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बोले कटिहार : स्थायी नौकरी मिले तो और भी मजबूत होगी डायल-112 सेवा

डायल-112 के चालक संकट के समय दूसरों की मदद करते हैं, लेकिन अब उन्हें अपनी सुरक्षा और रोजगार की चिंता है। पिछले तीन वर्षों में उनकी वेतन वृद्धि सिर्फ 750 रुपये रही है, और कई चालक पहचान संकट का सामना कर...

Newswrap हिन्दुस्तान, भागलपुरSun, 7 Sep 2025 03:39 AM
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बोले कटिहार : स्थायी नौकरी मिले तो और भी मजबूत होगी डायल-112 सेवा

प्रस्तुति: ओमप्रकाश अम्बुज/ मोना कश्यप

संकट की घड़ी हो या सड़क हादसा, सबसे पहले याद आता है नंबर 112। एक कॉल पर डायल-112 की गाड़ी तुरंत मौके पर पहुंचती है- कभी घायल को अस्पताल ले जाने, कभी महिला की सुरक्षा सुनिश्चित करने तो कभी आग से जूझती जिंदगी बचाने। लेकिन विडंबना यह है कि जो चालक चौबीसों घंटे दूसरों को बचाने में तत्पर रहते हैं, वही आज अपनी जिंदगी और रोजगार की सुरक्षा को लेकर असहाय हैं। समाज और व्यवस्था के लिए जीवनरक्षक बने ये नायक अब खुद असुरक्षा और अनदेखी के शिकार हो रहे हैं। दूसरों की मदद करने वाले इन कर्मवीरों की पुकार आज अपने हक और सुरक्षा की मांग है। जिससे यह समाज में और मजबूती से अपनी सेवा दे सकें।

महज एक कॉल पर पुलिस, एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और महिला सुरक्षा दल घटनास्थल पर पहुंच जाते हैं। पिछले तीन वर्षों में इस सेवा ने प्रदेश के 43 लाख से अधिक लोगों को राहत दी है। लेकिन विडंबना यह है कि जो दल लोगों की जिंदगियां बचाता है, वही खुद असंख्य परेशानियों से जूझ रहा है। डायल-112 के चालक, जो घायल को अस्पताल पहुंचाते हैं, महिलाओं की सुरक्षा के लिए दौड़ते हैं और आपदा के समय घंटों ड्यूटी निभाते हैं, उन्हें न राज्यकर्मी का दर्जा मिला है, न स्थायी नौकरी की गारंटी। उनकी सबसे बड़ी शिकायत यह है कि तीन साल में वेतन वृद्धि महज़ 750 रुपये तक सीमित रही है। न छुट्टी का हक, न लाइफ इंश्योरेंस, ऊपर से पहचान का संकट। बिहार पुलिस के सहयोग से डायल-112 देश में दूसरे स्थान पर है, लेकिन चालकों की पहचान आज भी अस्पष्ट है। कई जिलों में उन्हें पहचान पत्र तक नहीं मिला।

चालक संघ के प्रदेश अध्यक्ष चंदन कुमार और कटिहार के वरिष्ठ सदस्य राजकुमार मंडल बताते हैं कि कई बार मुख्यमंत्री से लेकर पुलिस महानिदेशक तक आवेदन दिया गया, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिला। सबसे गंभीर बात यह है कि अब तक 15 चालक शहादत दे चुके हैं, मगर उनके परिवारों को सरकारी मदद नहीं मिली। उनके परिजनों को साथियों के चंदे से सहारा देना पड़ा। कटिहार जिले में जरूर स्थिति कुछ बेहतर मानी जाती है। यहां के पुलिस अधीक्षक और नोडल अधिकारियों ने चालकों के सम्मान और सुविधा का ध्यान रखा है। चालक संघ ने इसके लिए उनका आभार जताया है, लेकिन यह राहत स्थानीय स्तर तक सीमित है। असली समस्या राज्य स्तर की है- वेतन, सेवा की स्थिरता और पहचान का सवाल हर जिले में गूंज रहा है। वहीं कटिहार के चालक रामप्रवेश यादव का जीवन इस सेवा की मिसाल है। तीन साल पहले उनकी बेटी की शादी का दिन था, लेकिन उसी दिन हादसे की सूचना मिल गई। बिना देर किए वे गाड़ी लेकर मौके पर पहुंचे और घायल को अस्पताल पहुंचाया। नतीजतन, उनकी बेटी की बारात को इंतजार करना पड़ा। परिवार के लिए यह कठिन अनुभव था, लेकिन जब घायल की जान बच गई तो घरवालों ने भी गर्व महसूस किया। रामप्रवेश मानते हैं कि वेतन और छुट्टियों की समस्या भले बनी रहे, पर इंसानियत की सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है। जब लोग उन्हें भगवान भेजा हुआ कहकर धन्यवाद करते हैं तो सारे दुःख छोटे लगते हैं। वे चाहते हैं कि सरकार उनकी नौकरी को स्थिरता और सम्मान दे, ताकि वे और मजबूती से जनता की सेवा कर सकें। इसी तरह सुधीर साह, जो कटिहार में डायल-112 चालक हैं, एक घटना याद करते हुए भावुक हो उठते हैं। एक रात सड़क दुर्घटना की सूचना मिली। वे पूरे दिन की ड्यूटी कर चुके थे और घर पर बच्चे उनके इंतजार में थे कि पिता लौटकर खाना खाएंगे। लेकिन सुधीर ने बगैर रुके गाड़ी मौके पर पहुंचाई, घायल परिवार को अस्पताल पहुंचाया और जब खून की जरूरत पड़ी तो स्वयं रक्तदान भी किया। डॉक्टर ने कहा कि समय पर मदद मिलना ही मरीज की जान बचा गया। यह सुनकर सुधीर की आंखों में आंसू छलक पड़े।

दुआओं से सुकून

प्रदेश अध्यक्ष चंदन मंडल की एक घटना लोगों की स्मृतियों में आज भी ताजा है। बीते महीने की दोपहर उनकी गाड़ी एक गांव में आग की सूचना पर पहुंची। पूरे इलाके में अफरा-तफरी थी। चंदन और उनकी टीम ने सबसे पहले बच्चों और महिलाओं को सुरक्षित निकाला। धुएं से घिरे घर में फंसी एक बुजुर्ग महिला को उन्होंने अपनी पीठ पर उठाकर बाहर निकाला। इस दौरान सांस लेने में कठिनाई हुई, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। गांव के लोग आज भी कहते हैं, अगर डायल-112 की टीम समय पर नहीं पहुंचती तो जान-माल की हानि कहीं अधिक होती। चंदन कहते हैं कि यह नौकरी रोज के संघर्ष से भरी है- कभी वेतन की लड़ाई, कभी पहचान का संकट। लेकिन जब गांव वाले उन्हें भगवान का दूत कहकर सम्मान देते हैं तो सारी शिकायतें छोटी प्रतीत होती हैं। वे मानते हैं कि समाज के लिए दिया गया त्याग ही इंसान की असली पूंजी है। आज पूरा चालक समुदाय चाहता है कि सरकार उनकी मेहनत और बलिदान को पहचाने। यह सेवा लाखों परिवारों के लिए जीवनरेखा बन चुकी है।

सुनें हमारी बात

जाम, बेरोजगारी और खेती-किसानी की दिक्कतें जस की तस बनी हुई हैं। हम चाहते हैं कि नेता अब वादों से आगे बढ़कर जमीनी स्तर पर काम करें।

-राज कुमार मंडल

शहर में हर दिन जाम से जूझना पड़ता है। बच्चे स्कूल देर से पहुंचते हैं और मरीजों को भी दिक्कत होती है। गोशाला रोड ओवरब्रिज की अधूरी परियोजनाग परेशानी बन चुकी है।

-रमेश कुमार

किसानों की हालत बेहद खराब है। फसल की पैदावार तो अच्छी होती है, लेकिन मंडी और उद्योग के अभाव में हमें औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर होना पड़ता है।

-बीरबल साहनी

कटिहार का नाम हर बार बड़े-बड़े वादों में लिया जाता है, लेकिन जमीनी स्तर पर कुछ भी नहीं होता। सड़कों की हालत खराब है और ओवरब्रिज के अभाव में जाम से परेशान रहते हैं।

-कैलाश चौधरी

नौजवानों में गुस्सा है क्योंकि रोजगार का कोई ठिकाना नहीं है। पढ़े-लिखे युवक दिल्ली, पंजाब और गुजरात जाने को मजबूर हैं।

