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श्रावणी मेला के लिए अजगैवीनाथ धाम तैयार, यहां पूजा कर कांवरिये जाते है बाबा नगरी

विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेले के दौरान अजगैवीनाथ मंदिर में पूजा को ले कांवरियों की भीड़ उमड़ती है। इसको ले अजगैवीनाथ को आकर्षक ढंग से सजा दिया गया है। मान्यता है कि बिना अजगैबीनाथ की पूजा किये बाबा...

श्रावणी मेला के लिए अजगैवीनाथ धाम तैयार, यहां पूजा कर कांवरिये जाते है बाबा नगरी
सुल्तानगंज (भागलपुर)। निज संवाददाताThu, 11 Jul 2019 05:52 PM
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विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेले के दौरान अजगैवीनाथ मंदिर में पूजा को ले कांवरियों की भीड़ उमड़ती है। इसको ले अजगैवीनाथ को आकर्षक ढंग से सजा दिया गया है। मान्यता है कि बिना अजगैबीनाथ की पूजा किये बाबा बैजनाथ की पूजा अधूरी है। इस कारण कांवरियों की भीड़ में हर वर्ष इजाफा होता जा रहा है। इस बार 17 जुलाई से श्रावणी मेला शुरू होगा।
 
बाबा बैद्यनाथ धाम जाने से पहले कांवरिया पहले सुल्तानगंज पहुंचते हैं
कांवरिया पहले सुल्तानगंज पहुंचते हैं और गंगा स्नान कर बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाने के लिए प्रस्थान करने से पहले बाबा अजगैबीनाथ की पूजा करते हैं। इसके बाद ही अपनी कांवरयात्रा आगे बढ़ाते हैं। यहां श्रद्धालुओं के हुजूम को नियंत्रित करने के लिए दंडाधिकारी के साथ बड़ी संख्या में महिला-पुरुष पुलिस की प्रतिनियुक्ति होती है। मंदिर के महंत बताते हैं कि अजगैवीनाथ के जो स्थाई महंत होते हैं वे बैद्यनाथ को जल चढ़ाने देवघर नहीं जाते हैं। मान्यता है कि बैद्यनाथ स्वयं प्रातः सरकारी पूजा के समय अजगैबीनाथ पहुंच जाते हैं। पहले उनकी पूजा होती है, तब अजगैबीनाथ की पूजा होती है। इसके बाद ही भक्त अजगैबीनाथ की पूजा कर पाते हैं।

मंदिर के पीछे ये कै किवंदति
अजगैवीनाथ के स्थानापति महंत प्रेमानंद गिरी बताते हैं कि महात्मा हरनाथ भारती प्रतिदिन गंगा स्नान कर जल लेकर बाबा बैद्यनाथ को जल अर्पण करने देवघर जाते थे। गाजल लेकर सुनसान जंगल से जब वे एक दिन गुजर रहे थे तो प्यास से व्याकुल एक ब्राह्मण ने उनसे प्यास बुझाने के लिए गंगाजल देने की याचना की। धार्मिक दृष्टिकोण से भक्त हरनाथ भारती ने काफी सोचा और प्यासे ब्राह्मण को गंगाजल दे दिया। इस पर ब्राह्मण प्रसन्न होकर मुस्कुराते हुए बोला मैं वही बैद्यनाथ हूं जिसकी पूजा करने तुम प्रतिदिन जाते हो। अब तुम्हें देवघर जाने की आवश्यकता नहीं है। मेरा एक शिवलिंग तुम्हारी तपस्या स्थल में मृग चर्म के नीचे प्रकट हो चुका है। अब तुम उसी शिवलिंग की पूजा करो। वहीं तुम्हें मनोवांछित फल प्राप्त होगा। यह कहकर ब्राह्मण वेशधारी बैद्यनाथ अदृश्य हो गये। महात्मा जब लौटे तो सबकुछ सही पाया। तब से महात्मा सुल्तानगंज में ही पूजा करने लगे और उसी शिवलिंग को बाबा अजगैवीनाथ के नाम से पुकारा जाने लगा। 

धनुषधारी शिव की लगी है आकर्षक मूर्ति 
अजगैबीनाथ में शिवलिंग की स्थापना को लेकर स्थानापति महंत बताते हैं कि अजगैवीनाथ शिवलिंग की स्थापना महात्मा हरनाथ भारती द्वारा कराये जाने की बात कही जा रही है। यहां अजगैबीनाथ मंदिर से पार्वती मंदिर जाने के लिए पुल बना है। जब गंगा उफान पर रहती है तथा सीढ़ियां जलमग्न हो जाती है। उस समय पुल की सुंदरता में चार चांद लग जाता है। मंदिर पर धनुषधारी शिव की आकर्षक मूर्ति लगाई गई है, जो नई सीढ़ी घाट-अजगैबीनाथ पुल काफी आकर्षक लगता है। श्रावणी मेले में प्रतिदिन पुल पर आते-जाते कांवरियों से यहां का नजारा देखने योग्य रहता है।

बैद्यनाथ के विवाह में अजगैवीनाथ मंदिर से भेजा जाता है गंगाजल 
सुल्तानगंज। प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के मौके पर अजगैवीनाथ मंदिर से बैद्यनाथ मंदिर गंगा जल भेजने की परंपरा चली आ रही है। अजगैबीनाथ के स्थानापति महंत प्रेमानंद गिरी ने बताया कि शिवरात्रि को चौथा पहर का अभिषेक अजगैबीनाथ मंदिर से भेजे गये गंगाजल से होता है। यहां से गंगाजल शिवरात्रि के मौके पर मंदिर के स्थाई पंडा युगल किशोर मिश्र गंगाजल संकल्प के साथ लेकर जाते हैं। उन्होंने बताया कि 2005 में तत्कालीन अजगैवीनाथ के महंत प्रेम शंकर भारती द्वारा अजगैबीनाथ मंदिर से गंगा जल नहीं भेजने पर देवघर में पंडा धर्म रक्षणी सभा के अध्यक्ष ने पूरी के शंकराचार्य से बात कर सलाह ली और उनकी सलाह पर अजगैवीनाथ मंदिर के महंत के नाम गोत्र से गंगाजल जल संकल्प कराके मंगाया गया था।
 

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