बोले सहरसा : सुरक्षित परिवहन से बच्चों व अभिभावकों की चिंता घटेगी
किलकारी बिहार बाल भवन बच्चों के लिए 8 से 16 साल की उम्र में सीखने और खेलने का एक खास स्थान है। यहां संगीत, नृत्य, ड्रॉइंग, विज्ञान और नाटक जैसी गतिविधियां कराई जाती हैं। लगभग 1500 बच्चे यहां नामांकित...

प्रस्तुति: राजेश कुमार
किलकारी बिहार बाल भवन बच्चों के लिए एक खास जगह है, जहां 8 से 16 साल तक के बच्चे आकर खेल-खेल में बहुत कुछ नया सीख सकते हैं। यहां संगीत, नृत्य, ड्रॉइंग, कंप्यूटर, विज्ञान, कहानी लिखना, और नाटक जैसी मजेदार चीजें सिखाई जाती हैं। बच्चे स्कूल या कोचिंग के बाद अपनी पसंद के अनुसार यहां आकर सीख सकते हैं। सरकारी या निजी स्कूल के सभी बच्चे यहां बराबरी से भाग लेते हैं। इस भवन में माहौल बहुत अच्छा और आनंददायक रहता है, जिससे बच्चों को सीखना आसान और मजेदार लगता है। फिलहाल यहां करीब 1500 बच्चे नामांकित हैं और रोजाना 300 से 400 बच्चे सक्रिय रूप से हिस्सा लेते हैं। किलकारी बच्चों को उनका हुनर निखारने का मौका देता है और सभी बच्चों का स्वागत करता है।
समाहरणालय रोड स्थित जिला स्कूल का पुराना छात्रावास, जो कभी सुनसान और डरावना माना जाता था, आज बच्चों की हंसी और किलकारियों से गूंज रहा है। यही है किलकारी बिहार बाल भवन, जो बच्चों के लिए केवल एक इमारत नहीं, बल्कि सपनों और संभावनाओं का संसार है। यहां हर बच्चे की रचनात्मकता को पंख मिलते हैं। इसकी शुरुआत 2008 में में हुई थी। भवन का परिसर बच्चों की दुनिया के अनुरूप बनाया गया है। कहीं फिसलपट्टी है, कहीं टायर से बने झूले, कहीं कहानी सुनाने का कोना तो कहीं बड़ा मैदान। यह सब बच्चों को खेल-खेल में सीखने का अवसर देता है। किलकारी में बच्चों को कला, विज्ञान और खेल तीन प्रमुख क्षेत्रों में प्रशिक्षण दिया जाता है। यहां सात पूर्णकालिक कक्षाएं नियमित रूप से संचालित होती हैं।
नृत्य कक्ष ता-ता थैया : भरतनाट्यम और कथक जैसे शास्त्रीय नृत्य की शिक्षा। संगीत कक्ष : आलाप, सरगम और लय-ताल का अभ्यास। चित्रकला दीर्घा : रंगों से कल्पनाओं का संसार रचना। नाट्य प्रशिक्षण : अभिनय, हाव-भाव और संवाद की कला सीखना। सृजनात्मक लेखन कक्ष : कविता, कहानी और नाटक लेखन के साथ मंच संचालन का अभ्यास। कंप्यूटर लैब : बच्चों को डिजिटल शिक्षा से जोड़ना। जल्द ही यहां एनआईओएस से प्रमाणन की सुविधा भी मिलेगी।अल्पकालिक कक्षाओं में मूर्तिकला और हस्तशिल्प शामिल हैं, जहां बच्चे मिट्टी और बेकार वस्तुओं से नई आकृतियां गढ़ना सीखते हैं। साथ ही कबड्डी, कराटे और शतरंज जैसी विधाएं भी बच्चों को सिखाई जाती हैं। इन गतिविधियों से बच्चों के हृदय, मस्तिष्क और हाथों का अद्भुत समन्वय विकसित होता है। सहरसा में 2023 से संचालित किलकारी में लगभग 1982 बच्चे नामांकित हैं। इनमें से प्रतिदिन 300-400 बच्चे यहां आकर