
जानें कौन हैं देवी अपराजिता, दशहरे के दिन इनकी पूजा के बिना नहीं मिलता नवरात्र का फल, भगवान राम ने की थी पूजा
संक्षेप: वराह पुराण के अनुसार देवी अपराजिता, देवी वैष्णवी के कठोर तप से उत्पन्न हुई थीं। वैष्णवी, देवी त्रिकुटा का एक रूप हैं। ये भगवान विष्णु की शक्ति का प्रतीक हैं। इन्हें दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है। वैष्णवी की व्याकुलता से ही इनके शरीर का रंग लाल है।
वराह पुराण के अनुसार देवी अपराजिता, देवी वैष्णवी के कठोर तप से उत्पन्न हुई थीं। वैष्णवी, देवी त्रिकुटा का एक रूप हैं। ये भगवान विष्णु की शक्ति का प्रतीक हैं। इन्हें दुर्गा का ही एक रूप माना जाता है। वैष्णवी की व्याकुलता से ही इनके शरीर का रंग लाल है। इनसे ही अपराजिता सहित और अन्य कई देवियां प्रकट हुईं।
मान्यता है कि शारदीय नवरात्र की दशमी तिथि को देवी अपराजिता की पूजा किए बिना नवरात्र पूजा का फल नहीं मिलता। दोपहर के बाद और संध्याकाल से पहले अपराजिता पूजन किया जाता है।
इस संबंध में एक पौराणिक कथा है। राम-रावण के बीच भीषण युद्ध चल रहा था। रावण की ओर से उसके भाई कुंभकर्ण और इंद्र को परास्त करनेवाले पुत्र मेघनाद सहित सभी प्रमुख योद्धा युद्ध में मारे जा चुके थे। इसके बावजूद रावण पराजित नहीं हो रहा था।
रणभूमि में रावण अकेला अपनी सेना के साथ राम का सामना कर रहा था। इधर राम बाण से रावण का शीश काटते, उधर उसके धड़ पर फिर एक शीश आ जाता। एक-एक करके उन्होंने रावण के दस बार शीश काटे और रावण के धड़ पर हर बार एक नया शीश आ जाता। अब रावण अपने दस शीशों के साथ युद्ध कर रहा था। अपने दस शीशों के कारण ही रावण का एक नाम ‘दशानन’ भी है।
राम समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर रावण की मृत्यु क्यों नहीं हो रही है। इसी निराशा में युद्ध करते-करते नौ दिन बीत गए।
दसवें दिन राम ने रावण पर विजय की कामना से युद्ध पर जाने से पूर्व देवी ‘अपराजिता’ की आराधना की। देवी ने राम को विजय का आशीर्वाद दिया। युद्ध भूमि में दोनों के बीच भयंकर युद्ध होने लगा।
देवी अपराजिता की प्रेरणा से विभीषण राम के पास आए। उन्होंने राम को रावण की मृत्यु का रहस्य बताया कि उसकी नाभि में ‘अमृत कुंड’ है। पहले बाण से उसे सुखाएं, तब रावण की मृत्यु होगी। राम ने ऐसा ही किया। इस प्रकार रावण का वध हुआ और देवी अपराजिता का राम को दिया ‘विजय’ का आशीर्वाद भी पूरा हुआ।





