ट्रेंडिंग न्यूज़

Hindi News बिहार भभुआखिसके जलस्तर ने बढ़ा दी किसानों की चिंता

खिसके जलस्तर ने बढ़ा दी किसानों की चिंता

इंद्रपुरी बराज व दुर्गावती जलाशय परियोजना से नहरों में नहीं आया पानी, जलस्तर उपर नहीं आया, ताल-तलैया भी...

खिसके जलस्तर ने बढ़ा दी किसानों की चिंता
हिन्दुस्तान टीम,भभुआFri, 01 Jun 2018 01:31 PM
ऐप पर पढ़ें

इंद्रपुरी बराज व दुर्गावती जलाशय परियोजना से नहरों में नहीं आया पानी, जलस्तर उपर नहीं आया, ताल-तलैया भी सूखे

पानी का नहीं है प्रबंध तो किसान कैसे तैयार करें धान की नर्सरी

रोहिणी नक्षत्र में बिचड़ा डालने से धान की उपज होती है अच्छी

55 हजार हेक्टेयर भूमि में डाला जाना है बिचड़ा

01 लाख 10 हजार हेक्टेयर में की जानी है रोपनी

भभुआ। कार्यालय संवाददाता

गुरुवार की रात हल्की बारिश हुई। इससे हवा में नमी आई पर खेतों में नहीं। ताल-तलैया सूखे पड़े हैं। पानी का लेबल उपर नहीं आ सका है। डीजल पंप भी थोड़ी देर के बाद पानी उगलना बंद कर दे रहे हैं। न इंद्रपुरी बराज से और न दुर्गावती जलाशय ही नहरों में पानी आया। आसमान में कभी-कभी बादल उमड़-घुमड़ रहे हैं। लेकिन, मेघ बरस नहीं रहे हैं। ऐसे में किसान धान का बिचड़ा कैसे डाले समझ नहीं पा रहे हैं।

जिले की अधिकांश आबादी खेतीबारी पर ही निर्भर है और बाजार कृषकों पर। अगर खेती मारी जाएगी, तो किसानों के पास पैसा नहीं आएगा और जब उनके पास पैसे नहीं होंगे तो वे बाजार से कुछ खरीदारी नहीं कर सकेंगे। इससे बाजार प्रभावित होगा। कहते हैं कि रोहिणी नक्षत्र में धान की नर्सरी तैयार करने से उपज अच्छी होती है। लेकिन, पानी की समस्या ऐसी है कि किसान नर्सरी तैयार नहीं कर पा रहे हैं।

कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, कैमूर जिले में 1.10 लाख हेक्टेयर भूमि में धान की खेती करनी है। इसके लिए 55 हजार हेक्टेयर भूमि में बिचड़ा डाला जाना है। कुछ ही किसान निजी संसाधन की बदौलत बिचड़ा डाल सके हैं। गुरुवार की रात 8:45 बजे हल्की वर्षा हुई। इससे किसानी को कुछ खास फायदा नहीं हुआ। हालांकि इंद्रपुरी बराज से पानी छोड़ा गया है। लेकिन, कैमूर की नहरों में पानी पहुंचने में पांच-छह दिन लग जाएंगे। हालांकि इस बार मजबूत मानसून की उम्मीद है।

कम पानी में करें धान की खेती

कृषि वैज्ञानिक डॉ. सुरेन्द्र कुमार कहते हैं कि श्री विधि से धान उत्पादन करनेवाले किसानों की संख्या लगातार बढ़ रही है। पारंपरिक तकनीक से लगाए गए धान के पौधों वाले खेत लबालब पानी से भरा होना चाहिए। लेकिन, मेडागास्कर तकनीक में पौधों की जड़ों में नमी बरकरार रखना ही पर्याप्त होता है। लेकिन, सिंचाई का पुख्ता इंतजाम जरूरी हैं। सामान्यत: जमीन पर दरारें उभरने पर ही दोबारा सिंचाई करनी होती है। इस तकनीक से धान की खेती करने में जहां भूमि, श्रम, पूंजी और पानी कम लगता है, वहीं उत्पादन भी कई गुणा ज्यादा होता है। फॉस्फोरस की कमी वाली मिट्टी में भी इसका कई गुना ज्यादा उत्पादन हो सकता है, वह भी बिना किसी रासायनिक खाद के इस्तेमाल के।

140 सेमी. वर्षापात पर अच्छी होगी उपज

धान और पानी का गहरा संबंध है। जहां वर्षा अधिक होती है, वहां धान का क्षेत्रफल ज्यादा होता है। जिन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 140 सेमी. से अधिक होती है, वहां धान की उपज अच्छी होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों (100 सेमी. से कम) में सिंचाई के साधन जरूरी है। पौधों की बढ़वार के लिए विभिन्न अवस्थाओं पर 21-30 डिग्री सेग्रे. तापक्रम की आवश्यकता होती है। फसल की अच्छी वृद्धि के लिए 25 से 30 डिग्री सेग्रे. तथा पकने के लिए 21-25 डिग्री सेग्रे. तापक्रम की जरूरत पड़ती है।

क्या कहते हैं अधिकारी

जल संसाधन विभाग के अधीक्षण अभियंता भूपेश प्रसाद सिंह ने बताया कि इंद्रपुरी बराज से पानी छोड़ा गया है। आरा की नहरों में कुछ काम होनेवाला था। इसलिए 25 जून को पानी नहीं छोड़ा गया था। दो-तीन दिनों में कैमूर की नहरों तक पानी पहुंच जाने की उम्मीद है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें