
ऋषि वाल्मीकि ने दी थी प्रभु श्रीराम को चित्रकूट में रहने की सलाह, पढ़ें श्रीरामचरितमानस में वर्णित किस्सा
संक्षेप: Valmiki jayanti Today: आज वाल्मीकि पूरे संसार के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। महर्षि वाल्मीकि आदिकाव्य के रचयिता हैं। वेदों को छोड़ दें, तो लौकिक भाषा में, लौकिक संस्कृति में सबसे पहला ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि के ग्रंथ को माना गया।
Valmiki jayanti 2025: रत्नाकर ने बहुत प्रयास किए, फिर कहा, ‘मेरे मुंह में यह शब्द आ ही नहीं रहा है। राम, राम कह ही नहीं सकता। मेरा शरीर दूषित है। दिव्य शब्द राम मेरे मुंह से उच्चरित नहीं हो सकता। श्रवण और कथन के लिए जो वातावरण, जैसी शक्ति चाहिए, वह मेरे पास नहीं है। मैं राम, राम नहीं जप सकता।’

देवर्षि ने भी कोशिश की, लेकिन रत्नाकर के मुंह से राम शब्द नहीं निकल पाया। देवर्षि ने कहा, ‘ठीक है, आप राम, राम नहीं जप सकते हैं, तो आप मरा, मरा ही जपिए।
यह रत्नाकर को ठीक लगा, वे जिस गलत व्यवसाय में थे, उसमें मारो, मारो बोलते ही रहते थे, मारो, पीटो, लूटो, काटो, राम, राम तो नहीं जप पाए, पाप की अधिकता के कारण, लेकिन मरा, मरा उन्होंने जपना शुरू किया। ऐसा जपा की दीमकों ने उन पर घर बना लिया। दीमक के घरों को ही वल्मीक बोलते हैं, इसलिए इनका नाम वाल्मीकि हो गया। उनका संपूर्ण जीवन विशुद्ध हो गया, भगवान का नाम जपते हुए। आज वाल्मीकि पूरे संसार के लिए प्रेरणा स्रोत हैं। महर्षि वाल्मीकि आदिकाव्य के रचयिता हैं। वेदों को छोड़ दें, तो लौकिक भाषा में, लौकिक संस्कृति में सबसे पहला ग्रंथ महर्षि वाल्मीकि के ग्रंथ को माना गया। संपूर्ण संसार में जितनी भाषाएं हैं, उन भाषाओं में किसी भी भाषा के पास महर्षि वाल्मीकि का महाकाव्य वाल्मीकि रामायण जैसा कोई ग्रंथ नहीं है।
सीता ही नहीं, राम भी चाहते थे कि उनके बच्चे केवल महाराजा ही नहीं बनें, वन में भी रहें, तपस्वी बनें, ऋषित्व को भी प्राप्त करें। बच्चों को तपस्वी राजा बनाने के लिए ही महर्षि वाल्मीकि और उनके आश्रम का चयन किया गया। महर्षि वाल्मीकि ने संपूर्ण आत्मीय भाव से जानकी और उनके पुत्रों को अपने आश्रम में रखा। प्रभु राम के बच्चों को सशक्त रूप से विकसित किया। उन्होंने राम के बच्चों को वीर ही नहीं, विद्वान भी बनाया। यह सुखद संयोग है कि महर्षि वाल्मीकि ने अपने आदि काव्य को सबसे पहले राम के बच्चों लव-कुश को ही सुनाया-पढ़ाया। यह इस संसार की अद्भुत घटना है कि दुनिया का सबसे पहला आदि काव्य ग्रंथ, जो माता सीता और पिता राम के लिए लिखा गया है, उसे उनके बच्चों को ही सबसे पहले पढ़ाया गया। भारत कोई विश्व गुरु ऐसे ही नहीं हो गया था। विश्व गुरु का परम पद केवल डॉक्टर, इंजीनियर पैदा करके नहीं पाया जा सकता, जब तक तपस्वियों या ऋषियों से संबंधित भावनाएं जीवन में नहीं अवतरित होंगी, तब तक जीवन कमाऊ और खाऊ ही बना रहेगा।
श्रीरामचरितमानस में लिखा है कि राम को चित्रकूट में रहने की सलाह ऋषि वाल्मीकि ने ही दी थी। चौदह वर्ष के वनवास पर निकले राम ने बहुत श्रद्धापूर्वक वाल्मीकि जी से पूछा था, ‘वह स्थान बतलाइए, जहां मैं सीता व लक्ष्मण सहित जाऊं और रहूं।’ तब वाल्मीकि भी भगवान राम को जान रहे थे, उन्होंने उत्तर दिया-
पूंछेहु मोहि कि रहौं कहं मैं पूंछत सकुचाउं।
जहं न होहु तहं कहि तुम्हहि देखावौं ठाउं।।
अर्थात आप मुझसे पूछ रहे हैं कि मैं कहा रहूं। यहां मैं आपसे यह पूछते हुए सकुचा रहा हूं कि जहां आप न हों, वह जगह मुझे बता दीजिए, ताकि मैं आपके रहने के लिए जगह दिखा दूं। उसके बाद राम के विराजने के लिए जो-जो स्थान भक्ति भाव से महर्षि वाल्मीकि ने गिनाए, वो उनकी राम भक्ति का अनुपम प्रमाण हैं।





