Farmers Struggle for Fair Prices Despite Makhana s Global Demand in Katihar बोले कटिहार : मखाना सजाता विदेश की थाली किसान का चूल्हा रह जाता खाली, Bhagalpur Hindi News - Hindustan
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बोले कटिहार : मखाना सजाता विदेश की थाली किसान का चूल्हा रह जाता खाली

कटिहार के किसान मखाना की खेती करते हैं, जो दुनिया भर में प्रसिद्ध है, लेकिन उन्हें अपनी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिलता। बिचौलियों की वजह से उनकी थालियाँ सूनी रहती हैं। किसान सरकार से मखाना बोर्ड की...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरSun, 14 Sep 2025 03:54 AM
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बोले कटिहार : मखाना सजाता विदेश की थाली किसान का चूल्हा रह जाता खाली

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज/राणा सिंह

कटिहार के पोखरों में झिलमिलाता मखाना यहां के किसानों की पहचान और पीढ़ियों से जुड़ी मेहनत का प्रतीक है। सुबह से शाम तक पानी में डूबे रहकर किसान पसीना बहाते हैं और अपनी उम्मीदों को सींचते हैं। उनकी यही मेहनत विदेशी बाजारों तक पहुंचती है और देश की पहचान बनाती है। मखाने से दुनिया की थालियां सजती हैं, लेकिन विडंबना यह है कि किसानों के घरों की थाली आज भी सूनी रहती है। मेहनत के बावजूद उन्हें अपनी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता। बिचौलियों के दबदबे और बाजार पर नियंत्रण की कमी से किसानों की हालात जस की तस है। वे हर मौसम उम्मीद बोते हैं, लेकिन फसल आने पर निराशा ही हाथ लगती है।

कटिहार की धरती दुनिया भर में ‘मखाना बेल्ट’ के नाम से जानी जाती है। जिले के पोखरों में झिलमिलाता मखाना यहां की पहचान है, किसानों की मेहनत का प्रतीक है। इनकी फसल पाकिस्तान से अरब देशों की थालियों तक मिठास घोलती है। लेकिन सबसे बड़ा विरोधाभास यह है कि जिन हाथों ने खेतों-पोखरों में दिन-रात पसीना बहाकर मखाना उगाया, उन्हीं किसानों की थालियां अक्सर खाली रह जाती हैं। कारण साफ है- बिचौलियों का शिकंजा, बाजार पर किसानों की कमजोर पहुंच और अधूरी सरकारी नीतियां। जिले के लगभग आठ हजार हेक्टेयर में मखाना की खेती होती है। सालों से किसानों को भरोसा दिलाया गया कि यह फसल उनकी जिंदगी संवार देगी। लेकिन हकीकत यह है कि किसान कितनी भी मेहनत कर लें, बेहतर उत्पादन हासिल कर लें, आर्थिक रूप से सम्पन्न नहीं हो पाते। असली लाभ बिचौलिये उठा ले जाते हैं। वे किसानों से कम कीमत पर मखाना खरीदते हैं और फिर देश-विदेश में ऊंची दरों पर बेचकर मोटा मुनाफा कमाते हैं। किसान को लागत से थोड़ा अधिक ही मिलता है, जबकि वास्तविक मुनाफा उसकी जेब से छिनकर कहीं और चला जाता है।

किसानों की उम्मीदें इस बार तब टूटीं, जब 10 सितंबर को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कटिहार कार्यक्रम अचानक स्थगित हो गया। उन्हें लग रहा था कि शायद दिल्ली से सीधी सुनवाई होगी और उनकी समस्या किसी ठोस हल की ओर बढ़ेगी। लेकिन निराशा हाथ लगी। अब सभी निगाहें 15 सितंबर को पूर्णिया में होने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम पर टिकी हैं। किसानों को उम्मीद है कि पीएम की कोई घोषणा उनकी जिंदगी में नई रोशनी ला सकती है। किसानों का मानना है कि यदि मखाना बोर्ड का गठन हो तो हालात बदल सकते हैं। इससे उत्पादन से लेकर विपणन तक एक व्यवस्थित तंत्र बनेगा। किसानों को उनकी उपज का सही दाम मिल सकेगा और बिचौलियों की लूट पर रोक लगेगी। विशेषज्ञ भी यही सुझाव देते हैं कि मखाना को वैश्विक स्तर पर ब्रांड बनाना होगा। इसके लिए सरकारी पहल जरूरी है- चाहे वह न्यूनतम समर्थन मूल्य हो, सीधे मंडी तक पहुंच का विकल्प हो, या फिर प्रशिक्षण और बाजार से जुड़ी आधुनिक सुविधाएं। कटिहार के किसान बताते हैं कि मखाना की खेती आसान नहीं है। सुबह से शाम तक पानी में खड़े रहना, कीचड़ से जूझना, झुककर लंबी मेहनत करना रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। इससे शरीर में दर्द, हाथों में छाले और पैरों में घाव होना आम है। कई किसानों को लंबे समय तक पानी में खड़े रहने से बीमारियां भी हो जाती हैं। इसके बावजूद किसान हिम्मत नहीं हारते, क्योंकि मखाना उनकी परंपरा और पहचान है। लेकिन जब फसल बेचने का वक्त आता है तो उन्हें मजबूरी में औने-पौने दाम पर अपनी उपज बिचौलियों को सौंपनी पड़ती है।

