बदले समय में प्रेमचंद की रचना आज भी प्रासांगिक
फोटो नंबर: 21, आरबीएस कॉलेज तेयाय में आयोजित सेमिनार में मौजूद डॉ. चंद्रभानु प्रसाद सिंह, पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, डॉ. मुनेश्वर यादव डॉ भगवान प्रसाद सिन्हा एवं अन्य अतिथिगण।

तेघड़ा, निज प्रतिनिधि। तुलसीदास के बाद प्रेमचंद सबसे विख्यात रचनाकार हुए। प्रेमचंद की रचना मुक्ति संघर्ष के गर्भ से हुआ। ये बातें मुंशी प्रेचन्द की जयंती के मौके पर आरबीएस कॉलेज तेयाय में आयोजित सेमिनार में डॉ चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने कही। उन्होंने कहा कि अधिकतर कहानियां मध्य वर्ग पर आधारित हैं, लेकिन प्रेमचन्द की रचना के केन्द्र में किसान और मजदूर थे। इससे पहले डॉ. भगवान प्रसाद सिन्हा ने कहा कि बाजारवाद के आगे कोई संस्कृति नहीं है। केवल उभपभोक्ता और औद्यौगिक संस्कृति रह गई है। प्रेमचंद ने बहुत पहले ही यह भांप लिया था। उन्होंने कहा था कि पूंजी के बढ़ती रफ्तार में संवेदना समाप्त हो जाएंगी।
मौके पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के अधिकारी एवं राजनीति विज्ञान के प्राध्यापक डॉ. मुनेश्वर यादव ने कहा कि आज जब पूंजी और बाजार के समक्ष संवेदना समाप्त होती जा रही है, ऐसे में प्रेचंद की रचना और अधिक प्रासांगिक हो गई है। आज के समय और समाज में प्रेमचंद की रचना विषय पर आयोजित सेमिनार में बोलते हुए जीडी कॉलेज के प्राध्यापक अभिषेक कुंदन ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद अनछुए लोगों को अपना पात्र बनाकर कहानियां लिखी जो समाज में हमेशा उपेक्षित रहते थे। उन्होंने कहा कि समय बदल गए। लेकिन प्रेमचंद की कहानियां आज भी प्रासांगिक हैं। क्योंकि आज भी वर्ग और सत्ता का शोषण जारी है। महाविद्यालय का सचिव व पूर्व सांसद शत्रुघ्नन प्रसाद सिंह ने कहा कि प्रेमचंद ने कहा कि प्रमचंद का मानना है कि सांप्रदायिकता, संस्कृति की आड़ में, सीधे-सादे लोगों को अपने साथ जोड़ने का एक मंत्र है। आज यह सच दिखाई पड़ रही है। जीडी कॉलेज के डॉ. अरमान आनंद ने कहा कि प्रेमचंद न हिन्दी के लेखक थे और न उर्दू के। वह हिन्दुस्तानी भाषा के रचनाकार थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रिंसिपल डॉ. गाजी सलाउद्दीन ने की। मंच संचालन हिन्दी विभाग की डॉ. पार्वती कुमारी ने किया।

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