तांत्रिक विधि से होती है पंजवारा ड्योढ़ी स्थित दुर्गा मंदिर में पूजा
संक्षेप: पंजवारा(बांका),निज प्रतिनिधिपंजवारा(बांका),निज प्रतिनिधि पंजवारा के ढ्योड़ी में स्थापित दुर्गा मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है।पंजवारा में जमींदारों के पूर

पंजवारा(बांका), निज प्रतिनिधि। पंजवारा के ढ्योड़ी में स्थापित दुर्गा मंदिर का ऐतिहासिक महत्व है।पंजवारा में जमींदारों के पूर्वजों द्वारा सन् 1861 ई. से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जा रहा है। मालूम हो कि यहां पहले कायस्थ परिवार द्वारा तकरीबन 1500 ई .से ही कलश की स्थापना कर तांत्रिक विधि से बड़ी नेम -निष्ठा के साथ दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता था।इसी कालखंड में यहां के जमींदार को संतान के रूप में चार पुत्रियां ही थी।जिस पर जमींदार को अपनी जमींदारी प्रथा को आगे बढ़ाने के लिए दिन रात एक पुत्र की लालसा लगी रहती थी।एक बार पूजा आयोजन के दौरान यहां के जमींदार मसुदन प्रसाद सिंह मां के दरबार पहुंचे और मां भगवती से पुत्र की कामना की।कहा
जाता है कि उन्हें देवी के आशीर्वाद से पुत्र रत्न प्राप्त हुआ था।पुत्र प्राप्ति के दूसरे साल से ही राजा ने ढ्योड़ी में भव्य मंदिर की स्थापना कर पूजा-अर्चना आरंभ की जो जमींदार के वंशजों द्वारा आज भी जारी है।आज भी यहां काफी धूम-धाम से पूजा का आयोजन किया जाता है।यहां महाष्टमी से भव्य मेले का आयोजन किया जाता रहा है।मेले में तरह-तरह के खेल तमाशे के साथ-साथ बड़े-बड़े मिठाई व अन्य दुकानें भी मेले की सुंदरता में चार चांद लगाते है।वहीं इस साल भी बनारस के विद्वान पंडितों की टोली के द्वारा संध्या में महाआरती का आयोजन किया जाएगा।हर साल होने वाली दुर्गा पूजा में व्यवस्था बनाए रखने के लिए पूजा समिति के कमेटी के अध्यक्ष कैलाश प्रसाद सिंह,सचिव कुमार सुमन सिंह,पूर्व सचिव ललित किशोर सिंह,चन्द्र किशोर सिंह,राज किशोर सिंह,पूर्व जिप सदस्य विजय किशोर सिंह,पुतुल नरेश सिंह,आनंद सिंह,राजा सिंह,अंकित कुमार सिंह आदि सक्रिय रहते है। पहली पूजा से ही प्रत्येक दिन ढ्योड़ी परिवार के द्वारा बलि देने की प्रथा आज भी जारी है।भगवती मंदिर से हटकर दक्षिण दिशा में कलशा स्थान है।जहां पांच पूजा से कलश स्थापित होती है,एवं दुर्गा पाठ के साथ-साथ प्रत्येक दिन बलि भी दी जाती है।कलशा स्थान में सिर्फ ड्योढ़ी परिवार के सदस्य ही पूजा-अर्चना करते है। देवी विसर्जन के दौरान आदिवासी समुदाय के भक्तों द्वारा देवी के दरबार में पारंपरिक नृत्य देखने लायक होता है।मेले में तरह-तरह के खेल तमाशे के साथ-साथ बड़े-बड़े मिठाई व अन्य दुकानें भी मेले की सुंदरता में चार चांद लगाते है। मां दुर्गा की प्रतिमा का निर्माण बंगाल के प्रसिद्ध कलाकारों के द्वारा किया जाता है।पिछले कई सालों से बंगाल के आसनसोल के नामी-गिरामी कलाकारों के द्वारा मां दुर्गा की भव्य प्रतिमा बनाई जाती है।

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