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जब तीनों लोको की लक्ष्मी अदृश्य हो गई तो इंद्र ने की थी इस स्तोत्र की रचना, आप भी इसे पढ़ें 5 बार

इंद्र ने महालक्ष्मी का अद्भुत श्रीलक्ष्मी कृपा स्तोत्र लिखा है। जब मुनि दुर्वास

Anuradhaसूर्यकांत द्विवेदी,मुरादाबादWed, 11 Oct 2017 10:23 PM

जब तीनों लोको की लक्ष्मी अदृश्य हो गई तो इंद्र ने की इस स्तोत्र की रचना,, आप भी इसे पढ़ें 5 बार

जब तीनों लोको की लक्ष्मी अदृश्य हो गई तो इंद्र ने की इस स्तोत्र की रचना,, आप भी इसे पढ़ें 5 बार 1 / 3

इंद्र ने महालक्ष्मी का अद्भुत श्रीलक्ष्मी कृपा स्तोत्र लिखा है। जब मुनि दुर्वासा के शाप से इंद्र श्रीहीन हो गए। तीनों लोको की लक्ष्मी अदृश्य हो गई। राज न रहा और त्रिलोकी, तो इंद्र ने लक्ष्मी जी की आराधना की। इंद्र  ने एक स्तोत्र की रचना की जिससे उन्होंने फिर से सब कुछ प्राप्त कर लिया।
स्तोत्र की महिमा
धनतेरस से दिवाली तक जो कोई इसका पांच बार या इससे अधिक पाठ करता है, उस पर लक्ष्मी जी की विशेष कृपा होती है। वह धन और धान्य से युक्त होता है। कमलगट्टे की माला से ऊं श्रीं ह्रीं ऊं का जाप ( पांच माला) भी लाभकारी हैं।

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कैसे मिला इंद्र को शाप

कैसे मिला इंद्र को शाप2 / 3

कैसे मिला इंद्र को शाप
कथा आती है कि एक बार इंद्र ऐरावत हाथी पर सवार होकर कहीं जा रहे थे। तभी उनको दुर्वासा ऋषि मिले। दुर्वासा ऋषि ने उनको अपने गले में पड़ी एक माला भेंट की। इंद्र ने वह माला हाथी की सूंड में डाल दी। हाथी माला की सुगंध सहन नहीं कर सका। उसने सूंड से माला उतारकर पृथ्वी पर फेंक दिया। ऋषि दुर्वासा ने तब इंद्र को शाप दिया कि तुमने लक्ष्मी जी का अपमान किया है, इसलिए तुम श्रीहीन यानी लक्ष्मीविहीन हो जाओगे। देखते ही देखते इंद्र लक्ष्मीविहीन हो गए। इंद्र की राज्य लक्ष्मी समुद्र में चली गई। तब इंद्र ने महालक्ष्मी स्तोत्र की रचना की।

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लक्ष्मी जी का चमात्कारिक स्तोत्र

लक्ष्मी जी का चमात्कारिक स्तोत्र3 / 3

लक्ष्मी जी का चमात्कारिक स्तोत्र
इन्द्र उवाच

 
नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।
शंखचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।1।।
 
इन्द्र बोले, श्रीपीठ पर स्थित और देवताओं से पूजित होने वाली हे महामाये। तुम्हें नमस्कार है। हाथ में शंख, चक्र और गदा धारण करने वाली हे महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है।
 
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयंकरि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।2।।
 
गरुड़ पर आरुढ़ हो कोलासुर को भय देने वाली और समस्त पापों को हरने वाली हे भगवति महालक्ष्मी! तुम्हें प्रणाम है।
 
सर्वज्ञे सर्ववरदे देवी सर्वदुष्टभयंकरि।
सर्वदु:खहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।3।।
 
सब कुछ जानने वाली, सबको वर देने वाली, समस्त दुष्टों को भय देने वाली और सबके दु:खों को दूर करने वाली, हे देवि महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।
 
सिद्धिबुद्धिप्रदे देवि भुक्तिमुक्तिप्रदायिनि।
मन्त्रपूते सदा देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।4।।
 
सिद्धि, बुद्धि, भोग और मोक्ष देने वाली हे मन्त्रपूत भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें सदा प्रणाम है।
 
आद्यन्तरहिते देवि आद्यशक्तिमहेश्वरि।
योगजे योगसम्भूते महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।5।।
 
हे देवी! हे आदि-अन्तरहित आदिशक्ति! हे महेश्वरी! हे योग से प्रकट हुई भगवती महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।
 
स्थूलसूक्ष्ममहारौद्रे महाशक्तिमहोदरे।
महापापहरे देवि महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।6।।
 
हे देवी! तुम स्थूल, सूक्ष्म एवं महारौद्ररूपिणी हो, महाशक्ति हो, महोदरा हो और बड़े-बड़े पापों का नाश करने वाली हो। हे देवी महालक्ष्मी! तुम्हें नमस्कार है।
 
पद्मासनस्थिते देवि परब्रह्मस्वरूपिणी।
परमेशि जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।7।।
 
हे कमल के आसन पर विराजमान परब्रह्मस्वरूपिणी देवी! हे परमेश्वरी! हे जगदम्ब! हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
 
श्वेताम्बरधरे देवि नानालंकारभूषिते।
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते।।8।।
 
हे देवी तुम श्वेत एवं लाल वस्त्र धारण करने वाली और नाना प्रकार के अलंकारों से विभूषिता हो। सम्पूर्ण जगत् में व्याप्त एवं अखिल लोक को जन्म देने वाली हो। हे महालक्ष्मी! तुम्हें मेरा प्रणाम है।
 
स्तोत्र पाठ का फल
 
महालक्ष्म्यष्टकं स्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर:।
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यं प्राप्नोति सर्वदा।।9।।
 
जो मनुष्य भक्तियुक्त होकर इसका सदा पाठ करता है, वह सारी सिद्धियों और राजवैभव को प्राप्त कर सकता है।
 
एककाले पठेन्नित्यं महापापविनाशनम्।
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन्यधान्यसमन्वित:।।10।।
 
जो प्रतिदिन एक समय पाठ करता है, उसके बड़े-बड़े पापों का नाश हो जाता है। जो दो समय पाठ करता है, वह धन-धान्य से सम्पन्न होता है।
 
त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रुविनाशनम्।
महालक्ष्मीर्भवेन्नित्यं प्रसन्ना वरदा शुभा।।11।।
 
जो प्रतिदिन तीन काल पाठ करता है उसके महान शत्रुओं का नाश हो जाता है और उसके ऊपर कल्याणकारिणी वरदायिनी महालक्ष्मी सदा ही प्रसन्न होती हैं।