अररिया में फुटबॉल खेल के स्वर्णिम दौर को लौटाने की भी हो रही कोशिश
अररिया जिले में खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए सरकारी प्रयास जारी हैं। 183 योजनाएं बनाई गईं, जिनमें से 141 भौतिक रूप से पूर्ण हो चुकी हैं। विभिन्न खेलों के लिए मैदान और ट्रैक विकसित किए जा रहे हैं,...

जिले में खेलकूद को बढ़ावा देने की चल रही कवायद, बदल रहा परिदृश्य पंचायत- पंचायत बनाए जा रहे खेल के मैदान 183 योजनाएं ली गई, 141 योजनाएं भौतिक रूप से पूर्ण पुराना माहौल लोगों की स्मृतियों में अब भी है जिंदा पुराने समय में लॉन टेनिस और राइफल शूटिंग की होती थी प्रतियोगिता अररिया। संवाददाता जिले में खेलकूद का पुराना स्वर्णिम दौर तो पूरी तरह नहीं लौटा है। फुटबॉल का खेल अब भी कमोबेश अपेक्षित है। हां इतना जरूर कहा जा सकता है कि खेलकूद का माहौल बनाने और ग्रामीण प्रतिभाओं को अवसर देने के लिए सरकारी स्तर से लगातार प्रयास हो रहा है।
ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न खेलों और एथलेटिक्स के लिए मैदान और ट्रैक विकसित किए जा रहे हैं। साथ ही विशेष अवसरों पर प्रखंड से लेकर जिला स्तर तक विद्यालय खेलकूद प्रतियोगिताओं का आयोजन होता रहता है। एक तरफ इतना कुछ हो रहा है वहीं कुछ खेल अब भी तुलनात्मक रूप से उपेक्षित हैं। फुटबॉल इस का एक प्रमुख उदाहरण है। पुराने खिलाड़ी और खेल प्रेमी बताते हैं कि 60 से लेकर 90 के दशक या तो फुटबॉल अररिया की शान था। कहा जाता है कि अररिया में केवल फुटबॉल ही नहीं बल्कि एथलेटिक्स, वॉलीबॉल और टेनिस से लेकर राइफल शूटिंग तक की प्रतियोगिताएं होती थीं। वैसे हाल के दिनों में एक राहत की ये बात देखने को मिली कि लगभग मृतप्राय हो चुके फुटबॉल खेल में नई जान फूंकने के लिए कई पीढ़ी मिल कर साझा प्रयास कर रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार फुटबॉल के अलावा वर्तमान टाउन क्लब परिसर में उस समय बाजाब्ता टेनिस का हार्ड कोर्ट बना हुआ था, जहां गिनती के ही सही कुछ खिलाड़ी नियमित रूप से खेलने जरूर पहुंचते थे। जानकार कहते हैं कि गुजरते वक्त के साथ क्रिकेट के चकाचौंध ने फुटबॉल सहित अन्य खेलों का बड़ा नुकसान कर दिया है। ये अच्छी बात है कि जिले में क्रिकेट खेल को बढ़ावा देने के लिए संबंधित संघ बहुत मेहनत कर रहा है। इस खेल के जरिए भी जिले के एक नई पहचान देने में सफलता मिली है। पर फुटबॉल प्रेमियों का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट के चकाचौंध और पैसों की बारिश के साथ साथ क्रिकेटरों की सेलिब्रिटी वाली हैसियत के चलते दूसरे खेल लगभग हाशिये पर पहुंच चुके हैं। जिले में फुटबॉल सबसे अधिक प्रभावित हुआ। वहीं खेल के क्षेत्र में जिले को कुछ उपलब्धि से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। बीते कुछ सालों में कुछ खिलाड़ियों के निजी रुचि लेने और जिला प्रशासन से मिलने वाले सहयोग के कारण बैडमिंटन का दौर एक बार फिर शुरू हो गया है। अब तो जिला मुख्यालय में बने खेल भवन सह व्यायामशाला में बैडमिंटन के अलावा विभिन्न तरह के मार्शल आर्ट्स की भी प्रतियोगिताएं होती रहती हैं। जिले में शतरंज भी उपेक्षित: जिले में शतरंज के खेल का भी पुराना इतिहास रहा है। लेकिन इस खेल को भी जिंदा रखने के लिये कोई ठोस पहल होती नहीं दिख रही। जिले के औसत परिवार के नौनिहालों सौरभ व गौरभ बंधुओं ने अपनी बहन गरिमा के साथ शतरंज के खेल को एक नई गरिमा दी। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। पर जिले में मान्यता प्राप्त शतरंज संघ नहीं होने के कारण इन खिलाड़ियों को पूर्णिया संघ से संबद्ध होना पड़ा। आधिकारिक रूप से ये खिलाड़ी पूर्णिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। खेलकूद को बढ़ावा देने को सरकार संवेदनशील: एक सकारात्मक पक्ष ये है कि जिले में खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की योजना पर इस हद तक अमल जरूर हो रहा है कि ग्रामीण क्षेत्रों में खेल के मैदान विकसित किए जा रहे हैं। मनरेगा के डीपीओ अफरोज आलम के अनुसार जिले के सभी 211 पंचायतों में अलग अलग तरह के खेल के मैदान बनने हैं। जमीन की उपलब्धता के अनुसार 154 पंचायतों में 183 योजनाएं चयनित कर काम शुरू किया गया। अब तक 141 योजनाएं भौतिक रूप से पूर्ण हो चुकी हैं। कई मैदान व कोर्ट भी बने हैं: बताया कि उपलब्ध जमीन के रकबा के अनुसार बास्केट बॉल, बैडमिंटन, वॉलीबॉल, और फुटबॉल के लिए मैदान और कोर्ट बनाए गए हैं। कुछ जगह रनिंग ट्रैक्स भी बने हैं और कहीं ऊंची और लंबी कूद के लिए भी आधारभूत संरचना का विकास हुआ है।
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