महागठबंधन में सीटों की जंग, CPI माले और VIP की 30-30 सीटों की मांग से RJD की बढ़ी टेंशन
संक्षेप: बिहार चुनाव से पहले महागठबंधन में सीटों का बवाल गहराया। सीपीआई (माले) ने 30 सीटों की लिस्ट दी, वहीं वीआईपी भी 30 सीटों पर अड़ी। जिसे लेकर आरजेडी के लिए मुश्किलें बढ़ गई हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव से पहले महागठबंधन के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर तनाव बढ़ गया है। अब पार्टियां खुलकर अपनी-अपनी मांगें रख रही हैं। सीपीआई (माले) ने आरजेडी को अपनी 30 सीटों की सूची दे दी है और साफ कहा है कि इन सीटों पर कोई समझौता नहीं होगा। वहीं मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी भी कम से कम 30 सीटों की मांग कर रही है। इस वजह से आरजेडी की मुश्किलें बढ़ गई हैं, क्योंकि गठबंधन की बाकी पार्टियां भी ज्यादा सीटें पाने की कोशिश में हैं।
सीपीआई (माले) ने ठुकराया 19 सीटों का ऑफर
तेजस्वी यादव की पार्टी आरजेडी ने सीपीआई (माले) को वही 19 सीटों का ऑफर दिया था, जितनी उसने 2020 के विधानसभा चुनाव में लड़ी थीं। लेकिन माले ने इसे खारिज कर दिया। पार्टी ने मंगलवार को नई 30 सीटों की सूची भेज दी और साफ कहा कि यह सूची बिना किसी समझौते के मानी जानी चाहिए। माले सूत्रों ने बताया, “19 सीटों का ऑफर अस्वीकार्य है। अब हमने 30 सीटों की लिस्ट दी है जो नॉन-नेगोशिएबल है। अब गेंद तेजस्वी यादव के पाले में है।”
2020 में माले ने 19 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 12 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में भी पार्टी ने 3 सीटों पर उम्मीदवार उतारे और 2 सीटें जीतीं। इस प्रदर्शन को देखते हुए माले अब अपना दायरा बढ़ाना चाहती है और दरभंगा, मधुबनी, गया, नालंदा और चंपारण जैसे नए जिलों की सीटें चाहती है।
वीआईपी भी 30 सीटों पर अड़ी
महागठबंधन की एक और सहयोगी पार्टी, विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के प्रमुख मुकेश सहनी ने भी आरजेडी के सामने कम से कम 30 सीटों की मांग रखी है। सूत्रों का कहना है कि अगर सहनी को उनकी मनपसंद सीटें नहीं मिलतीं, तो वे अन्य विकल्पों पर विचार कर सकते हैं। सहनी का कहना है कि पार्टी का जनाधार अब कई जिलों तक फैला है और उन्हें सम्मानजनक प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। इस रवैए से तेजस्वी यादव के सामने सीट बंटवारे का समीकरण और उलझ गया है।
तेजस्वी यादव के लिए नई चुनौती
महागठबंधन में अब सबसे बड़ी चुनौती तेजस्वी यादव के सामने है। एक ओर वाम दलों की बढ़ी हुई मांगें हैं, दूसरी ओर सहयोगी दलों की सख्त शर्तें भी हैं। कांग्रेस भी अपने हिस्से को लेकर चुप नहीं है। ऐसे में सीट बंटवारे का यह समीकरण आरजेडी के लिए सिरदर्द बन चुका है। तेजस्वी को अब यह तय करना होगा कि वे किस हद तक समझौता कर पाते हैं ताकि गठबंधन एकजुट रह सके और एनडीए के मुकाबले उतर सके।





