
विकसित भारत बनाम जातीय समीकरण, बिहार में दिलचस्प सत्ता की लड़ाई; सर्वे में NDA को प्रचंड बढ़त
संक्षेप: बता दें कि चुनाव आयोग द्वारा सोमवार को घोषित कार्यक्रम के अनुसार, बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा, जबकि 14 नवंबर को वोटों की गिनती होगी। जानिए मौजूदा समीकरण क्या कहते हैं?
बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी जंग तेज होती जा रही है। सत्तारूढ़ गठबंधन को उम्मीद है कि जनता एक बार फिर उसके “डबल इंजन की सरकार” पर भरोसा जताएगी। बिहार के आगामी विधानसभा चुनावों में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने 'विकसित बिहार' के विकास-केंद्रित एजेंडे को अपना प्रमुख हथियार बनाया है। भाजपा और जनता दल (यूनाइटेड) के नेतृत्व वाले इस गठबंधन का दावा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में राज्य 'जंगल राज' की अंधेरी गलियों से निकलकर 'विकसित भारत 2047' के सपने की ओर अग्रसर है। यह रणनीति विपक्षी महागठबंधन की जाति-आधारित राजनीति का सीधा जवाब देने का प्रयास है, जहां राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) और कांग्रेस जैसी पार्टियां सामाजिक न्याय के नाम पर वोट बैंक मजबूत करने में जुटी हैं।

गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को कहा कि एनडीए सरकार ने बिहार को जंगलराज से बाहर निकालकर विकास और सुशासन की नई दिशा दी है। उन्होंने विश्वास जताया कि राज्य की जनता एक बार फिर “विकास की राजनीति” को चुनेगी। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने भी चुनावी माहौल में आत्मविश्वास जताते हुए कहा कि यह चुनाव राज्य के विकास को जारी रखने, घुसपैठियों से मुक्ति दिलाने और “कुशासन” की वापसी रोकने के लिए है।
बिहार चुनाव की घोषणा
चुनाव आयोग द्वारा सोमवार को घोषित कार्यक्रम के अनुसार, बिहार की 243 विधानसभा सीटों पर दो चरणों में मतदान 6 और 11 नवंबर को होगा, जबकि 14 नवंबर को वोटों की गिनती होगी। वर्तमान विधानसभा का कार्यकाल 22 नवंबर को समाप्त हो रहा है। एनडीए के पास फिलहाल 129 विधायकों का समर्थन है, जो बहुमत के आंकड़े 122 से अधिक है, लेकिन विपक्ष के पास 112 विधायक हैं। 2020 के चुनावों में एनडीए ने 125 सीटें हासिल की थीं, जबकि महागठबंधन को 110 मिली थीं।
एनडीए को सर्वे में बढ़त
मेट्राइज ओपिनियन पोल के ताजा सर्वे के अनुसार, एनडीए को जबरदस्त बढ़त मिलने की संभावना है। सर्वे का अनुमान है कि एनडीए को 49% वोट शेयर के साथ 150 से 160 सीटें मिल सकती हैं। वहीं, महागठबंधन (राजद-कांग्रेस-वाम दल) को लगभग 36% वोट शेयर और 70 से 85 सीटों का अनुमान लगाया गया है।
हालांकि चुनावी सर्वे को अक्सर ‘संभावनाओं का संकेत’ भर माना जाता है, लेकिन इस रिपोर्ट ने एनडीए खेमे का मनोबल और ऊंचा कर दिया है। गठबंधन इसे अपने “विकास बनाम जातिगत राजनीति” के नैरेटिव को मजबूत करने के अवसर के रूप में देख रहा है।
मोदी-नीतीश की जोड़ी पर भरोसा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की सामाजिक सशक्तिकरण योजनाओं व विकास परियोजनाओं की घोषणाएं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की “सुशासन बाबू” की छवि को पूरक करती दिख रही हैं। नीतीश कुमार नौ बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं और अब भी अति पिछड़ा वर्ग (EBCs) में पकड़ बनाए हुए हैं। हाल में 27% ईबीसी आरक्षण बढ़ाने की कोशिश और स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए कोटा विस्तार ने इस समर्थन को और मजबूती दी है।
रणनीति के केंद्र में मोदी का चेहरा
एनडीए की चुनावी रणनीति का मुख्य आधार प्रधानमंत्री मोदी की छवि है, ताकि नीतीश कुमार के लंबे कार्यकाल से उत्पन्न मतदाता थकान को संतुलित किया जा सके। गृह मंत्री अमित शाह का चुनावी प्रबंधन भी अहम माना जा रहा है। उन्होंने गठबंधन की सीट-बंटवारे की रणनीति को संतुलित करने और छोटे दलों के समीकरण को साधने में प्रमुख भूमिका निभाई है। सीटों का औपचारिक ऐलान जल्द किया जा सकता है।
अंदरूनी चुनौतियां बरकरार
हालांकि एनडीए की राह पूरी तरह आसान नहीं है। आंतरिक रिपोर्टों में कई मौजूदा विधायकों के प्रति जन असंतोष दर्ज हुआ है, जिसके चलते पार्टी ने कई सीटों पर नए चेहरों को मौका देने का फैसला किया है। इससे कुछ जगहों पर बगावत के संकेत भी मिले हैं। इसके अलावा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्वास्थ्य स्थिति को लेकर विपक्षी खेमे में उम्मीदें बंधी हैं, हालांकि एनडीए नेताओं ने इसे चुनावी मुद्दा न मानते हुए पूरी तरह खारिज किया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले हफ्तों में अगर विपक्षी “महागठबंधन” अपनी जातिगत समीकरणों को प्रभावी तरीके से साध पाता है, तो मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।
त्रिकोणीय मुकाबला: प्रशांत किशोर का नया कारक
चुनाव को और रोचक बनाने वाले प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने सभी 243 सीटों पर उतरने का ऐलान किया है। किशोर ने 2022-2024 के बीच 5,000 किमी से अधिक की 'बिहार बदलाव यात्रा' की, जिसमें 5,500 से ज्यादा गांवों का दौरा किया। उनकी पार्टी शासन, शिक्षा और स्वच्छ राजनीति पर फोकस कर रही है, जो एनडीए और महागठबंधन दोनों के लिए चुनौती है। विश्लेषकों का कहना है कि यह 'सभी चुनावों की मां' साबित होगा, जो राष्ट्रीय राजनीति को नया आकार दे सकता है। बिहार के करीब 7.5 करोड़ मतदाता इस बार रिकॉर्ड मतदान के लिए तैयार हैं। एनडीए की विकास-केंद्रित रणनीति और विपक्ष की सामाजिक न्याय की लड़ाई के बीच राज्य की सियासत में नया अध्याय लिखा जा रहा है। परिणाम न केवल बिहार, बल्कि पूरे देश की राजनीति को प्रभावित करेंगे।