अपनी प्रतिभा निखारते हैं। खास बात यह है कि यहां निजी स्कूल, सरकारी स्कूल और स्लम एरिया के बच्चे साथ मिलकर सीखते हैं, जिससे समानता और भाईचारे का वातावरण बनता है। बच्चे अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद खाली समय में यहां आकर प्रशिक्षण ले सकते हैं। वर्ष 2023 से इसके संचालन की जिम्मेदारी शिक्षा विभाग ने संभाली है। प्रशिक्षकों की टीम पूरी लगन से बच्चों को नई दिशा देने में जुटी है। बच्चों की हंसी, खेल, रचनाएं और प्रस्तुतियां ही इस भवन की पहचान बन चुकी हैं। किलकारी ने बच्चों में आत्मविश्वास, नेतृत्व क्षमता और रचनात्मक दृष्टिकोण विकसित किया है। हाल ही में विश्व भारती निकेतन, शांतिनिकेतन (पश्चिम बंगाल) के हिंदी साहित्य विभाग के छात्र ललन कुमार समर इंटर्नशिप के लिए यहां आए। यह कार्यक्रम एनआईपी के अंतर्गत आयोजित हुआ। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय कला-संस्कृति, पंचगछिया घराने की संगीत परंपरा और बाल भवन की गतिविधियों को समझना और प्रलेखित करना था। ललन कुमार ने विभिन्न कक्षाओं का भ्रमण किया, प्रशिक्षकों और बच्चों से बातचीत की और प्रशिक्षण प्रणाली की गहराई से जानकारी ली। इस दौरान उन्होंने पंचगछिया घराने की परंपरा, स्थानीय संस्कृति और किलकारी के योगदान के बारे में विस्तार से जाना।
सुनें हमारी बात
किलकारी आने से उन्हें अपनी छिपी हुई प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला है। आत्मविश्वास का यह संचार उनकी पढ़ाई और व्यक्तित्व दोनों को निखार रहा है।
- कविता कुमारी
नृत्य सीखकर मंच पर खड़े होने का साहस मिला है। पहले लोग देखकर संकोच होता था, लेकिन अब आत्मविश्वास के साथ नृत्य करती हूं। तालियों की गूंज नई ऊर्जा देती है।
-लूसी कुमारी
संगीत कक्ष में सरगम और लय-ताल का अभ्यास करना सबसे आनंददायक लगता है। संगीत से उनका मन शांत होता है और पढ़ाई का तनाव भी कम हो जाता है।
- लाली कुमारी
चित्रकला दीर्घा में रंगों से खेलना सपनों को कागज पर उतारने जैसा है। पेंटिंग करते समय लगता है कि वह अपनी सोच को जीवंत कर रही हैं।
- माहिमा कुमारी
नाटक में भाग लेकर अभिनय और संवाद कला सीखी। इससे लोगों के सामने बोलने का आत्मविश्वास मिला है। अब वे खुलकर बातचीत कर सकती हैं।
- माहनूर शमां
सृजनात्मक लेखन कक्ष में अपनी लिखी कविताएं और कहानियां दोस्तों को सुनाते हैं। अपनी रचनाएं साझा करने से गर्व की अनुभूति होती है।
- मौसम कुमारी
यहां आकर तकनीक की नई-नई बातें सीखने को मिलती हैं। अब कंप्यूटर पर तेजी से काम कर पाती हैं और डिजिटल दुनिया से भी जुड़ गई हैं।
- प्रीति कुमारी
मिट्टी से आकृति बनाना बेहद मजेदार लगता है। इस प्रक्रिया से उसका धैर्य और ध्यान भी बढ़ा है। इसके कारण अपने गांव की मिट्टी से जुड़ा महसूस कर रही हैं।
- राधिका कुमारी
