंप में बापू ने सारण में किया पैदल मार्च

प्रलंयकारी भूकंप के बाद 1934 के 27 मार्च को महात्मा गांधी छपरा पहुंचे। वे दहियावां मोहल्ले के डॉ. सैयद महमुद के घर ठहरे। पं. गिरिश तिवारी व मुहम्मद हाफीज को उनकी खातिरदारी के लिए कांग्रेस ने नियुक्त किया था। मानिकचंद ने उनके कार्यक्रम का संचालन किया था। उन्होंने गंडक तटबंध के रास्ते कार्यकर्ताओं की टोली के साथ सोनपुर से गोपालगंज की पैदल लंबी यात्रा की। भुकंप की त्रासदी का अवलाकन किया। इस क्रम में वे परसा के दियारा, अमनौर के परशुरामपुर, मशरक, पानापुर आदि जगहों पर ग्रामीणों से घंटों बातें की।

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