उत्पन्ना एकादशी 2019: जानें कब है उत्पन्ना एकादशी, इसी दिन हुआ था एकादशी माता का जन्म
हेमंत ऋतु में आने वाले मार्गषीर्श मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का इस साल क्षय हो गया है। 22 नवंबर को दशमी युक्त उत्पत्तिका, उत्पन्ना और वैतरणी एकादशी है। वैसे शास्त्रों में दशमी युक्त एकादशी से...
हेमंत ऋतु में आने वाले मार्गषीर्श मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का इस साल क्षय हो गया है। 22 नवंबर को दशमी युक्त उत्पत्तिका, उत्पन्ना और वैतरणी एकादशी है। वैसे शास्त्रों में दशमी युक्त एकादशी से दूर रहने को कहा गया है। 22 नवंबर को इसका व्रत स्मार्त और 23 नवंबर को त्रिस्पृशा महाद्वादशी व्रत वैष्णव लोग रखेंगे।
त्रिस्पृशा, जिसमें एकादशी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथि भी हो, वह बड़ी शुभ मानी जाती है। कोई ऐसी तिथि एक बार भी कर ले, तो उसे एक सौ एकादशी करने का फल मिलता है। एकादशी माता श्रीहरि के शरीर से इसी दिन प्रगट हुई थीं। व्रतों में एकादशी को प्रधान और सब सिद्धियों को देने वाला माना गया है। एकादशी के दिन नदी आदि में स्नान कर, व्रत रख श्री हरि के विभिन्न अवतारों की लीलाओं का ध्यान करते हुए इनकी पूजा और दान आदि करना चाहिए।
धर्मराज युधिष्ठिर ने जब उत्पन्ना एकादशी के बारे में भगवान श्रीकृष्ण से पूछा, तो उन्होंने कहा कि सत्ययुग में एक मुर नामक दैत्य था, जिसने इन्द्र सहित सभी देवताओं को जीत लिया। भयभीत देवता शिव से मिले तो, उन्होंने कष्ट दूर करने के लिए देवताओं को श्रीहरि के पास जाने को कहा। क्षीरसागर में शयन कर रहे श्रीहरि, इन्द्र सहित सभी देवताओं की प्रार्थना पर उठे और मुर दैत्य को मारने चन्द्रावतीपुरी गए।
सुदर्शन चक्र के द्वारा उन्होंने अनगिनत दैत्यों का वध किया। फिर वे बद्रिका आश्रम की सिंहावती नामक 12 योजन लंबी गुफा में सो गए। मुर ने उन्हें मारने का जैसे ही विचार किया, वैसे ही श्रीहरि के शरीर से एक कन्या निकली और उसने मुर दैत्य का वध कर दिया।
जागने पर श्रीहरि को उस कन्या, जिसका नाम एकादशी था, ने बताया कि मुर को भगवान के आशीर्वाद से उसने ही मारा है। खुश होकर श्रीहरि ने एकादशी को सभी व्रतों में प्रधान होने का वरदान दिया। सगरनंदन ककुत्स्थ, नहुष और राजा गाधि इसी व्रत को कर अपना जीवन सफल कर सके। जो लोग एकादशी व्रत नहीं कर पाते हैं, उन्हें इस दिन सात्विक रहना चाहिए। एकादशी को चावल नहीं खाना चाहिए। एकादशी का पूरा फल चाहने वालों को रात्रि में श्रीहरि हेतु जागरण जरूर करना चाहिए।
पं. भानुप्रतापनारायण मिश्र