कौन हैं भगवान विष्णु के 5वें अवतार? जानें क्यों लेना पड़ा यह अवतार
- शास्त्रों के अनुसार,भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को विष्णु भगवान ने वामन स्वरूप में जन्म लिया था। वामन देव ने छोटी उम्र में ही दैत्यराज बलि को पराजित कर दिया था।

कौन हैं भगवान विष्णु के 5वें अवतार: शास्त्रों के अनुसार,भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को विष्णु भगवान ने वामन स्वरूप में जन्म लिया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वामन देव भगवान विष्णु के 5वें अवतार हैं। जानें, क्यों लेना पड़ा यह अवतार-
पौराणिक कथा के अनुसार, असुरों के राजा बलि ने देवताओं को युद्ध में पराजित कर दिया था और स्वर्ग पर कब्जा कर लिया था। बलि की वजह से सभी देवता बहुत दुखी थे। दुखी देवता अपनी माता अदिति के पास पहुंचे और अपनी समस्या को बताया। अदिति ने पति कश्यप ऋषि के कहने पर एक व्रत किया, जिसके शुभ फल से भगवान विष्णु ने वामन देव के रूप में जन्म लिया। वामन देव ने छोटी उम्र में ही दैत्यराज बलि को पराजित कर दिया था। बलि अहंकारी था, उसे लगता था कि वह सबसे बड़ा दानी है। विष्णु जी वामन देव के रूप में उसके पास पहुंचे और दान में तीन पग धरती मांगी। अहंकार बलि ने सोचा कि ये तो छोटा सा काम है। मेरा तो पूरी धरती पर अधिकार है, मैं इसे तीन पग भूमि दान कर देता हूं। बलि वामन देव को तीन पग भूमि दान देने के लिए संकल्प कर रहे थे, उस समय शुक्राचार्य ने उसे रोकने की कोशिश की।
दरअसल, शुक्राचार्य जान गए थे कि वामन के रूप में स्वयं भगवान विष्णु हैं। शुक्राचार्य ने बलि को समझाया कि ये छोटा बच्चा नहीं है, ये स्वयं विष्णु हैं। तुम इन्हें दान मत दो। ये बात सुनकर बलि बोला कि अगर ये भगवान हैं और मेरे द्वार पर दान मांगने आए हैं तो भी मैं इन्हें मना नहीं कर सकता हूं, ऐसा कहकर बलि ने हाथ में जल का कमंडल लिया तो शुक्राचार्य छोटा रूप धारण करके कमंडल की दंडी में जाकर बैठ गए, ताकि कमंडल से पानी ही बाहर न निकले और राजा बलि संकल्प न ले सकें। वामन देव शुक्राचार्य की योजना समझ गए। उन्होंने तुरंत ही एक पतली लकड़ी ली और कमंडल की दंडी में डाल दी, जिससे अंदर बैठे शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई और वे तुरंत ही कमंडल से बाहर आ गए। इसके बाद राजा बलि ने वामन देव को तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया।
राजा के संकल्प लेने के बाद वामन देव ने अपना आकार बड़ा कर एक पग में पृथ्वी और दूसरे पग में स्वर्ग नाप लिया। तीसरे पग के लिए भूमि नहीं बची। वामन देव ने राजा से कहा कि अब मैं तीसरा पग कहां रखूं? ये सुनकर राजा बलि का अहंकार टूट गया। फिर राजा बलि ने कहा कि तीसरा पग आप मेरे सिर पर रख सकते हैं। बलि की दान वीरता देखकर वामन देव प्रसन्न हुए और उन्हें पाताल लोक का राजा बना दिया। इंद्र देव को पुनः स्वर्ग का सिंहासन प्राप्त हुआ।
डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।