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भभुअर में चूड़ा-दही खाकर किया गया महर्षि भार्गव का गुणगान

लु भार्गव सरोवर में स्नान कर श्री भार्गवेश्वर शिव का दर्शन व पूजन किए तथा अन्न, वस्त्र आदि दान किए। इसके बाद चूड़ा-दही का प्रसाद ग्रहण किए गए तथा महर्षि भार्गव को याद करते हुए भजन-कीर्तन के बीच रात्रि...

भभुअर में चूड़ा-दही खाकर किया गया महर्षि भार्गव का गुणगान
हिन्दुस्तान टीम,बक्सरSat, 27 Nov 2021 01:40 PM
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बक्सर। निज संवाददाता

पंचकोशी परिक्रमा का काफिला शुक्रवार को सदर प्रखंड के भभुअर स्थित भार्गव आश्रम पहुंचा। नारद आश्रम स्थित नदांव में रात्रि विश्राम के बाद पंचकोशी यात्री तड़के रवाना हुए तथा तीसरे पड़ाव स्थल पर पहुंचकर भार्गव सरोवर पर डेरा डाले। वहां श्रद्धालु भार्गव सरोवर में स्नान कर श्री भार्गवेश्वर शिव का दर्शन व पूजन किए तथा अन्न, वस्त्र आदि दान किए। इसके बाद चूड़ा-दही का प्रसाद ग्रहण किए गए तथा महर्षि भार्गव को याद करते हुए भजन-कीर्तन के बीच रात्रि विश्राम किए गए।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, पौराणिक काल में महर्षि भार्गव मुनी का आश्रम भभुअर में था। महर्षि वहां निवास कर तपस्या व साधना कर रहे थे। परिक्रमा पर निकले प्रभु श्रीराम तीसरे दिन भार्गव मुनी के आश्रम पर पहुंचे तथा उनका कुशल-क्षेम जाने। आश्रम में आने पर महर्षि भार्गव द्वारा प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण जी को चूड़ा-दही का भोग लगाकर अतिथि सत्कार किया गया था।

जयघोष के बीच संतों ने की प्रक्रिमा:

सिद्धाश्रम व्याघ्रसर (बक्सर) पंचकोशी परिक्रमा विकास समिति के अध्यक्ष व बसांव पीठाधीश्वर महंत अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज समेत अन्य धर्माचार्यों की अगुवाई में श्रद्धालुओं ने भार्गव सरोवर का परिक्रमा किया। परिक्रमा करते हुए श्रद्धालु भार्गव मुनी को याद करते हुए भगवान के जयघोष कर रहे थे। परिक्रमा के उपरांत कई पीठों के महंत व धर्माचार्य आदि साधु-संत चूड़ा-दही ग्रहण किए। इस माके पर समिति द्वारा सभी आगंतुकों के बीच चूड़ा-दही का वितरण कर परंपरागत प्रसाद खिलाया गया।

भार्गव सरोवर के शिल्पी हैं लक्ष्मण जी :

धार्मिक परिचर्चा के माध्यम से धर्माचार्यों द्वारा भार्गव आश्रम में पंचकोशी परिक्रम की महिमा की बखान की गई। कहा गया कि भभुअर का पौराणिक नाम भार्गव आश्रम है। जो बाद में अपभ्रंश होकर अब भभुअर हो गया है। भार्गव सरोवर के महत्व को बताते हुए संतों ने कहा कि इसका शिल्पकार श्री लक्ष्मण जी हैं। कथा का उल्लेख करते हुए कहा गया कि भार्गव आश्रम में पेयजल की कमी खलने के बाद प्रभु श्रीराम ने अनुज लक्ष्मण जी को पानी के उपाय का सुझाव दिया। श्री लक्ष्मण जी ने पृथ्वी पर अपने बाण से प्रहार किया। जिससे जमीन से जल का सोता फूट पड़ा। वही जल श्रोत तालाब के रूप में विकसित हो गया। परिचर्चा में बसांव पीठाधीश्वर श्री अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज, श्री लक्ष्मीनारायण पीठ के पीठाधीश्वर श्री राजगोपालाचार्य ‘त्यागी जी महाराज, श्रीनिवास पीठ के महंत श्री दामोद प्रपन्नाचार्य जी महाराज तथा श्री सीताराम विवाह महोत्सव आश्रम के महंत श्री राजाराम शरण जी महाराज आदि धर्माचार्य शामिल हुए। इस मौके पर पं. छविनाथ त्रिपाठी, सुदर्शनार्चाय ‘भोला बाबा, उद्धव प्रपन्नाचार्य जी के अलावा समिति के संयुक्त सचिव व वरिष्ठ अधिवक्ता सूबेदार पाण्डेय समेत अन्य लोग मौजूद थे।

आज नुआंव पहुंचेगा पंचकोशी का जत्था

भभुअर में विश्राम के बाद पंचकोशी का चौथा पड़ाव शनिवार को बड़का नुआंव स्थित अंजनी सरोवर पर रहेगा। मान्यता के अनुसार वहां महर्षि उद्दालक का आश्रम था। वे वहां रहकर तपस्या कर सिद्धि प्राप्त किए थे। यही नहीं श्री हनुमान जी की माता अंजनी भी कभी वहां रही थी। परिक्रमा के क्रम में चौथे दिन प्रभु श्रीराम वहां पहुंचे थे तथा महर्षि उद्दालक से मुलाकात कर उनकी कुशलता से अवगत हुए थे। इस दौरान ऋषि उद्दालक जी ने प्रभु श्रीराम समेत दोनों भाइयों को स्थानीय व्यंजन सत्तू-मूली खिलाकर उनकी आवभगत किए थे। इसी के तहत साधु-संत व श्रद्धालु वहां पहुंचते अंजनी सरोवर में स्नान व पूजा कर सत्तू-मूली का प्रसाद ग्रहण करते हैं।

भभुअर में होती है चित्त की शुद्धि

आचार्य श्रीकृष्णानंद जी पौराणिक ‘शास्त्रीजी ने बताया कि भार्गव आश्रम में विधि-विधान के साथ पंचकोशी परिक्रमा कर रात बिताने से चित्त की शुद्धि होती है। पौराणिक कथा का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि सर्वश्रेष्ठ देव की पहचान हेतु भगवान विष्णु के छाती पर प्रहार करने के बाद महर्षि भुगु व्याकुल हो गए थे। ब्रह्माजी के कहने पर चित्त की शांति हेतु वे सिद्धाश्रम (बक्सर) क्षेत्र में आश्रम बनाकर तपस्या करने लगे। प्रभु श्रीराम वहां पहुंचकर उन्हें भगवान की माया न सताने के प्रति आश्वस्त किए, तब उन्हें सिद्धि व चित्त को शांति मिली थी। शास्त्रीजी ने बताया कि पंचकोशी के दौरान भार्गव सरोवर में स्नान करने से पाप रहित होकर बैकुंठ लोक में निवास करने का फल प्राप्त होता है। क्योंकि पंचकोश यात्रा के दौरान भगवान श्रीराम व लक्ष्मण ने उक्त सरोवर में त्रिकाल स्नान कर भार्गवेश्वर महादेव की पूजा की थी।

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