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गांधी के सपनों को साकार कर रहीं खगड़िया की महिलाएं

खादी ग्रामोद्योग को पुनर्जीवित कर खगड़िया की महिलाएं गांधीजी के सपने को साकार कर रही हैं। कई दशकों बाद फिर चरखे की धुन ने गांधी जी की याद ताजा कर दी है।  परबत्ता प्रखंड के डुमरिया बुजुर्ग में...

गांधी के सपनों को साकार कर रहीं खगड़िया की महिलाएं
खगड़िया परबत्ता | का.सं. सं.सू.Sun, 14 Jan 2018 06:29 PM
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खादी ग्रामोद्योग को पुनर्जीवित कर खगड़िया की महिलाएं गांधीजी के सपने को साकार कर रही हैं। कई दशकों बाद फिर चरखे की धुन ने गांधी जी की याद ताजा कर दी है।

 परबत्ता प्रखंड के डुमरिया बुजुर्ग में खादी ग्रामोद्योग समूह की 25 महिलाएं इंदू देवी की अगुवाई में सूत से धागा तैयार कर न केवल आत्मनिर्भर हो रही हैं बल्कि अन्य बेरोजगार महिलाओं को जोड़कर उन्हें स्वावलंबन का भी पाठ पढ़ा रही हैं।

1915 में पुनर्जीवित हुआ खादी ग्रामोद्योग
खादी ग्रामोद्योग समूह से जुड़ी महिला इंदू देवी ने बताया कि क्षेत्र की महिलाओं को रोटी व रोजगार से जोड़ने के उद्देश्य से वर्ष 2014-15 में डुमरिया बुजुर्ग में खादी ग्रामोद्योग को पुनर्जीवित कर सूत कटने का काम शुरू हुआ। भागलपुर जिले के खादी भंडार सुल्तानगंज की मदद से राजकोट चरखे की यहां फिर संगीत शुरू हो गई। इस ग्रामोद्योग में काम कर रही लीला देवी, समिता देवी, चुना देवी, रेणु देवी, कजोमा देवी, रूपकला देवी, अंजनी देवी आदि ने बताया कि कई दशकों से बन्द पड़े खादी ग्रामोद्योग को पुनर्जीवित कर गांव की महिलाओं को रोटी रोजगार से जोड़ने का प्रयास काबिले तारीफ है। अच्छी आमदनी के कारण परिवार में भी उनका सम्मान बढ़ गया है। अब तो धीरे-धीरे इसमें और भी महिलाएं जुड़ रही हैं। आने वाले समय में यह ग्रामोद्योग मील का पत्थर साबित होगा। 

तैयार धागा जाता है सुल्तानगंज

इंदू देवी ने बताया कि खादी भंडार सुल्तानगंज की ओर से कच्चा माल उपलब्ध कराया जाता है। करीब 25 महिलाओं द्वारा चरखा चलाया जाता है। धागा तैयार कर उसे वापस कर दिया जाता है। इसके एवज व मजदूरी के रूप में इन महिलाओं को मोटा सूत तैयार करने पर सौ रुपये प्रति किलो एवं महीन सूत तैयार करने पर डेढ़ सौ रुपये प्रति किलो दिया जाता है। प्रत्येक महिला प्रतिदिन डेढ़ से दो किलो तक सूत तैयार कर लेती है। 

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