सदर अस्पताल में डॉक्टर की पिटाई, बनाया बंधक पेज-4 लीड
नर्सों के साथ हुआ दुर्व्यवहार एक व्यक्ति की मौत के बाद परिजनों ने किया हंगामा सुरक्षा गार्ड रहे मूकदर्शक पुलिस ने शांत कराया मामला, अधिकारियों ने नहीं ली कोई सुध फोटो- 28 अप्रैल एयूआर 17कैप्शन- सदर...
औरंगाबाद सदर अस्पताल में मंगलवार की रात एक व्यक्ति की मौत होने के बाद परिजनों ने जमकर हंगामा किया। यहां ड्यूटी पर तैनात डा. अरुण कुमार की लोगों ने पिटाई कर दी और उन्हें बंधक बना लिया। इसके साथ ही नर्सों के साथ भी दुर्व्यवहार किया गया। इसकी सूचना नगर थाना पुलिस को दी गई जिसके बाद पहुंची पुलिस ने मामला संभाला। घटना के कई घंटे बीतने के बाद भी सुबह 6:30 बजे तक ना तो स्वास्थ्य विभाग के किसी अधिकारी ने डॉक्टर की सुध ली और ना ही कोई देखने आया। इस बात को लेकर यहां नाराजगी भी रही। डा. अरुण कुमार ने बताया कि वे रात में ड्यूटी पर थे। इसी बीच औरंगाबाद के ही शिवकुमार शर्मा, जिनकी उम्र 43 वर्ष थी, को यहां लाया गया। उन्होंने हालत देखकर कहा कि उन्हें हार्ट अटैक आया है। कुछ दवा दी गई और उन्हें रेफर किया गया। इसके बाद परिजनों ने ऑक्सीजन की मांग की। उन्होंने सलाह दी कि वे तत्काल एंबुलेंस से उन्हें दूसरी जगह ले जाए लेकिन परिजन नहीं माने। थोड़ी देर में बताया गया कि शिवकुमार शर्मा की मौत हो गई है। पुरुष वार्ड में वह देखने के लिए गए जहां उनकी मौत हो चुकी थी। इसके बाद परिजनों ने उनके साथ गाली-गलौज की और मारपीट की। एक कमरे में उन्हें बंद कर दिया गया। कुछ समय के लिए बंधक बनाते हुए उन्हें लगातार मारा जाता रहा। यहां एक गार्ड मौजूद था जिसने बचाने का प्रयास किया लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। इसके बाद नगर थाना पुलिस को सूचना दी गई। पुलिस ने यहां आकर उन्हें कमरे से निकाला और फिर परिजन लाश लेकर चले गए। इधर ड्यूटी पर तैनात रही नर्स चंचला कुमारी, रीता वर्मा, संजू कुमारी और सरिता कुमारी ने कहा कि उनके अलावा एक ड्रेसर सुधीर गुप्ता रात्रि में ड्यूटी पर था। नर्सों ने कहा कि ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध नहीं था जिसके कारण उन्हें ऑक्सीजन नहीं लगाया गया। यह काम भी चतुर्थवर्गीय कर्मियों का है लेकिन यहां कोई कर्मी मौजूद नहीं था। उनके साथ लोगों ने दुर्व्यवहार किया जिसके बाद वे हट गई। कहा कि उन्हें यहां कोई सुरक्षा नहीं दी जाती है। आए दिन यहां मारपीट, गाली-गलौज आदि घटनाएं होती हैं। किसी की भी मौत होने की स्थिति में परिजन अपना सारा गुस्सा उन पर निकालते हैं और उनकी सुनने वाला भी कोई नहीं है। इस संबंध में डीपीएम डा. कुमार मनोज ने बताया कि अस्पताल में 15 बड़े सिलेंडर उपलब्ध करा दिए गए हैं। यह दो से तीन दिन लगातार चल सकेगा। इसके अलावा आठ ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर उपलब्ध करा कर उसे चालू कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि सिविल सर्जन के स्तर से डॉक्टर और नर्सों से बात कर आंदोलन को समाप्त करा दिया गया है।सुरक्षा को लेकर डीएम और एसपी से बात हुई है जिसके बाद सुरक्षा उपलब्ध कराने का आश्वासन मिला है।
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फफक कर रो पड़े डा. अरुण कुमार, कहा यही है कोरोना योद्धा का सम्मान
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औरंगाबाद। हिन्दुस्तान प्रतिनिधि
