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आजादी की दास्तां सुनाने को बचे महज 15 सेनानी

बांका जिला स्वतंत्रता सेनानी और शहीदों की धरती रही है। आजादी के बाद यहां 600 से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों के नाम आजादी के इतिहास में दर्ज हैं। लेकिन अब इनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है।...

आजादी की दास्तां सुनाने को बचे महज 15 सेनानी
हिन्दुस्तान टीम,बांकाSat, 25 Jan 2020 01:22 AM
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बांका जिला स्वतंत्रता सेनानी और शहीदों की धरती रही है। आजादी के बाद यहां 600 से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों के नाम आजादी के इतिहास में दर्ज हैं। लेकिन अब इनकी संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। गणतंत्र भारत के स्वतंत्रता की कहानी सुनाने को महज एक दर्जन स्वतंत्रता सेनानी बचे हैं। अब जिंदगी के ढलान पर हैं। जिन्होंने अपनी जिंदगी देश की आजादी के लिए समर्पित करते हुए जंगे आजादी में कूद पड़े थे। बांका जिले में कोने-कोने से क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम में कूदे थे। इसमें खासकर कटोरिया, बांका और बौंसी प्रखंड क्षेत्र इनका गढ़ रहा है। जिसकी संगम स्थली कटोरिया का जमदाहा मोड़ माना जाता है। यहां के आसपास सेनानियों के कई गांव हैं। जहां देश को आजाद कराने के लिए स्वतंत्रता सेनानी और वीर क्रांतिकारी इकट्ठे होकर अंग्रेजों के खिलाफ जंगे आजादी की रणनीति तैयार करते थे। जिसके बाद उसे अंजाम तक पहुंचाया जाता था। बौंसी के स्वतंत्रता सेनानी विशेश्वर महतो, मैनेजर चौधरी, बाबूलाल मंडल, रामधनी पंजियारा, कटोरिया के तुलसी चौधरी और बाराहाट के कमलेश्वरी चौधरी की अवस्था काफी गिर चुकी है। स्वतंत्रता संग्राम का जिक्र होते ही उनमें नई ऊर्जा का संचार होने लगता है।तुलसी चौधरी ने कहा परशुराम सिंह के नेतृत्व में परशुराम सेना में शामिल होकर आजादी की जंग लड़ी थी। क्रांतिकारी संगठन में शहीद जागो शाही, पागो शाही और लक्खी शाही भी शामिल थे। बेलहर के स्वतंत्रता सेनानी मदन प्रसाद मंडल, सुकदेव मंडल, हरी प्रसाद सिंह, भारती मंडल, शंभूगंज के चंद्रदेव शर्मा, ब्रहमदेव प्रसाद, कपिलदेव सिंह, बनारसी सिंह, सच्चिदानंद चौधरी, प्रयाग नारायण सिंह व फुल्लीडुमर के नकुल प्रसाद ने बताया कि वे महेंद्र गोप, युमना सिंह, आद्या सिंह व गुदड़ सिंह के साथ आजादी की लड़ाई लड़ी थी। जंगे अजादी के दौरान अंग्रेज उनकी तलाश में अक्सर घर पर आ धमकते थे। बचने के लिए उन लोगों ने नाढ़ा व झरना पहाड़ को अपना ठिकाना बना रखा था। वे कई बार बेलहर प्रखंड कार्यालय में तिरंगा फहराने की कोशिश में अंग्रेजों की क्रूरता के शिकार हुए थे।

स्वतंत्रता संग्राम की कहानी जुबानी नहीं सुन सकेगी नई पीढ़ी: अब आने वाली पीढ़ी शायद ही जंगे आजादी की कहानी क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों की जुबानी सुन सकेंगे। आजादी के 72 साल बाद स्वतंत्रता संग्राम के बचे हुए सिपाहियों की भी सांसें भी टूटने लगी है।

स्वतंत्रता संग्राम के सरताज भी सम्मान के मोहताज: जिले में कभी स्वतंत्रता सेनानियों की लंबी फेहरिस्त थी। लेकिन वक्त के साथ वे उंगलियों में सिमट कर रह गए हैं। स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों की क्रूरता के शिकार सिपाही को याद बस राष्ट्रीय पर्वों में ही किया जाता है। सरकारी स्तर पर किए जाने वाले कई बड़े कार्यक्रमों में इन्हें सम्मानित करना तो दूर आमंत्रित तक नहीं किया जाता है। आज हालात तो ये है कि अपने ही क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम के सरताज सम्मान के मोहताज हो गए हैं।

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