स्कूल की फीस भरना मुश्किल हो जाता

किसान का दर्द इन शब्दों में साफ झलकता है- “हम मेहनत करते हैं, पसीना बहाते हैं, लेकिन मालामाल कोई और होता है।” बच्चे अच्छी पढ़ाई का सपना देखते हैं, लेकिन स्कूल की फीस भरना मुश्किल हो जाता है। महिलाएं खेतों और पोखरों में उतनी ही मेहनत करती हैं, लेकिन घर का चूल्हा जलाना ही सबसे बड़ी चुनौती है। कई बार खर्च चलाने के लिए किसानों को कर्ज लेना पड़ता है। इसके बोझ तले वे और गहरे संकट में फंस जाते हैं। विडंबना यह है कि कटिहार का मखाना पाकिस्तान और अरब देशों तक पहुंचता है। वहां यह शाही दावतों का हिस्सा बनता है, सेहत और स्वाद का प्रतीक है।

थाली में दाल-भात भी पूरी तरह से नहीं भर पाता

लेकिन कटिहार के गांवों में उसी मखाने को उगाने वाले किसान की थाली में दाल-भात भी पूरी तरह से नहीं भर पाता। बच्चों के लिए दूध और पढ़ाई का सपना अधूरा रह जाता है। यह असमानता किसानों को भीतर तक तोड़ देती है। किसान खुद को धोखा खाया हुआ महसूस करते हैं। कहते हैं कि हमारे पसीने की कीमत बाजार तय करता है, हमारी जरूरत नहीं। यही इस समाज की सबसे बड़ी पीड़ा है- जिस फसल से दुनिया भारतीय किसानों का नाम लेती है, उन्हीं किसानों की जिंदगी गुमनामी और गरीबी में जीने को मजबूर है। कटिहार के किसान सबसे ज्यादा पीड़ा बिचौलियों की लूट से झेलते हैं।

बिचौलिये औने-पौने दाम पर मखाना खरीद लेते

बिचौलिये पोखरों तक पहुंचते हैं और किसानों को तुरंत भुगतान का लालच देकर औने-पौने दाम पर मखाना खरीद लेते हैं। मजबूरी में किसान बिना मोलभाव किए बेच देते हैं। बाद में वही मखाना मंडियों और निर्यातकों तक पहुंचकर ऊंचे दाम में बिकता है। किसान देखते भर रह जाते हैं कि उनकी मेहनत का असली हक किसी और की झोली में है। कई किसान मानते हैं कि अगर उन्हें सीधी मंडी तक पहुंच मिले तो उनकी जिंदगी बदल जाएगी। लेकिन आज वे बिचौलियों की शर्तों पर ही जीने को मजबूर हैं। यही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गई है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि मखाना को ब्रांडिंग कर वैश्विक स्तर पर एक अलग पहचान दी जाए।

सुनें हमारी बात

पोखरों में दिन-रात खटने के बाद भी हमारी मेहनत का फल हमें नहीं मिलता। मखाना विदेशों में बिककर मालामाल करता है, लेकिन हम किसान कर्ज में डूबे रहते हैं।

-महेश महतो

हम मखाना को अपनी धरोहर मानते हैं, पर अफसोस कि यह धरोहर हमारे लिए संकट बन गई है। मेहनत हम करें और फायदा बिचौलिये उठाएं, यह न्याय नहीं।

-भोला ऋषि

पानी में खड़े होकर मखाना निकालना आसान नहीं होता, इससे शरीर पर असर पड़ता है। फिर भी हम उम्मीद रखते हैं कि मेहनत से जिंदगी बदलेगी।

-पंकज कुमार

मेरे बच्चों की पढ़ाई और परिवार का खर्च मखाने से चलता है, लेकिन दाम इतने कम मिलते हैं कि गुजारा मुश्किल हो जाता है। बिचौलियों का दबदबा खत्म करना जरूरी है। -नीरज कुमार

विदेशों में जब कटिहार का मखाना परोसा जाता है, तो गर्व होता है, मगर वही गर्व पीड़ा भी देता है। सोचता हूं, जब दुनिया हमारे मखाने का स्वाद ले रही है, तब हम किसान ही क्यों भूखे रह जाएं?

