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26 वर्ष का रेफरल अस्पताल डॉक्टरों के बिना बदहाल

दो डॉक्टर कोरोना की चपेट में, कैसे संभलेगी डेढ़ लाख लोगों की सेहत की कमान, जलजनित बीमारियों की चपेट से लोग आए तो बचाव में स्वास्थ्य विभाग के छूटेंगे...

26 वर्ष का रेफरल अस्पताल डॉक्टरों के बिना बदहाल
हिन्दुस्तान टीम,भभुआThu, 23 Jul 2020 07:42 PM
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दो डॉक्टर कोरोना की चपेट में, कैसे संभलेगी डेढ़ लाख लोगों की सेहत की कमान

जलजनित बीमारियों की चपेट से लोग आए तो बचाव में स्वास्थ्य विभाग के छूटेंगे पसीने

संविदा पर काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मी गए हड़ताल पर, जांच व इलाज भगवान भरोसे

रामगढ़। एक संवाददाता

राम मनोहर लोहिया रेफरल अस्पताल 26 वर्ष का हो गया। इस दौर में इसने कई उतार चढ़ाव देखे। लेकिन, अस्पताल की हालत में खासा बदलाव देखने को नहीं मिला। क्षेत्र के सांसद अश्विनी कुमार चौबे केन्द्र में स्वास्थ्य राज्य मंत्री है। फिर भी उनके निर्वाचन क्षेत्र में विशेषज्ञ डॉक्टरों के बिना अस्पताल बदहाल है। 25 बेड का अस्पताल है। लेकिन, बरसात में डेढ़ लाख लोगों की सेहत की देखरेख आयुष डॉक्टरों के भरोसे है। फिलहाल यह अस्पताल खुद ही संकट से घिर गया है। दो डॉक्टर व दो अन्य स्वास्थ्यकर्मी कोरोना से संक्रमित हैं। संविदा पर काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मी हड़ताल पर चले गए हैं। तब अस्पताल में जांच व इलाज भगवान भरोसे है।

एक्सीडेंटल व गंभीर बीमारियों के मामले में मरीजों को रेफर करने के सिवा कोई खास प्रबंध नहीं। बरसात का सीजन है। जलजनित बीमारियों का प्रकोप बढ़ा तो बचाव के लिए कारगर तरीके से निपटने का खाका भी राम भरोसे ही है। क्योंकि रामगढ़ बाढ़ प्रभावित क्षेत्र है। पहले डायरिया होने पर जरुरी दवा के साथ मेडिकल टीम प्रभावित गांव के लिए रेस हो जाया करती थी। अब क्या होगा, जब अस्पताल खाली है। चिकित्सा प्रभारी डॉ. सुरेन्द्र सिंह ने बताया कि चिकित्सकों की कमी है। यह कमी तो हमेशा रही है। जो चिकित्सक थे, उनमें भी दो पॉजिटिव हो गए। मुझे लेकर पांच बचे हैं, उनके सहयोग से बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने के लिए हम काम कर रहे हैं।

उन्होंने बताया कि सभी जरुरी दवाएं उपलब्ध हैं। बता दें कि बरसात के मौसम में बीमारियों का प्रकोप कुछ ज्यादा ही होता है। डायरिया, चर्म रोग, फोड़े-फुंसी का प्रकोप, वायरल फीवर से लोग अमूमन पीड़ित होते हैं। गांवों में बधार में कृषि कार्य के दौरान बिच्छू व सांप के दंश का भी खतरा बना रहता है। ऐसे में प्रखंड क्षेत्र के गरीबों को इलाज करवाने का एक मात्र सहारा रेफरल अस्पताल है।

फिलहाल रैपिड एंटीजन टेस्ट में फंसा है अस्पताल प्रबंधन

रामगढ़। प्रखंड मुख्यालय के अस्पताल का दर्जा तो रेफरल अस्पताल का है, पर सुविधा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के स्तर का भी नहीं। उसपर भी कोरोना जांच का दायित्व मिला है। रैपिड एंटीजन टेस्ट करने में ही सारी उर्जा खर्च हो रही है। दो वर्ष पहले दो विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्ति हुई, लेकिन वह तब से अनुपस्थित हैं। फिलहाल पांच ही चिकित्सक हैं। विशेषज्ञ चिकित्सक एक भी नहीं। ग्रेड-ए एएनएम चार होना चाहिये, हैं एक भी नहीं।

17 वर्ष तक कागज में भटका अस्पताल, अब भटक रहे मरीज

रामगढ़। रेफरल अस्पताल की दास्तां भी अजीब है। रामगढ़ में रेफरल अस्पताल के भवन का उदघाटन वर्ष 1994 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री सुधा श्रीवास्तव ने किया। अस्पताल को रेफरल का दर्जा मिला वर्ष 1911 में। सत्रह वर्षों तक यह अस्पताल कागजों में गुम रहा। दरअसल कागज में यह कोचस में था। भवन रामगढ़ में। दर्जा पाने का कसरत जारी रहा। हालांकि सूबे में यहां का आई कैंप बेहतर सुविधा की वजह से सुर्खियों में रहा।

डॉक्टर समेत चार कर्मियों के पॉजिटिव होने से परेशानी

रामगढ़। रेफरल अस्पताल में दो डॉक्टर समेत चार कर्मियों के पॉजिटिव पाए जाने से परेशानी बढ़ गई है। संविदा कर्मियों के हड़ताल पर चले जाने से स्टाफ की कमी से अस्पताल जूझ रहा है। अन्य स्वास्थ्यकर्मियों में हड़कंप मचा है। काम करने में दिलचस्पी नहीं ले रहे। एक स्वास्थ्यकर्मी छोटू प्रसाद ही है, जो अस्पताल में दिन रात अपनी सेवा दे रहा है।

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कैप्शन-रामगढ़ प्रखंड का बाहर से चकाचक दिखने वाला बदहाल रेफरल अस्पताल का भवन।

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