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बालगृह से बच्चियों के लापता और मौत मामले में बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मांगा जवाब

सहरसा में संचालित बालगृह केन्द्र में एक अनाथ बच्चे की मौत व दो लापता बच्चियों के मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सहरसा के डीएम से पूरी जानकारी मांगी है। मालूम हो कि शहर के...

बालगृह से बच्चियों के लापता और मौत मामले में बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने मांगा जवाब
सहरसा | एक संवाददाताMon, 02 Dec 2019 05:05 PM
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सहरसा में संचालित बालगृह केन्द्र में एक अनाथ बच्चे की मौत व दो लापता बच्चियों के मामले में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सहरसा के डीएम से पूरी जानकारी मांगी है।

मालूम हो कि शहर के डुमरैल चौक स्थित बालगृह में जुलाई 2019 के अंतिम सप्ताह में चीकू नामक एक बच्चे की मौत हो गई थी। वहीं पूर्व में संचालित बालिका गृह से दो बच्चियां गायब हो गयी हैं। इसी मामले को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग नई दिल्ली ने डीएम को पत्र देकर मामले से संबंधित दस्तावेज सहित इस प्रकरण में वैधानिक कार्रवाई करते हुए 15 दिनों के अंदर अवगत कराने का निर्देश दिया है। 

इस मामले को लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को एक व्यक्ति ने आवेदन देकर आरोप लगाया था कि बच्चे को गायब कर दिया गया है। विभाग के पास मरने का कोई साक्ष्य नहीं है और न ही मृत बच्चे का पोस्टमार्टम कराया गया। बालिका गृह में रह रही अनाथ 21 बच्चियों के विषाक्त भोजन खाने से 17 बच्चियां बीमार पड़ गयीं। इसके बाद बालिका गृह के 21 बच्चियों को जून 17 में बालिका गृह मधुबनी भेजा गया। भेजी गयी बच्चियों में केवल 19 बच्चियां पाई गई और दो बच्चियों के बारे में कोई जानकारी अभी तक नहीं मिल रही है। गायब बच्चियों के अंगों को बेच दिया गया है और शरीर को छुपा दिया गया है।

किशोर न्यास परिषद ने भी करायी थी जांच
चीकू की मौत मामले में किशोर न्यास परिषद ने भी जांच करायी थी। परिषद के अध्यक्ष सह प्रथम श्रेणी न्यायिक दंडाधिकारी ने बच्चे की मौत पर भेजी गई सूचना पर संज्ञान लेते 2/19 केस दर्ज कर जांच का आदेश दिया था। सूत्रों के अनुसार परिषद द्वारा मांगी गई जानकारी पर जिला बाल संरक्षण इकाई व बाल संरक्षण समिति द्वारा बच्चे का पोस्टमार्टम होने का कोई साक्ष्य नहीं देकर गोलमटोल जवाब दिया गया था। इसके बाद यह मामला दब गया।

पूर्व में भी कई बच्चों की मौत पर उठे थे सवाल
पूर्व में भी बालगृह में कई बच्चों की मौत हो चुकी है। इन बच्चों की मौत का कोई साक्ष्य नहीं है। वर्ष 16 में भी एक बच्चे की मौत पर संस्थान की भूमिका पर सवाल उठा था। इसके बाद समाज कल्याण निदेशालय के निदेशक ने संज्ञान लिया था। लेकिन जांच का मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
 

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