-आकाश

बिचौलियों को देखकर लगता है जैसे हम मजदूर हैं और मालिक वही हैं। अगर हमें सही दाम मिले, तो गांव की तस्वीर बदल सकती है। जहां खुशहाली आएगी।

- राजकिशोर यादव

सरकार किसानों के लिए मखाना प्रसंस्करण इकाइयां खोले। इससे गांव में रोजगार भी मिलेगा और हम अपनी उपज का असली दाम पा सकेंगे।

-अजय यादव

पानी में काम करते-करते कई किसान बीमार हो जाते हैं, लेकिन कोई सुविधा नहीं मिलती। मेहनत के बाद भी जब जेब खाली रहती है तो मन रोता है।

-गणेश कुमार महतो

हर साल यही उम्मीद रहती है कि इस बार कुछ बेहतर होगा, लेकिन नतीजा वही निकलता है। हमारी मेहनत से मखाना चमकता है, मगर जिंदगी अंधेरे में ही रहती है। -श्याम कुमार

मुझे लगता है कि किसान तभी बचेंगे जब मखाने को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलेगा। अभी तो जो मिलता है, उससे घर खर्च भी पूरा नहीं होता।

-नारायण पासवान

आज मखाने का नाम पूरी दुनिया में है, लेकिन किसान के हिस्से में नाम नहीं, सिर्फ गरीबी आती है। किसान यही सोचता है कि हमारी मेहनत कब तक दूसरों की थाली भरेगी। -परविंदर सिंह

अगर सरकार चाहे तो हमारी जिंदगी बदल सकती है। हम मखाना उगाने में किसी से पीछे नहीं हैं, लेकिन हमें बाजार से जोड़ने की जिम्मेदारी सरकार की है।

-चंदन कुमार चौधरी

मखाना हमारे लिए सिर्फ फसल नहीं, परंपरा भी है। हमारी मेहनत का सही मूल्य तभी मिलेगा जब सीधी खरीद होगी और बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी।

-रंजीत कुमार मंडल

मुझे लगता है कि किसान की तकदीर तभी बदलेगी जब गांव के स्तर पर मखाना प्रोसेसिंग केंद्र बनेंगे। इससे रोजगार भी बढ़ेगा और किसान को अपनी उपज का पूरा दाम मिलेगा।

-रामदेव मंडल

हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि मेहनत करने के बावजूद सम्मान नहीं मिलता। सरकार अगर सही दाम और सुविधा दे, तो किसान फिर से मुस्कुराएंगे।

-मुरारी कुमार

बिचौलिये मुनाफा कमा लेते हैं और हम किसान सोचते रह जाते हैं कि कब हमारी जिंदगी बदलेगी। अगर सरकार सच में किसानों के लिए है, तो मखाना बोर्ड जल्द बने। -रामसेवक मंडल

बोले िजम्मेदार

मखाना कटिहार की शान है और किसानों की मेहनत से यह अंतरराष्ट्रीय पहचान पा चुका है। सरकार किसानों की समस्याओं से वाकिफ है और समाधान की दिशा में गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। मखाना बोर्ड गठन का प्रस्ताव सरकार के विचाराधीन है। साथ ही प्रशिक्षण, तकनीकी सहयोग और बाजार से जोड़ने की योजनाओं पर काम चल रहा है। हमारा प्रयास है कि बिचौलियों पर नियंत्रण हो और किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य सीधे मिल सके। जिससे किसानों के जीवन में खुशहाली आए।

मिथिलेश कुमार, जिला कृषि पदाधिकारी, कटिहार

शिकायत

1. बाजार पर बिचौलियों का कब्जा रहने किसान के हाथ खाली।

2. कम कीमत पर खरीदारी, उत्पादन लागत से थोड़ा ही अधिक दाम मिलता है।

3. सरकारी उदासीनता, अब तक ठोस पहल और नीति का अभाव।

4. बीमारी और जोखिम, पानी में काम करने से स्वास्थ्य पर असर, पर कोई सुविधा नहीं।

5. निर्यात से लाभ नहीं, मखाना विदेश जाता है, पर किसान की जेब खाली रहती है।

सुझाव

1. मखाना बोर्ड का गठन, उत्पादन से विपणन तक एकीकृत तंत्र बने।

2. न्यूनतम समर्थन मूल्य, किसानों को उचित दाम की गारंटी मिले।

3. सीधी मार्केटिंग व्यवस्था, किसानों को सीधे मंडी और एक्सपोर्ट से जोड़ने की सुविधा।

4. वैश्विक ब्रांडिंग, मखाना को जीआई टैग और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई जाए।

5. तकनीकी प्रशिक्षण व आधुनिक साधन, खेती में वैज्ञानिक तकनीक और उपकरण उपलब्ध कराए जाएं।

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