छठ पूजा के बाद नदी व तालाब के किनारे बिखरे हैं पॉलिथीन और थर्मोकोल
दिल्ली प्लान की खबर..................................................... पूजा के पहले निगम कराता है सफाई, पूजा के...
भागलपुर, वरीय संवाददाता। छठ महापर्व संपन्न होने के बाद विभिन्न घाटों पर कहीं प्लास्टिक में पूजन सामग्री फेंके हैं तो कहीं थर्मोकोल के प्लेट। हालांकि पॉलिथीन और थर्मोकोल के इस्तेमाल पर अब प्रतिबंध है। बावजूद इसके पूजा के दौरान इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल हुआ। अब इस गंदगी से न सिर्फ गंगा नदी प्रदूषित होगी बल्कि नदी के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए भी खतरा है। पूजा सामाप्त होने के बाद सुबह से शाम हो गया लेकिन गंदगी की सफाई के लिए कुछ नहीं हुआ।
विश्वविद्यालय प्रशासनिक भवन के पीछे गंगा घाट पर सोमवार की शाम को पूरी गंदगी पसरी थी। यहां पूजा करने आए श्रद्धालुओं ने अगरबत्ती सहित अन्य पूजन सामग्रियों के लिए लाए गए पॉलिथीन सहित अन्य कचरे को यहीं छोड़ दिया। यहां तक कि पूजन सामग्रियां प्लास्टिक में बांधकर नदी में भी फेंक दी गई है। बूढ़ानाथ घाट की भी यही स्थिति थी। यहां भी नदी के किनारे पॉलिथीन में पूजन सामग्री लाकर छोड़ दिया गया। ऐसी स्थिति मानिक सरकार घाट, दिगंबर सरकार घाट, दीपनगर घाट, एसएम कालेज घाट आदि जगहों की भी थी। नगर निगम ने शहर के 51 घाटों पर पूजा की तैयारी की थी। पूजा से पहले लगातार अभियान चलाकर स्थानीय पूजा समितियों के सहयोग से घाट की सफाई और मरम्मत पूजा के पहले कराई गई थी लेकिन पूजा के बाद उस जगह की सुध लेने वाला कोई नहीं है। यह स्थिति पहली बार नहीं हुई है। इससे पहले भी ऐसा ही हुआ था। यहां तक के दुर्गा पूजा, काली पूजा, विषहरी पूजा आदि के विसर्जन के बाद भी घाट के पास गंदगी पसरी रह जाती है। वहीं इस बाबत नगर निगम के स्वास्थ्य शाखा प्रभारी अजय शर्मा का कहना है कि गंगा घाटों पर पसरी गंदगी की सफाई नगर निगम के द्वारा करायी जाएगी। आज पूजा समाप्त हुई है। अगले एक-दो दिनों में सफाईकर्मियों को भेजकर सफाई करा दी जाएगी।
पर्यावरणविद बोले- नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा
पर्यावरणविद एवं जलीय जीव के जानकार अरविंद मिश्रा कहते हैं कि यह बड़ी समस्या है। यह नगर निगम की जिम्मेदारी है कि जिस तरह पूजा के लिए नदी के घाटों को तैयार कराया जाता है उसी तरह पूजा के बाद वहां की सफाई भी करायी जाय। क्योंकि इस गंदगी से नदी के पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा है। नदी प्रदूषित होगी अलग। उन्होंने बताया कि प्लास्टिक कछुए या डॉल्फिन के मुंह या नासिका के पास फंस जाए तो इन जीवों को सांस लेना मुश्किल हो जाएगा। उन्होंने बताया कि प्लास्टिक के कण टूटते हैं और पानी में मिलकर यह मछलियों के पेट में जा सकता है। इससे मछलियों में बीमारी हो सकती है और इसका असर मानव पर भी पड़ सकता है।
