फर्नीचर कारीगरों को सालोंभर काम,प्रशिक्षण व योजनाओं का मिले लाभ
बेतिया में ब्रांडेड फर्नीचर की दुकानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कारीगरों को सरकारी सहायता नहीं मिल रही है, और 18% जीएसटी के कारण कच्चे माल की लागत बढ़ रही है। इससे उपभोक्ताओं पर भी असर...
बेतिया में लोकल ब्रांडेड फर्नीचर की दुकानें धड़ाधड़ खुल रही हैं। दुकानदारों और इनमें फर्नीचर बनाने वाले कारीगरों की समस्याएं कई तरह की हैं। बिहार के अलावे यूपी, झारखंड और नेपाल में यहां के निर्मित ब्रांडेड फर्नीचर की आपूर्ति की जाती है, पर इन दुकानदारों और करीगरों को सरकार की ओर से सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। यहां तक तक कि उनके बच्चों का आरटीई के तहत नामांकन तक नहीं हो पाता है। राजकोट, जमुना नगर, उत्तराखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उड़ीसा व पश्चिम बंगाल से कच्चा माल मंगवाया जाता है। इसमें खर्च अधिक आता है। रही सही कसर जीएसटी पूरी कर देता है।
बेतिया में फर्नीचर के इन ब्रांडेड प्रतिष्ठानों में सैकड़ों लोगों को रोजगार भी मिलता है। वहीं इन कर्मियों को सरकार की ओर से शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास से जुड़ी हुई मूलभूत सुविधा आज भी नहीं मिल पा रही। इसके कारण मानसिक तनाव के बीच रहते हुए रोजगार करना पड़ता है। ब्रांडेड फर्नीचर के दुकानदार संजीत गुप्ता ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि कच्चा माल लाने के लिए 18 फीसदी जीएसटी भरना पड़ता है। यह बहुत बड़ा आर्थिक बोझ है। अगर सरकार उसको घटकर छह से आठ फीसदी कर दे तो हमें राहत मिलेगी। यहां सैकड़ो कारीगरों को भी आर्थिक सुविधा मिल पाए पाएगी। ऐसा करने से उत्पादित सामग्रियों की कीमत में कमी आएगी। इससे उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी। दुकानदार के संजीत गुप्ता, अनिश अंसारी, मोहन कुमार वर्मा, चंद्रशेखर साह, रंजेश कुमार, सुजीत श्रीवास्तव, रामसागर साह, विनय कुमार, जितेंद्र प्रसाद, मुस्तफा अंसारी, सुनील शर्मा, फैयाज, सज्जाद आलम, समीर अंसारी, सोहेल अली, अनीस अंसारी आदि ने बताया कि एक समय ऐसा भी था जब वाल्मीकि प्रोजेक्ट टाइगर के वन क्षेत्र से कच्चा माल आसानी से कम कीमत पर उपलब्ध हो जाता था। अब यहां पर वनों से लकड़ी की कटाई पर रोक लग जाने के बाद आसपास के राज्यों से कच्चा माल मंगाना पड़ता है। इससे बहुत बड़ा आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। इससे उत्पादित सामग्रियों की कीमत अधिक होती है। ऐसे में कई बार उपभोक्ता चाहते हुए भी अपने मनचाहे फर्नीचर को नहीं खरीद पाते है। हालांकि हम लोगों द्वारा कम से कम कीमत पर इन सामग्रियों को उपभोक्ताओं तक पहुंचा जा रहा है। इन प्रतिष्ठानों में काम करने वाले कारीगरों ने बताया कि जब भी वे अथवा उनके परिजन बीमार पड़ते हैं तो इलाज के लिए सरकार की ओर से मिलने वाली सुविधाएं मुहैया नहीं कराई जाती। हमलोगों के पास आयुष्मान कार्ड तक नहीं हैं। आयुष्मान कार्ड रहने पर भी निजी अस्पतालों में सुविधा नहीं होने के कारण नकद जमा करने पड़ते हैं। जान जोखिम में डालकर हम दिन रात मेहनत करते हैं, इससे हम बीमार पड़ते हैं और बीमारी का इलाज करने में हमारी कमाई खर्च हो जाती है। प्रतिदिन गांव से आने वाले कारीगरों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। कई कारीगरों को अभी तक आवास योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाया है। वे किराए के मकान में रहने को मजबूर हैं।
शिकायतें
1. राज्य और देश स्तर पर उच्चतम कारपेंटरी ट्रेनिंग की सुविधा शहर में नहीं मिलने से परेशान हो रही है।
2. हैंडीक्राफ्ट उद्योग में जीएसटी अधिक होने के कारण बिक्री प्रभावित होती है।
3. फर्नीचर बनाने वाले कारीगरों को सरकारी सहायता व बच्चों को आरटीई का लाभ नहीं मिलता है।
3. कारपेंटरी मशीन और टूल्स पर सरकार की ओर से सब्सिडी नहीं दी जा रही है।
5. लकड़ी समेत सभी तरह के कच्चा माल बिहार के बाहर के अन्य प्रदेशों के वन डिपो से लाने की मजबूरी है।
सुझाव
1. फर्नीचर पर से जीएसटी की दर को 18 प्रतिशत से घटा कर छह से आठ प्रशिशत की श्रेणी में लाना चाहिए।
2. लकड़ी की खरीद पर जो आईटीसी मिलती है वहे मेकिंग कॉस्ट पर भी मिलनी चाहिए।
3. फर्नीचर कारीगरों को सरकारी सुविधा के साथ उनके बच्चों का नामांकन आरटीई के तहत हो। 4. मशीन और टूल्स पर सरकार की ओर से सब्सिडी मिलनी चाहिए। फर्नीचर कारोबार को बढ़ावा देने के लिए काम हो।
5. स्थानीय स्तर पर कच्चा माल मिलनी चाहिए। इससे फर्नीचर निर्माण की लागत में कमी आएगी।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।




