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खानकाह-ए-कव्वाली के नाम रही उर्स की आखिरी रात

हजरत मौलाना शहबाज मोहम्मद भागलपुरी के 391वें उर्स की आखिरी रात खानकाह-ए-कव्वाली के नाम रही। इस अवसर पर यूपी के रामपुर जिले से आये जावेद माजिद कव्वाल एवं उनकी टीम ने अपनी बेहतरीन कव्वाली की प्रस्तुति...

खानकाह-ए-कव्वाली के नाम रही उर्स की आखिरी रात
हिन्दुस्तान टीम,भागलपुरMon, 29 Oct 2018 01:09 AM
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हजरत मौलाना शहबाज मोहम्मद भागलपुरी के 391वें उर्स की आखिरी रात खानकाह-ए-कव्वाली के नाम रही। इस अवसर पर यूपी के रामपुर जिले से आये जावेद माजिद कव्वाल एवं उनकी टीम ने अपनी बेहतरीन कव्वाली की प्रस्तुति से मौजूद लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

रात करीब साढ़े 10 बजे से खानखाह-ए-शाहबाजिया के 16वें सज्जादानशीं सैय्यद शाह इंतेखाब आलम जिया शहबाजी के खानकाह पर कव्वाली प्रोग्राम शुरू हुआ जो देर रात तक चला।

उर्स के आखिरी दिन शाम छह बजे शाहजहानी मस्जिद में उमड़े अकीदतमंदों ने शाम करीब छह बजे कुरानखानी की। जबकि सज्जादानशीं सैय्यद शाह इंतेखाब आलम जिया शहबाजी ने फातेहाखानी की और देश में अमन-शांति एवं भाईचारगी की दुआ मांगी।

हजरत की जानिब में झुका शाहजहां, औरंगजेब व खुर्रम का सर

सालिक भागलपुरी ने कहा कि हजरत मौलाना शहबाज मोहम्मद भागलपुरी बहुत बड़े-बुजुर्ग और वलीय-ए-कामिल बुजरे हैं। इनकी दरगाह बहुत बाफैज बारागाह है। यहां इनके जानिब में अपने वक्त के बहुत बड़े बादशाह रहे शाहजहां, औरंगजेब व खुर्रम ने अपना सिर झुकाकर सलामी पेश की।

कोलकाता से आये इश्तेयाक रहबर ने कहा कि जब सफर का महीना आता है, तब दिल में अजीब कैफियत रहती है। आज की तारीख का इंतजार साल भर रहता है। समय आते ही मेरे कदम अपने आप यहां के लिए बढ़ जाते हैं। यहां आकर बहुत सुकून मिलता है।

गुलजार अहमद ने कहा कि यहां बुजुर्गों की रूहानियत है। यहां आकर दिली सुकून मिलता है। 'यहां बू-ए-मुस्तफा हैं, यहां मस्ती-ए-अली है, हसनी हुसैनी रंगत में शरान शरमदी है।' जितनी बार हजरत मौलाना शहबाज मोहम्मद भागलपुरी के उर्स पर आता हूं, एक प्रेरणा लेकर जाता हूं।

जामिया शहबाजिया के हेड टीचर मुफ्ती मोहम्मद फार्रूक आलम अशरफी ने कहा कि उर्स एक ऐसा अहम जरिया होता है, जहां सब लोग एक साथ मिलजुलकर अपने मरकज-ए-अकीदत के दरबार-ए-रजा में हाजिर होकर केराज-ए-अकीदत देते हैं।

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