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Janmashtami: 2024 में कब है कृष्ण जन्माष्टमी? नोट कर लें डेट, मुहूर्त, विधि और आरती

Janmashtami in 2024: भगवान कृष्ण के जन्म दिवस को जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। साल 2024 में भगवान श्री कृष्ण का बड़े ही धूम-धाम और श्रद्धा के साथ 5251वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा।

Shrishti Chaubey लाइव हिन्दुस्तान, नई दिल्लीSat, 9 Dec 2023 01:59 PM
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Janmashtami: 2024 में कब है कृष्ण जन्माष्टमी? नोट कर लें डेट, मुहूर्त, विधि और आरती

Janmashtami 2024 Kab Hai: कृष्ण जी भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार हैं। भगवान कृष्ण के जन्म दिवस को जन्माष्टमी के रूप में मनाते हैं। साल 2024 में भगवान श्री कृष्ण का बड़े ही धूम-धाम और श्रद्धा के साथ 5251वां जन्मोत्सव मनाया जाएगा। हर साल भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर श्री कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। कन्हैया रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि में जन्में थे। इसलिए आइए जानते हैं साल 2024 की जन्माष्टमी की डेट, शुभ मुहूर्त, विधि और व्रत पारण का सही समय-

कब है जन्माष्टमी 2024?
अष्टमी तिथि प्रारम्भ - अगस्त 26, 2024 को 03:39 ए एम बजे
अष्टमी तिथि समाप्त - अगस्त 27, 2024 को 02:19 ए एम बजे
रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ - अगस्त 26, 2024 को 03:55 पी एम बजे
रोहिणी नक्षत्र समाप्त - अगस्त 27, 2024 को 03:38 पी एम बजे

कृष्ण जन्माष्टमी शुभ मुहूर्त 
निशिता पूजा का समय - अगस्त 26,12:06 ए एम से 12:51 ए एम
पूजा अवधि - 00 घण्टे 45 मिनट
पारण समय - 03:38 पी एम, अगस्त 27 के बाद
पारण के दिन रोहिणी नक्षत्र समाप्ति समय - 03:38 पी एम, अगस्त 27 
पारण के दिन अष्टमी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी
चंद्रोदय समय - 11:20 पी एम 

जन्माष्टमी पूजन विधि
1- सुबह जल्दी उठ जाएं और स्नान कर साफ वस्त्र धारण कर लें 
2- अब पूजा घर की साफ सफाई कर लें
3- लड्डू गोपाल का पालना सजाएं 
4- प्रभु श्री कृष्ण का गंगाजल और कच्चे दूध से अभिषेक करें 
5- कन्हैया को साफ कपड़े से पोछकर वस्त्र, कंगन, कुंडल, मुकुट और फूलों की माला पहनाएं 
6- श्री कृष्ण का फूलों से श्रृंगार करें 
7- फिर इन्हें पालने में बिठाकर झूला झुलाएं 
8-  प्रभु की सेवा संतान की तरह करें
9- अब घी के दीपक से प्रभु की आरती करें गाएं 
10- माखन-मिश्री का भोग लगाएं और क्षमा प्रार्थना करें

श्री कृष्ण जी की आरती- Krishna Ji Ki Aarti
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला 
श्रवण में कुण्डल झलकाला,नंद के आनंद नंदलाला
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली
लतन में ठाढ़े बनमाली भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक
चंद्र सी झलक, ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की, आरती कुंजबिहारी की…॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं।
गगन सों सुमन रासि बरसै, बजे मुरचंग,  मधुर मिरदंग ग्वालिन संग।
अतुल रति गोप कुमारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
जहां ते प्रकट भई गंगा, सकल मन हारिणि श्री गंगा।
स्मरन ते होत मोह भंगा, बसी शिव सीस।
जटा के बीच,हरै अघ कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥ ॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू 
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू 
हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद।
टेर सुन दीन दुखारी की
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
॥ आरती कुंजबिहारी की…॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें। 

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