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नालंदा के 3 हजार एकड़ में होगी टपक विधि से खेती

नालंदा में कलमी पौधा तैयार करने के लिए 25 युवा किसानों को चार दिवसीय ट्रेनिंग दी गई। उन्हें इसका प्रमाणपत्र डीएचओ राम कुमार ने कृषि विज्ञान केंद्र में शुक्रवार को...

नालंदा के 3 हजार एकड़ में होगी टपक विधि से खेती
हिन्दुस्तान टीम,बिहारशरीफFri, 23 Aug 2019 07:57 PM
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नालंदा में कलमी पौधा तैयार करने के लिए 25 युवा किसानों को चार दिवसीय ट्रेनिंग दी गई। उन्हें इसका प्रमाणपत्र डीएचओ राम कुमार ने कृषि विज्ञान केंद्र में शुक्रवार को दिया। कहा कि प्रमाणपत्र से उन्हें कृषि विस्तार की योजनाओं का लाभ मिलेगा। डीएचओ ने बताया कि वर्तमान में जल संरक्षण काफी प्रासंगिक है। महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को उद्यान विभाग ने इसी विषय को समर्पित करने की ठानी है।

हर ब्लॉक में 150 एकड़ यानि जिले में तीन हजार एकड़ में टपक विधि (सूक्ष्म सिंचाई) से खेती की जाएगी। इसमें सिंचाई के लिए टपक विधि मॉडल अपनाने पर 90 प्रतिशत व फुहार विधि मॉडल पर 75 फीसदी अनुदान दिया जाएगा। इस कार्यक्रम में छोटी जोत के किसानों का भी ख्याल रखा गया है। यदि किसान समूह में खेती करते हैं तो समूह की प्रति पांच हेक्टेयर कृषि जोत पर एक सामूहिक नलकूप का लाभ मिलेगा। इसमें शत-प्रतिशत अनुदान देने का प्रावधान रखा गया है। सभी योजनाओं के लाभ की राशि किसानों के बैंक खातों में भेज दी जाएगी।

करें केला व अमरूद की खेती, बनेंगे समृद्ध:

डीएचओ राम कुमार ने बताया कि क्षेत्र विस्तार कार्यक्रम के तहत जिलें में 10 हेक्टेयर में केला और तीन हेक्टेयर में अमरूद की खेती का लक्ष्य मिला है। केले की खेती के लिए किसानों को जी-9 प्रजाति के पौधे मिलेंगे। जबकि, अमरूद के लिए लखनऊ- 49 व इलाहाबादी सफेदा प्रजाति के पौधे उपलब्ध कराये जाएंगे। किसानों को प्रति एकड़ एक हजार 234 पौधे दिये जायेंगे।

मशरूम उत्पादन पर 50 फीसदी अनुदान:

कृषि विज्ञान केन्द्र में मशरूम उत्पादन की ट्रेनिंग 25 किसानों को दी जा रही है। उन्हें डीएचओ राम कुमार ने बताया कि मशरूम उत्पादन को बढ़ावा के लिए निर्माण आदि पूंजीगत खर्च के साथ व्यय पर 50 फीसदी का अनुदान दिया जाता है।

सूक्ष्म सिंचाई से 60 फीसदी जल की बचत:

विषय वस्तु विशेषज्ञ डॉ. विभा रानी ने बताया कि कृषि या बागवानी के लिए सूक्ष्म सिंचाई तकनीक अपनाकर किसान 60 फीसदी तक जल की खपत कम कर सकते हैं। यही नहीं, सूक्ष्म सिंचाई पद्धति से आप मिट्टी की उर्वरा शक्ति के क्षय को भी बचा सकते हैं। यह आंकड़ा 30 से 35 फीसदी का होता है, जो जल-प्लावन की स्थिति में स्थानांतरित हो जाता है। कार्यक्रम में केंद्र प्रभारी डॉ. ब्रजेन्दु कुमार, डॉ. ज्योति सिन्हा, डॉ. उमेश नारायण उमेश, डॉ. संजीव रंजन व अन्य उपस्थित थे।

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