खगड़िया लोकसभा सीट: VIP की ‘नैया’ पार होगी या LJP के ‘बंगला’ की बादशाहत कायम?
मतदान समाप्त होने के बाद अब प्रत्याशी व उनके समर्थक वोट के जोड़-घटाव में जुट गये हैं। जातीय समीकरण के आधार पर यह समीक्षा कर रहे हैं कि किस विधानसभा क्षेत्र में वे आगे रहेंगे और किसमें...
मतदान समाप्त होने के बाद अब प्रत्याशी व उनके समर्थक वोट के जोड़-घटाव में जुट गये हैं। जातीय समीकरण के आधार पर यह समीक्षा कर रहे हैं कि किस विधानसभा क्षेत्र में वे आगे रहेंगे और किसमें पीछे।
खगड़िया का बाजीगर कौन होगा
मतदान के बाद अभी तक यह स्पष्ट रूझान नहीं मिल पाया है कि खगड़िया का बाजीगर कौन होगा। हालांकि महागठबंधन व एनडीए दोनो अपने को बड़े वोट के अंतर से जीत का दावा कर रहे हैं। ‘माय’ वोट की गोलबंदी व बिखराव पर भी चर्चा हो रही है। लेकिन इस चुनाव में एनडीए के लोजपा प्रत्याशी व निवर्तमान सांसद चौधरी महबूब अली कैसर व महागठबंधन के वीआईपी उम्मीदवार मुकेश सहनी के बीच कांटे की टक्कर है। बाजी कौन मारेगा।
सस्पेंस कायम, चुनाव विश्लेषक भी परेशान
ऊंट किस करवट बैठेगी अभी कहना मुश्किल है। सस्पेंस कायम है। खास बात यह कि मतदान के बाद भी वोटर भी इशारे-इशारे में भी यह नहीं बता रहे हैं कि उनका मत किनके पक्ष में गया। इससे चुनाव विश्लेषक भी परेशान हैं। इधर एनडीए व महागठंधन की नजर निर्दलीय प्रत्याशियों के अलावा नोटा पर भी टिकी है। कहीं इस बार भी ये निर्दलीय प्रत्याशी राजनेताओं के बना बनाया खेल व समीकरण को बिगाड़ न दे। दोनो ही गठबंधन व प्रत्याशियों की प्रतिष्ठा दांव पर है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अधिकांश निर्दलीय चुनाव तो जीत नहीं सकते लेकिन चुनावी गणित को जरूर देते हैं। कई बार निर्दलीयों ने राजनीतिक दिग्गजों के बना-बनाया खेल बिगाड़ चुके हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव इसका उदाहरण है।
इस चुनाव में लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर ने राजद की कृष्णा कुमारी यादव को 76 हजार मतों से शिकस्त दिया था। लेकिन खास बात यह थी कि इस चुनाव में अन्य दस उम्मीदवारों ने आनन-फानन में एक लाख 24 हजार 85 वोट झटक लिए थे। यही नहीं नोटा में भी 23 हजार 868 मत चले गये। यदि ऐसा नहीं होता तो शायद चुनाव परिणाम कुछ और होता। 2009 के चुनाव में जदयू के दिनेश चन्द्र यादव ने आरके राणा को 1.38 लाख वोटों से हराया था। लेकिन चुनाव में खड़े अन्य 18 प्रत्याशियों ने 2.19लाख मत झटक लिए थे। वहीं वर्ष 2004 में राजद के आरके राणा ने जयू की रेणु कुशवाहा को 67,168 मतों से हराया लेकिन अन्य सात निर्दलीयों ने 98 हजार 260 मत हासिल किये। यह केवल उदाहरण भर है। हर चुनावों में कमोवेश यही स्थिति रही है। चूंकि इस बार महागठबंधन व एनडीए के अलावा 20 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं इसलिए इस बार वोटों का बंटाधार अधिक होने की उम्मीद है। कहीं ऐसा न हो कि प्रमुख प्रत्याशियों के हार के कारण यही निर्दलीय उम्मीदवार हो जाय।
2014: चार विस में लोजपा को मिली थी बढ़त
मतदान के बाद लोगों में चुनाव परिणाम को लेकर उत्सुकता बनी हुई है। यूं तो मुख्य मुकाबला लोजपा व वीआईपी प्रत्याशी के बीच है लेकिन फतेह कौन हासिल करेगा यह कहना मुश्किल है। इसके लिए हमे 23 मई तक का इंतजार करना पड़ेगा। बहरहाल 2014 के लोस चुनाव परिणाम देखें तो छह विस में से चार पर लोजपा के कैसर को निर्णायक बढ़त मिली थी तो वहीं एक पर राजद की कृष्णा यादव व दूसरे पर जदयू के दिनेशचन्द्र यादव आगे थे। खगड़िया सदर विस के साथ-साथ बेलदौर, परबत्ता व सिमरी बख्तियारपुर में लोजपा के चौधरी महबूब अली कैसर को बढ़त मिली थी तो राजद की कृष्णा कुमारी यादव को हसनपुर तो जदयू के दिनेश चन्द्र यादव अलौली विस में आगे थे।इस बार न तो राजद की कृष्णा हैं और न ही जदयू के दिनेश चन्द्र यादव। इन दोनो के अपनी पकड़ वाला वोट किसे मिलेगा, कहना मुश्किल है।