सदर अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात रहे डा. अरुण कुमार गया जिले के रहने वाले हैं और कुछ दिनों पूर्व ही रफीगंज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से उन्हें यहां पदस्थापित किया गया है। रात में घटी घटना की जानकारी देने के दौरान अरुण कुमार फफक कर रो पड़े। उनकी आंखें गीली हो गई और उन्होंने कहा कि यही कोरोना योद्धा का सम्मान है। उन्होंने बताया कि मंगलवार को उन्होंने 50 से ज्यादा मरीजों को देखा था जिसमें से लगभग 10 से 12 मरीजों को रेफर करना पड़ा। सुविधाएं कम हैं और ऐसे में इलाज करने का प्रयास किया जाता है। मरीज की मौत होने के बाद उनके साथ जो मारपीट की गई, वह असहनीय है। उन्होंने कहा कि यदि इसमें न्याय नहीं हुआ तो वह काम करने में असमर्थ रहेंगे। उन्होंने कहा कि रात में उनके साथ बुरी तरह मारपीट की गई लेकिन किसी ने कोई सुध नहीं ली। मामले की सूचना सदर अस्पताल के उपाधीक्षक को दी गई तो उन्होंने कहा कि वे अधिकारियों से बात कर रहे हैं। बाद में बताया गया कि ना तो डीएम से बात हुई और ना ही सिविल सर्जन ने फोन उठाया। अस्पताल प्रबंधक भी रात में यहां नहीं आए। सुबह 6:30 बजे तक उन लोगों को न तो किसी ने फोन किया और ना ही कोई मिलने आया। ऐसी स्थिति में आखिर वे लोग काम कैसे करेंगे। अरुण कुमार यह बताते हुए रो पड़े। उन्होंने अपनी आंखें पोंछी और कहा कि इतने सालों तक सरकारी सेवा का यही इनाम मिला है। उनकी बातों को सुनकर वहां मौजूद अन्य लोग भी भावुक हो गए।
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बिना सुरक्षा और सुविधा के काम कर रहे हैं डॉक्टर, सुनने वाला भी कोई नहीं
औरंगाबाद। हिन्दुस्तान प्रतिनिधि
कोरोना की दूसरी लहर जारी है और ऐसे में सदर अस्पताल में सुविधाओं की कमी की बात हजम नहीं हो रही है। जिस अस्पताल पर जिले भर के मरीजों का दारोमदार रखा गया है, वहां पर कर्मी ही कई कमियों से जूझ रहे हैं। यहां मौजूद नर्सों ने बताया कि उन्हें ग्लब्स, सैनिटाइजर सहित छोटी-छोटी चीजों के लिए भटकना पड़ता है। ऑक्सीजन सिलेंडर उपलब्ध नहीं था तो वे लोग क्या कर सकती हैं। रात में सिलेंडर नहीं था और काफी प्रयास के बाद भी यह उपलब्ध नहीं हो सका। सिलेंडर लगाने और खोलने का काम कर्मियों का है। इसे खोलना उनके बस की बात नहीं होती है लेकिन रात में कोई मौजूद नहीं था। उन लोगों ने प्रयास किया कि सहायता हो लेकिन वह इसमें सक्षम नहीं थी। कर्मी ने बताया कि जो सुविधा उपलब्ध है, उसके अनुसार इलाज किया जाता है लेकिन यहां बाहर से आने वाले लोग दबाव बनाते रहते हैं। किसी भी तरह की दिक्कत होने पर गाली गलौज की जाती है और मारपीट की धमकी मिलती है। मंगलवार की रात वे लोग नहीं हटती तो उनके साथ भी मारपीट हो जाती। भय और आतंक के माहौल में उन लोगों ने अपना समय काटा। कर्मियों में इस बात को लेकर निराशा थी कि ना तो सिविल सर्जन ने उनके बारे में पूछा और ना ही कोई अन्य अधिकारी देखने आए। उन्हें काम करते हुए लगभग सात महीने हो गए हैं और इसके बावजूद वे लोग खुद को असुरक्षित ही महसूस करती हैं। डीपीएम ने बताया कि सिलेंडर उपलब्ध था लेकिन कुछ अन्य यंत्रों की कमी थी। उसे लगा दिया गया है। इसके अलावा आठ ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर उपलब्ध करा दिया गया है।