मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने पौड़ी में आयोजित शरदोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि अपने संबोधन में कहा कि प्रस्तावित सीता माता सर्किट, पौड़ी के विकास में मील का पत्थर साबित होगा। उन्होंने कहा कि इस पर काम भी शुरू कर दिया गया है।
यहां जारी एक सरकारी विज्ञप्ति के अनुसार, मुख्यमंत्री ने कहा कि इस सर्किट के विकास के बाद भगवान राम और माता सीता में आस्था रखने वाला दुनिया का हर व्यक्ति फलस्वाड़ी गांव में जरूर आना चाहेगा जहां माता सीता ने भू-समाधि ली थी।
समाचार एजेंसी भाषा के अनुसार, उन्होंने कहा कि फलस्वाड़ी में माता सीता का भव्य मंदिर बनाने के लिए क्षेत्र के हर गांव के हर घर से एक शिला, एक मुट्ठी मिट्टी और 11 रुपये दान किया जाए । मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके लिए जल्द ही यात्रा की जाएगी जिसमें वह स्वयं देवप्रयाग से यह यात्रा करेंगे। उन्होंने कहा कि संत-महात्माओं ने भी इसमें शामिल होने की इच्छा व्यक्त की है।
समाधि स्थल को लेकर प्रचलित हैं कई कथाएं-
हालांकि मां सीता द्वारा धरती में समा जाने की कथाओं में विन्न स्थानों का वर्णन किया जाता है जिससे किसी भी स्थान को प्रमाणिकता कहना काफी मुश्किल है कि मां सीता इसी स्थान पर धरती में समा गई थीं।
कुछ विद्वानों का मत है कि उत्तर प्रदेश में संत कबीर नगर जिले में गंगा किनारे एक स्थान में समाधि ली थी। कहा जाता है कि मां सीता ने तब देखा कि लव और कुश भगवान राम का मुकुट लेकर आए गए तो उनसे रहा नहीं गया और वह दुखी होकर धरती में समा गईं।
वहीं सबसे लंबे टीवी धारावाहिक रामानंद सागर की रामायण की बात करें तो उसमें दिखाया गया है एक बार लव और कुश के बड़े होने पर एक बार भगवान राम ने मां सीता को अपने दरबार में बुलाया और पुन: अपने शुद्धता की शपथ लेने की बात कही। इस मां सीता बेहद दुखी हुईं और धरती मां से अपनी गोद में बैठाने की जगह मांगी। तभी भरे दरबार में धरती फट गई और मां सीता उनकी गोद में समा गईं। इस कहानी को सच माना जाए तो मां सीता अयोध्या में ही समाधि ली थी।