वेणुवन से गुरपा तक की 5 जनवरी से शुरू होगी महाकाश्यप यात्रा
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वेणुवन से गुरपा तक की 5 जनवरी से शुरू होगी महाकाश्यप यात्रा दर्जनों देशों के भिक्षुओं के अलावा विद्धान होंगे शामिल फोटो : गुरपा हिल : गया का गुरपा हिल। नालंदा, कार्यालय संवाददाता। महात्मा बुद्ध के परम शिष्यों में शुमार महाकाश्यप (पाली में महाकस्सप) की याद में 5 जनवरी से वेणुवन से गुरपा तक यात्र की जाएगी। इसमें दर्जनों देशों के भिक्षुओं के अलावा विद्वान शामिल होंगे। इसका उद्देश्य विश्व शांति की कामना के साथ ही महाकाश्यप की वेणुवन से उनके समाधि स्थल को देश-दुनिया के सामने लाना और अंतरराष्ट्रीय संबंधों को सकारात्मक दिशा देना है। यात्रा का आयोजन नव नालंदा महाविहार के अलावा लाइट ऑफ बुद्ध धम्म फाउंडेशन के प्रमुख वांग्मो डिक्सी द्वारा किया जा रहा है। नव नालंदा महाविहार के कुलपति डॉ. सिद्धार्थ सिंह ने बताया कि बौद्ध धर्म में उन्हें एक प्रबुद्ध शिष्य माना जाता है, जो तपस्वी अभ्यास में सबसे आगे थे। महाकाश्यप ने बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद मठवासी समुदाय का नेतृत्व संभाला और प्रथम बौद्ध संगीति की अध्यक्षता की। उन्हें कई प्रारंभिक बौद्ध स्कूलों का पहला कुलपति माना जाता था। बौद्ध ग्रंथों के अनुसार उन्होंने कई पहचानें धारण कीं। त्यागी संत, कानून निर्माता, व्यवस्था-विरोधी व्यक्ति, लेकिन मैत्रेय, भविष्य के बुद्ध के समय में ‘भविष्य के न्याय के गारंटर भी थे। कैसे बने महाकाश्यप : बौद्ध ग्रंथों के अनुसार महाकाश्यप का जन्म एक गांव में पिप्पली के रूप में हुआ था । उन्होंने भद्र-कपिलानी नामक महिला से विवाह किया था। हालांकि, दोनों ही ब्रह्मचारी जीवन जीने की आकांक्षा रखते थे और उन्होंने अपने विवाह को संपूर्ण नहीं करने का निर्णय लिया। कृषि और इससे होने वाले नुकसान से थक जाने के बाद दोनों ने भिक्षु बनने के लिए सामान्य जीवन छोड़ दिया। बाद में पिप्पली की मुलाकात बुद्ध से हुई। तब उन्हें एक भिक्षु के रूप में नियुक्त किया गया और उनका नाम कश्यप रखा गया। लेकिन, बाद में उन्हें अन्य शिष्यों से अलग करने के लिए महाकाश्यप कहा जाने लगा। वस्त्र का आदान-प्रदान : महाकाश्यप बुद्ध के इतने प्रिय थे कि बुद्ध ने उनके साथ अपने वस्त्र का आदान-प्रदान किया, जो बौद्ध शिक्षा के संचरण का प्रतीक था। बुद्ध के दाह-संस्कार में उनकी प्रमुख भूमिका थी। जानकार दीपक आनंद ने बताया कि जीवन के अंतिम दौर में महाकाश्यप वेणुवन से गुरपा जाकर समाधि ली थी। वहां वे अब भी दूसरे बुद्ध के आने का इंतजार कर रहे हैं। दूसरे बुद्ध को वे वही वस्तर पहनाएंगे। कई ग्रंथों में भी कहा गया है कि उनका भौतिक अवशेष मैत्रेय बुद्ध के आने तक कुक्कुटपाद नामक पर्वत के नीचे गुफा में बरकरार रहेगा। इस कहानी ने कई पंथों और प्रथाओं को जन्म दिया है और आधुनिक समय के आरंभ तक कुछ बौद्ध देशों को प्रभावित किया है। उन्हें बौद्ध धर्म के झेन सम्प्रदाय का पहला प्रधान भी माना जाता है। वे भगवान बुद्ध के एकमात्र ऐसे शिष्य थे, जिनके साथ भगवान बुद्ध ने वस्त्रों का आदान-प्रदान किया था। बुद्ध ने बहुत बार महाकाश्यप की बड़ाई भी की थी और महाकाश्यप को अपने बराबर का स्थान दिया था। मगध में पैदा हुए : महाकाश्यप कपिल और उन्की पत्नी सुमन देवी के पुत्र के रूप में मगध में पैदा हुए। वे काफी धन-दौलत व सुख-सुविधाओं के बीच बड़े हुए। उनके न चाहते हुए भी उनका विवाह कर दिया गया। अपने माता-पिता की मृत्यु के बाद कुछ समय तक उन्होंने अपनी पत्नी के साथ अपने माता-पिता के धन-दौलत को सम्भाला। लेकिन, कुछ समय बाद उन दोनों ने संन्यासी बनने का फैसला कर लिया। गुरपा पहाड़ी : गुरपा पहाड़ी को कुक्कुटपाद या गुरुपादका के नाम से भी जाना जाता है। यह बोधगया से 26 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित एक बौद्ध व हिन्दू तीर्थ स्थल है। इसे गंगा के मैदानों की सबसे ऊंची चोटियों में से एक माना जाता है। शिखर तक पहुंचने के लिए एक उबड़-खाबड़ खड़ी पगडंडी है। पहाड़ की चोटी पर एक स्तूप और एक बौद्ध मंदिर है। ह्वेनसांग सहित कई बौद्ध तीर्थयात्री इस स्थान पर गये थे।
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