हस्तशिल्प कक्षा बच्चों को बेकार वस्तुओं को सुंदर कृतियों में बदलना सिखाती है। यह अनुभव बेहद खास होता है। यह कौशल रचनात्मकता और पर्यावरण दोनों की समझ देता है।
- रिया कुमारी
किलकारी की सबसे बड़ी खूबी बराबरी के माहौल है। चाहे बच्चा किसी भी पृष्ठभूमि से आए, यहां सभी एक साथ सीखते और खेलते हैं। यह समानता उन्हें विशेष महसूस कराती है।
- शिक्षा श्रीजा
टायर वाले खेल मैदान में झूलना और खेलना बहुत अच्छा लगता है। यह उन्हें खुलकर मस्ती करने और दोस्तों के साथ समय बिताने का अवसर देता है।
- श्वेता कुमारी
कहानी सुनाने का कोना सबसे प्रिय है। दोस्तों के साथ बैठकर कहानियां सुनना बहुत मजेदार लगता है। यह न केवल मनोरंजन करता है, बल्कि नई सीख भी देता है।
- सृजा कुमारी
जब मेरी बनाई पेंटिंग्स या मूर्तियां अतिथियों को भेंट की जाती हैं तो मुझे विशेष खुशी होती है। यह उनके प्रयासों की पहचान है और आगे बढ़ने की प्रेरणा भी।
-अनुभव कुमार
स्कूल के बाद किलकारी आना तनावमुक्त करने वाला होता है। यहां पढ़ाई के दबाव को भूलकर सृजनात्मक गतिविधियों में डूब जाते हैं।
- आशुतोष कुमार
किलकारी ने नए दोस्त दिए हैं। एक-दूसरे से सीखने और अनुभव साझा करने का अवसर मिला है। यह दोस्ती उनके लिए जीवनभर की पूंजी बन सकती है।
- चिराग कुमार
परिवहन सुविधा की जरूरत है। आने-जाने के लिए बस की व्यवस्था हो जाए तो अधिक बच्चे आसानी से भाग ले सकेंगे। इससे उनकी सुरक्षा भी सुनिश्चित होगी।
- मयंक कुमार
बोले िजम्मेदार
किलकारी से जुड़े बच्चे कम समय में ही सही मार्गदर्शन और अपने परिश्रम से सराहनीय उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं। जिला प्रशासन एवं कला संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित सभी सांस्कृतिक और शैक्षणिक कार्यक्रमों में किलकारी के बच्चों को प्राथमिकता दी जाती है। उनकी जरूरतों की पूर्ति के लिए हर संभव सहयोग उपलब्ध कराया जाएगा।
स्नेहा कुमारी, जिला कला संस्कृति पदाधिकारी, सहरसा
शिकायत
1. पंखे, कूलर और ठंडे पानी की कमी महसूस होती है। इसके बिना बच्चे परेशान रहते हैं।
2. कम्प्यूटर की संख्या सीमित है। इस कारण कई बच्चों को इंतजार करना पड़ता है।
3. दूर-दराज से आने वाले बच्चों को यहां पहुंचने में दिक्कत होती है। माता-पिता को सुरक्षा की चिंता रहती है। खासकर छोटे बच्चों को अकेले लाना मुश्किल हो जाता है।
सुझाव
1. पंखे, कूलर तथा ठंडे पानी की व्यवस्था हो।
2. कम्प्यूटर प्रशिक्षण को और सहज बनाने के लिए अतिरिक्त सिस्टम जोड़े जा सकते हैं। इससे बच्चों को इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
3. दूर-दराज से आने वाले बच्चों के लिए यदि परिवहन की सुविधा हो जाए तो बड़ी सहूलियत होगी। इससे माता-पिता भी निश्चिंत रहेंगे। सुरक्षा सुनिश्चित होगी।
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