- दिलीप सिंह

कटिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत चिंताजनक है। एम्बुलेंस जाम में फंस जाती है और मरीज अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ देते हैं।

-सुधीर साह

तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र नहीं होने से युवाओं का भविष्य अधर में है। कटिहार को अगर सचमुच बदलना है तो शिक्षा पर गंभीर निवेश करना जरूरी है।

-सुनील सिंह

कटिहार जैसे जिले में कृषि सबसे बड़ी ताकत है, लेकिन यहां के किसान रोज संघर्ष करते हैं। अगर आलू, मक्का और केला पर आधारित फैक्ट्री खुल जाए तो हालात बदल सकते हैं। -राम प्रवेश यादव

शहर में ट्रैफिक का हाल बेहाल है। रेलवे गेट बंद होते ही वाहनों की लंबी कतार लग जाती है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सब परेशान हैं। ओवरब्रिज की योजना पर तेजी से काम होना चाहिए।

-संजय साह

नेता चुनावी रैलियों में बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन गांवों तक विकास की रोशनी नहीं पहुंचती। अब हमें अपने हक की लड़ाई खुद लड़नी होगी।

-ललन चौधरी

कटिहार के नौजवानों में भारी निराशा है। हर साल डिग्री लेकर निकलते हैं लेकिन रोजगार नहीं मिलता। सिर्फ पढ़ाई से काम नहीं चलेगा, जब तक यहां उद्योग-धंधे नहीं लगेंगे।

-अमित यादव

कटिहार में हर कोई जाम, बेरोजगारी और पलायन से परेशान है। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हर चुनाव में नेता इन्हीं मुद्दों पर भाषण देते हैं लेकिन जीतने के बाद सब भूल जाते हैं। -चंदन मंडल

हमारे इलाके में किसान मेहनत करते हैं, लेकिन लाभ नहीं मिलता। बिचौलिये उनका खून चूसते हैं और बाहर के व्यापारी माल लेकर फायदा उठाते हैं।

-पीएन मंडल

कटिहार की जनता अब नेताओं के आश्वासनों से थक चुकी है। ओवरब्रिज, उद्योग और अस्पताल की बातें दशकों से सुन रहे हैं। हकीकत यह है कि हालात जस के तस हैं।

-सदन यादव

बेरोजगारी और पलायन ने जिले की तस्वीर बदल दी है। हर साल हजारों युवक शहर छोड़ने को मजबूर हैं। कटिहार में उद्योग और रोजगार का ठोस इंतजाम होना चाहिए।

-अमित कुमार

कटिहार की हालत देखकर लगता है कि विकास सिर्फ कागजों तक सीमित है। जनता की परेशानियां बढ़ रही हैं लेकिन समाधान कहीं नहीं दिखता।

-अभय सिंह

बोले िजम्मेदार

कटिहार में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए लगातार प्रयास जारी हैं। संसाधनों और कर्मियों की कमी जरूर है, लेकिन मरीजों को समय पर इलाज उपलब्ध कराने के लिए टीम हर स्तर पर सक्रिय रहती है। जाम और अधूरी परियोजनाओं से एम्बुलेंस प्रभावित होती है, इस समस्या से निपटने के लिए जिला प्रशासन को कई बार प्रस्ताव भेजा गया है।

-डॉ. जितेन्द्र नाथ सिंह, सिविल सर्जन कटिहार

शिकायत

1. एडब्ल्यूपीओ से अनुबंध पर बहाली, राज्य कर्मी का दर्जा नहीं।

2. तीन साल में केवल 750 रुपये की बढ़ोत्तरी।

3. कई जिलों में अबतक पहचान पत्र जारी नहीं।

4. छुट्टी पर जाने के लिए रिलीवर चालक उपलब्ध नहीं कराया गया।

5. ड्यूटी में शहीद हुए 15 चालकों के परिवार अब भी सरकारी मदद से वंचित।

सुझाव

1. एडब्ल्यूपीओ के बजाय राज्य कर्मी का दर्जा मिले।

2. 60 वर्ष तक नियमित सेवा सुनिश्चित की जाए।

3. 50,000 वेतन और 10,000 रुपये वर्दी भत्ता लागू हो।

4. हर चालक को तुरंत आईडी और लाइफ इंश्योरेंस सुविधा मिले।

5. गृह जिले में पोस्टिंग, छुट्टी पर जाने पर रिलीवर की व्यवस्था हो।