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स्वास्थ्य का हाल! टीबी पर रिसर्च करने में इन राज्यों में बिहार और झारखंड सबसे पीछे

स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2025 तक देश को टीबी से मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि टीबी उन्मूलन की दिशा में बिहार-झारखंड की गति से नहीं लग रहा है कि ऐसा हो पाएगा। टीबी की बीमारी पर लगाम लगाने व...

स्वास्थ्य का हाल! टीबी पर रिसर्च करने में इन राज्यों में बिहार और झारखंड सबसे पीछे
भागलपुर, कार्यालय संवाददाताMon, 02 Mar 2020 11:25 AM
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स्वास्थ्य मंत्रालय ने 2025 तक देश को टीबी से मुक्त बनाने का लक्ष्य रखा है। हालांकि टीबी उन्मूलन की दिशा में बिहार-झारखंड की गति से नहीं लग रहा है कि ऐसा हो पाएगा। टीबी की बीमारी पर लगाम लगाने व उन्मूलन को लेकर बिहार-झारखंड अपने पड़ोसी राज्यों की तुलना में फिसड्डी साबित हो रहा है।

18 व 19 फरवरी को रायपुर स्थित एम्स में पूर्वी जोन के बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल व छत्तीसगढ़ की बैठक हुई थी। इसमें पांचों राज्यों में टीबी उन्मूलन की दिशा में चल रहे प्रयासों की समीक्षा की गयी, जिसमें पाया गया कि पांचों राज्यों में जांच व इलाज का स्तर तो कमोबेश समान है, लेकिन टीबी की बीमारी पर शोध करने में बिहार-झारखंड के मेडिकल कॉलेजों की स्थिति तीनों राज्यों के मुकाबले बहुत ही निम्न है। आंकड़ों के अनुसार, 2019 में पश्चिम बंगाल के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में जहां 16, ओडिशा में छह और छत्तीसगढ़ के विभिन्न मेडिकल कॉलेज में दो रिसर्च वर्क हुए। वहीं बिहार के 14 व झारखंड के चार मेडिकल कॉलेज में टीबी पर एक भी रिसर्च नहीं हुआ। 2018 में भी बिहार के दो मेडिकल कॉलेज में तीन रिसर्च वर्क (जेएलएनएमीएच में दो व आईजीआईएमएस पटना में एक) और झारखंड में एक भी रिसर्च वर्क टीबी पर नहीं हुआ।
 
रिसर्च वर्क नहीं होने से 2025 तक टीबी उन्मूलन असंभव
सबसे पहले टीबी उन्मूलन करने में केरल काफी आगे है। यहां पर 2020 तक टीबी उन्मूलन होने का लक्ष्य है। रिसर्च वर्क नहीं होने से सीधे जांच मशीन के जरिये टीबी जांच के लिए बलगम टेस्ट हो पाना संभव नहीं होगा। एमडीआर (मल्टी ड्रग रजिस्टेंट) टीबी की प्रारंभिक अवस्था में जांच-इलाज करना मुश्किल होगा। बिहार के 40 प्रतिशत लोगों के शरीर में निष्क्रिय अवस्था में पल रहे टीबी (लेटेंट टीबी) को जड़ से नहीं मिटाया जा सकेगा। 

रिसर्च वर्क के लिए टीबी एंड चेस्ट विभाग में पीजी की पढ़ाई जरूरी 
नेशनल ट्यूबरकोलोसिस एलिमिनेशन प्रोग्राम (एनटीईपी) बिहार के अध्यक्ष डॉ. डीपी सिंह ने कहा कि बिहार के किसी भी मेडिकल कॉलेज के टीबी एंड चेस्ट विभाग में पीजी की पढ़ाई नहीं चल रही है। जबकि रिसर्च वर्क में पीजी छात्राओं की अहम भूमिका होती है। ऐसे में कम- से- कम पीएमसीएच व जेएलएनएमसीएच में पीजी टीबी एंड चेस्ट की पढ़ाई तत्काल शुरू करानी होगी। 

अभी बिहार में एक लाख की आबादी पर 200 टीबी के मरीज
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े बताते हैं कि अभी बिहार में एक लाख की आबादी पर 200 टीबी के मरीज हैं। डॉ. डीपी सिंह बताते हैं कि जब तक एक लाख की आबादी पर 43 टीबी मरीज या इससे नीचे तक आंकड़ा नहीं आयेगा, तब तक बिहार से 2025 तक टीबी उन्मूलन असंभव है। 
 

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