कंजर समाज के लोगों को सरकारी योजनाओं और आवास की दरकार
कंजर समाज के लोग 50 वर्षों से मूलभूत सुविधाओं और आवास से वंचित हैं। सड़क किनारे झोपड़ियों में रहकर वे मुश्किल से दो जून की रोटी कमा रहे हैं। आधुनिकता के कारण उनके पारंपरिक कारोबार पर संकट है। सरकार से...
अनुसूचित जाति के अधीन आने वाले कंजर समाज के लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। सड़क किनारे जुग्गी -झोपड़ी बनाकर पत्थर के जांता, सिलवट बनाकर बेचने वाले कंजर समाज को 50 वर्षों में सरकार और प्रशासन की तरफ से घर बनाने के लिए जमीन उपलब्ध नहीं कराया जा सका है। आज भी नगर में 500 से अधिक ऐसे परिवार हैं जिनके पास छत नहीं हैं। सड़क के किनारे छोटा-मोटा अपना रोजगार कर काफी मुश्किल से दो जून की रोटी का जुगाड़ कर पाते हैं। चेक पोस्ट डोलबाग के किनारे कंजर समाज की महिलाएं स्वरोजगार कर अपने परिवार का भरण पोषण करती हैं।
वहीं बरवत सेना से पथरी घाट जीएमसीएच तक फोर लेन सड़क बनाए जाने से इन्हें बेदखल होने का डर सता रहा है। ऐसे में इनके सामने सबसे बड़ी समस्या आशियाने की है। तिरुपति देवी, विद्या देवी, रीता देवी, कुंती देवी, चांद तारा ने बताया कि हम लोग गरीब हैं। 50 वर्षों से चेक पोस्ट के पास सड़क के किनारे जुग्गी- झोपड़ी बनाकर स्वरोजगार कर रहे हैं। मुश्किल से 200 से लेकर तीन सौ रुपए प्रतिदिन कमाई होती है। इसी से हम लोगों का घर परिवार चलता है। बच्चों की पढ़ाई, बिजली बिल, दवा, शादी विवाह आदि का खर्च मुश्किल से वहन कर पाते हैं। आधुनिकता के दौर में हमारा पुश्तैनी कारोबार चौपट हो रहा है। मिक्सर के बढ़ते प्रचलन से पत्थर के बने जाता सिलवट की डिमांड कम हो गई है। इसका असर हम लोगों के कारोबार पर पड़ा है। पूंजी के अभाव में हम लोग दूसरा कारोबार नहीं कर पाते हैं। घर बनाने के लिए अपनी जमीन नहीं है। सरकार हम लोगों को घर बनाने के लिए तीन से लेकर 5 डिसमिल जमीन उपलब्ध कराएं। वह जमीन सड़क के किनारे होना चाहिए। सरकार जमीन के साथ-साथ प्रधानमंत्री शहरी आवास योजना का लाभ भी दिलाए ताकि हम लोग बेहतर ढंग से अपना जीवन-यापन कर सकें। उत्तर प्रदेश के विंध्याचल से पत्थर मंगा कर कारोबार करते हैं। कई दिनों तक बिक्री नहीं होने से सेठ साहूकारों पर आश्रित रहना पड़ता है। छोटे-मोटे कामों के लिए भी सेठ साहूकारों से कर्ज लेना पड़ता है। पैसों के अभाव में हम लोग अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा नहीं दे पा रहे हैं। शिक्षा के अधिकार कानून के तहत हमारे बच्चों का प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्कूलों में नामांकन नहीं हो पाता है। आर्थिक मजबूरी के कारण हम अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने असमर्थ हैं। शौचालय की कमी के कारण खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। स्ट्रीट लाइट नहीं है। मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। फाॅगिंग नहीं हो पाता है। जबकि हमसे नगर निगम का टैक्स लिया जाता है। स्वयं के नाम से जमीन नहीं होने के कारण बैंक हमें लोन नहीं देती है। काफी मुश्किल से स्वरोजगार और मजदूरी कर हम लोग अपने परिवार का भरण पोषण कर पाते हैं। हम लोग काफी कम पढ़े लिखे हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ हमें नहीं मिलता है। हमारे समाज की सभी औरतें ज्यादा सिलवट बनाने का काम करती है। हमें दूसरे कामों के लिए प्रशिक्षण नहीं मिला हुआ है। हमारा पुश्तैनी कारोबार आधुनिकता के दौर में चौपट हो रहा है। शिकायतें: 1. 50 वर्षों में कंजर समाज को जमीन उपलब्ध नहीं कराया गया है। पीएम आवास योजना का भी लाभ नहीं मिल रहा है। 2. आधुनिकता के दौर में जांता-सिलवट का कारोबार चौपट हो रहा है। मिक्सर मशीन के कारण हमारी कमाई घट गई है। 3. बच्चों का प्राइवेट स्कूलों में नामांकन नहीं होता है। आरटीई का लाभ नहीं मिल रहा है। 4. रोजगार करने के लिए बैंकों से लोन नहीं मिलता है। फोरलेन सड़क बनाने के नाम पर झोपड़ी हटाई जा रही है। 5. शौचालय का अभाव है। खुले में शौच को जाना पड़ता है। महिलाओं को बीमा का लाभ नहीं मिलता है। सुझाव: 1. सरकार और प्रशासन घर बनाने के लिए सड़क के किनारे 5 डिसमिल जमीन दें। भवन का लाभ मिलना चाहिए। 2. घर-घर शौचालय का निर्माण होना चाहिए। आवास विहीन परिवारों को पक्का मकान मिलना चाहिए। 3. अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण में से हमारे लिए अलग आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए। 4. बच्चियों की शिक्षा के लिए व्यवस्था होनी चाहिए। सरकार की सभी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। नियमित फाॅगिंग हो। 5. रोजगार करने के लिए बैंकों से लोन मिलना चाहिए। उसका ब्याज कम होना चाहिए। हमें आर्थिक सहायता मिलनी चाहिए।
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