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गजब! देश में नहीं मिली पहचान, विदेशों में बज रही मंदार की धु़न

पौराणिक व अध्यात्मिक रूप से प्रचलित बांका का मंदार पर्वत देश ही नहीं विदेश स्तर पर अपनी पहचान कायम किए हुए है। हालांकि देश स्तर पर इसकी पहचान को अबतक कागजी तौर पर स्थान नहीं मिल पाया है लेकिन विदेशों...

थाइलैंड की राजधानी बैंकाक के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मंदार का भव्य प्रतीक समुंद्र मंथन का भव्य दृश्य एयरपोर्ट के मुख्य गेट पर लगाया गया है।
1/ 2थाइलैंड की राजधानी बैंकाक के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मंदार का भव्य प्रतीक समुंद्र मंथन का भव्य दृश्य एयरपोर्ट के मुख्य गेट पर लगाया गया है।
थाइलैंड की राजधानी बैंकाक के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मंदार का भव्य प्रतीक समुंद्र मंथन का भव्य दृश्य एयरपोर्ट के मुख्य गेट पर लगाया गया है।
2/ 2थाइलैंड की राजधानी बैंकाक के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर मंदार का भव्य प्रतीक समुंद्र मंथन का भव्य दृश्य एयरपोर्ट के मुख्य गेट पर लगाया गया है।
बांका | जीतेन्द्र कुमार झाMon, 11 Dec 2017 07:05 PM
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पौराणिक व अध्यात्मिक रूप से प्रचलित बांका का मंदार पर्वत देश ही नहीं विदेश स्तर पर अपनी पहचान कायम किए हुए है। हालांकि देश स्तर पर इसकी पहचान को अबतक कागजी तौर पर स्थान नहीं मिल पाया है लेकिन विदेशों में मंदार का प्रतीक भारत के लोगों को अपनी धरती का हर वक्त एहसास करवाते रहती है। हर साल भले ही मंदार महोत्सव का आयोजन जिला प्रशासन के द्वारा किया जाता रहा है लेकिन अबतक इस महोत्सव को राज्य स्तरीय मेले तक का दर्जा नहीं मिल पाया है। मंदार की धरती आज भी पर्यटन के मानचित्र पर अपनी पहचान कायम नहीं कर सकी है।

मंदार की पहचान अगर देखनी है तो विदेशों की धरती पर देखा जा सकता है जहां हमारे इस पौराणिक धरोहरों को सहेजने का प्रयास किया गया है। थाइलैंड की राजधानी बैंकाक के इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर हमारे मंदार का भव्य प्रतीक प्रस्तुत किया गया है। समुंद्र मंथन का भव्य दृश्य एयरपोर्ट के मुख्य गेट पर लगाया गया है। लोग ज्यों ही एयरपोर्ट में घुसते हैं त्यों ही उन्हें समुंद्र मंथन का वह भव्य नजारा देखने को मिलता है। बैंकाक घुमने गए बांका निवासी सुशांत सागर ने बताया कि बैंकाक पहुंचते ही मुझे अपने देश की धरती का एहसास हुआ जब  हमने मंदार का भव्य परिदृश्य देखा।

यही नहीं बैंकाक शहर में एक जगह पर लक्ष्मी नारायण का प्रतीक भी भव्य रूप से बनाया गया है जो भारतवासियों के लिए गर्व की बात है। देवासुर संग्राम में मंदार पर्वत से ही समुद्र मंथन किया गया था। हर साल 14 जनवरी को यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है लेकिन आज भी यह विंडवना है कि इस ऐतिहासिक मेले को अपनी पहचान नहीं मिल पाई है। हर साल घोषणाएं तो लंबी लंबी होती है लेकिन उसके बाद मंदार महोत्सव की दशा ज्यों की त्यों रह जाती है।

प्राकृतिक सुषमाओं से परिपूर्ण मंदार केवल पौराणिक एवं ऐतिहासिक धरोहर ही नहीं, बल्कि सनातन हिंदू धर्मावलंबी, दिगम्बर जैन एवं आदिवासी सम्प्रदाय का सफा धर्मावलंबी का समागम स्थल है। मंदार पर्वत पर हिंदू जहां 33 करोड़ देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। वहीं सफा धर्मावलंबी वनवासी बंधु पर्वत पर अवस्थित प्रभु श्रीराम के चरण चिन्ह को अपनी आस्था को जोड़ते हुए नमन करते हैं। जैन सम्प्रदाय के लोग मंदार पर्वत को 12वें तीर्थकर भगवान वासुपूज्य के तप कल्याण स्थल मानते हैं। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि वासुपूज्य के निर्माण स्थली मंदार ही रही है।

इस बार आयोजन की चल रही भव्य तैयारी
वर्ष 2018 में मंदार महोत्सव को एक आकर्षक रूप देने के प्रयास में जिला प्रशासन जुटा हुआ है। डीएम कुंदन कुमार इस मेले को एक नए रूप में आयोजित करने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। अभी से ही मंदार का निरीक्षण रोजाना पदाधिकारियों के द्वारा किया जाता है। कृषि प्रदर्शनी को नए रूप में प्रदर्शित करने के लिए सारी तैयारी की जा रही है। कार्यक्रम के दौरान लोगों को हर सुविधा मिले इसकी भी तैयारी की जा रही है। 

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