शांति चाहने वालों को उसी तरह संगठित होना चाहिए, जैसे युद्ध में निवेश करने वाले लोग होते हैं: सद्गुरु
- भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस पर सद्गुरु ने शांति के लिए संगठित प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जो लोग शांति की कामना करते हैं, उन्हें एकजुट होकर निर्णायक रूप से कार्य करना चाहिए।
भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस पर सद्गुरु ने शांति के लिए संगठित प्रयासों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जो लोग शांति की कामना करते हैं, उन्हें एकजुट होकर निर्णायक रूप से कार्य करना चाहिए। जैसे युद्ध में निवेश करने वाले लोग खुद को संगठित करते हैं, उसी तरह शांति की आकांक्षा रखने वालों को भी एकजुट होने की जरूरत है। सद्गुरु ने 'निष्क्रिय उदासीनता' को लेकर आगाह करते हुए कहा कि इसे शांति समझने की गलती नहीं करनी चाहिए और वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए एक सक्रिय, समन्वित दृष्टिकोण की जरूरत होती है।
भारत के इतिहास पर विचार करते हुए सद्गुरु ने ब्रिटिश कोलोनियलिज़्म के स्थाई प्रभाव का जिक्र करते हुए कहा, "200 साल के कब्जे के बाद जब अंग्रेज चले गए, तो वे न केवल हमारी दौलत ले गए बल्कि उन्होंने हमारी शिक्षा, उद्योग और कई अन्य प्रणालियों को भी नष्ट कर दिया, जो राष्ट्र के पुनर्निमाण के लिए महत्वपूर्ण थीं।"
उन्होंने जोर देकर कहा कि स्वतंत्रता के बाद से भले ही भारत ने महत्वपूर्ण प्रगति की हो, लेकिन एक उच्चतर आकांक्षा को पूरा करना बाकी है। उन्होंने कहा, "भारत का भारत बने रहना ही पर्याप्त नहीं है, भारत को महा-भारत बनना होगा। हजारों वर्षों से पूरी धरती पर जब भी लोगों ने आंतरिक खुशहाली और स्थिरता की तलाश की वे स्वाभाविक रूप से भारत की ओर बढ़े। एक बार फिर यह महत्वपूर्ण है कि हम मानवता के लिए उस संभावना को पैदा करें। अगर ऐसा होना है तो सबसे पहले भारत को महा-भारत बनना होगा। महा-भारत का मतलब है कि इस भूमि के लोगों को ऐसी जीवंतता और संतुलन की भावना के साथ रहना चाहिए बाकी दुनिया भी वैसा बनने की आकांक्षा रखे।"
उन्होंने कहा, "इस परिवर्तन के लिए राष्ट्र की आध्यात्मिक सूत्र के गहन पुनर्संयोजन की जरूरत है, जिसे उन्होंने वास्तविक जीवंतता और संतुलन प्राप्त करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया।" सद्गुरु ने बढ़ते संघर्षों और मानसिक स्वास्थ्य संकट सहित व्यापक वैश्विक चुनौतियों को भी संबोधित किया। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत की संस्कृति की समग्रता इसका समाधान प्रदान करती है। उन्होंने कहा, "जब हम भारत की बात करते हैं तो यह निरंकुशता की संस्कृति नहीं है, आप बनाम मैं की संस्कृति नहीं है। यहां समावेशिता की संस्कृति है। इस समय दुनिया में कई स्तरों पर संघर्ष हो रहे हैं- समुदायों और राष्ट्रों के बीच; व्यक्ति के भीतर भी - बहुत संघर्ष हो रहा है, धरती पर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पहले से कहीं ज्यादा बढ़ रही हैं। इसलिए समावेशिता समय की मांग है।"
इसका समाधान प्रस्तुत करते हुए सद्गुरु ने कहा, "एक व्यक्ति के स्तर पर समावेश के माध्यम से ही हम आनंद, शांति और संतुलन का अनुभव कर सकते हैं।" सद्गुरु ने वैश्विक शांति के स्थाई रोडमैप पर प्रकाश डालते हुए कहा, "जब आप और दूसरा अलग-अलग नहीं होते, तो कोई संघर्ष नहीं होता। व्यक्ति पर ध्यान दिए बिना विश्व शांति के बारे में बात करने से कुछ हासिल नहीं होने वाला है।"
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